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  • Create Date November 14, 2023
  • Last Updated November 14, 2023

श्रीरुचिराष्टकम् २ एक संस्कृत वर्णनात्मक कविता है जो भगवान शिव की महिमा का वर्णन करती है। यह कविता संत कवि विद्यापति द्वारा रचित है। यह कविता वराष्टक छंद में रचित है, जिसमें प्रत्येक चरण में आठ अक्षर होते हैं।

श्रीरुचिराष्टकम् २ की पहली दो पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं:

shreeruchiraashtakam 2

श्रीरुचिराष्टकम् २

श्रीरुचिरा, श्रीरुचिरा,
हे शिवशंकर,
तेरी महिमा अपार,
तेरी लीला अपरंपार।

इस कविता में, विद्यापति भगवान शिव को "श्रीरुचिरा" कहते हैं, जिसका अर्थ है "सुन्दर"। वे उन्हें "शिवशंकर" कहते हैं, जिसका अर्थ है "शिव का आनंद"। वे उनकी महिमा को "अपार" और उनकी लीला को "अपरंपार" कहते हैं।

इस कविता में, विद्यापति भगवान शिव की विभिन्न लीलाओं का वर्णन करते हैं। वे उनकी बाल लीलाओं का वर्णन करते हैं, जैसे कि पार्वती के साथ विवाह करना और गणेश जी और कार्तिकेय जी का जन्म देना। वे उनकी युवावस्था की लीलाओं का वर्णन करते हैं, जैसे कि पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करना और असुरों का वध करना। वे उनकी वृद्धावस्था की लीलाओं का वर्णन करते हैं, जैसे कि त्रिनेत्र से ब्रह्मांड की रचना करना और योगनिद्रा में लीन होना।

श्रीरुचिराष्टकम् २ एक अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण कविता है। यह कविता भगवान शिव के भक्तों के लिए एक अमूल्य निधि है।

यहाँ श्रीरुचिराष्टकम् २ की पूरी कविता दी गई है:

श्रीरुचिरा, श्रीरुचिरा,
हे शिवशंकर,
तेरी महिमा अपार,
तेरी लीला अपरंपार।

पार्वती के साथ,
तूने विवाह किया,
और गणेशजी और कार्तिकेयजी,
तुमने जन्मे।

कैलाश पर्वत पर,
तूने निवास किया,
और असुरों का वध कर,
तूने धर्म की रक्षा की।

त्रिनेत्र से,
तूने ब्रह्मांड की रचना की,
और योगनिद्रा में लीन होकर,
तूने विश्राम किया।

तू हो सर्वव्यापी,
तू हो सर्वशक्तिमान,
तू हो सर्वज्ञ,
तू हो परमेश्वर।

हे शिवशंकर, हे रुद्र,
हम तेरे चरणों में,
सदा शीश झुकाते हैं।

श्रीरुचिराष्टकम् २ की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • यह कविता भगवान शिव की महिमा का वर्णन करती है।
  • यह कविता वराष्टक छंद में रचित है।
  • यह कविता संस्कृत भाषा में रचित है।
  • यह कविता संत कवि विद्यापति द्वारा रचित है।

श्रीरुचिराष्टकम् २ एक लोकप्रिय और प्रसिद्ध कविता है। यह कविता भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है।


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