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  • Create Date October 14, 2023
  • Last Updated October 14, 2023

श्रीरामचंद्रष्टकम एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान राम की स्तुति करता है। यह स्तोत्र 8 श्लोकों में विभाजित है, और प्रत्येक श्लोक में भगवान राम के एक अलग पहलू की स्तुति की जाती है।

श्रीरामचंद्रष्टकम की रचना 14वीं शताब्दी के संत और कवि तुलसीदास ने की थी। यह स्तोत्र रामचरितमानस के बाद तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है।

श्रीरामचंद्रष्टकम का पाठ करने से भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि यह स्तोत्र भक्तों को सभी प्रकार की विपत्तियों से बचाता है।

श्रीरामचंद्रष्टकम के कुछ प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:

  • यह स्तोत्र भगवान राम को सर्वोच्च देवता के रूप में स्थापित करता है।
  • यह स्तोत्र भगवान राम के सभी गुणों की प्रशंसा करता है, जैसे कि उनका करुणा, दया, और न्याय।
  • यह स्तोत्र भगवान राम की भक्तों पर कृपा करने की प्रार्थना करता है।

श्रीरामचंद्रष्टकम का पाठ करने के लिए, भक्त को एक शांत और पवित्र स्थान पर बैठना चाहिए। फिर, भक्त को भगवान राम को प्रणाम करना चाहिए और उनसे अपनी रक्षा करने की प्रार्थना करनी चाहिए। इसके बाद, भक्त को स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

श्रीरामचंद्रष्टकम का पाठ करने के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:

  • यह भक्तों को भगवान राम की कृपा प्राप्त करने में मदद करता है।
  • यह भक्तों को सभी प्रकार की विपत्तियों से बचाता है।
  • यह भक्तों को शांति और सुख प्रदान करता है।

श्रीरामचंद्रष्टकम एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद कर सकता है।

श्रीरामचंद्रष्टकम के 8 श्लोक निम्नलिखित हैं:

श्लोक 1:

सुग्रीवमित्रं परमं पवित्रं सीताकलत्रं नवमेघगात्रम् ।

कारुण्यपात्रं शतपत्रनेत्रं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥

अर्थ:

मैं श्रीरामचन्द्र को नमस्कार करता हूँ, जो सुग्रीव के मित्र, परम पवित्र, सीता के पति, नवमेघ के समान श्यामवर्ण, और करुणा के सागर हैं। उनके शत-पत्र रूपी नेत्र सभी जीवों पर दया करते हैं।

श्लोक 2:

संसारसारं निगमप्रचारं धर्मावतारं हृतभूमिभारम् ।

सदाऽविकारं सुखसिन्धुसारं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥

अर्थ:

मैं श्रीरामचन्द्र को नमस्कार करता हूँ, जो संसार के सार, वेद-प्रचारक, धर्मावतार, और धरती के भार को हटाने वाले हैं। वे सदा अविचल हैं और सुख के सागर के समान हैं।

श्लोक 3:

लक्ष्मीविलासं जगतां निवासं लङ्काविनाशं भुवनप्रकाशम् ।

भूदेववासं शरदिन्दुहासं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥

अर्थ:

मैं श्रीरामचन्द्र को नमस्कार करता हूँ, जो लक्ष्मी के विलास हैं, जगतों के निवास हैं, लङ्का के विनाशकर्ता हैं, और भुवन के प्रकाश हैं। वे भूदेवों के निवास हैं और शरद के चंद्रमा के समान हैं।

श्लोक 4:

मन्दारमालं वचने रसालं गुणैर्विशालं हतसप्ततालम् ।

क्रव्यादकालं सुरलोकपालं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि ॥

अर्थ:

मैं श्रीरामचन्द्र को नमस्कार करता हूँ, जिनके मस्तक पर मन्दारमाला है, जिनके वचनों में रस है, जिनके गुणों की कोई सीमा नहीं है, और जिन्होंने रावण को सात तालों में मा


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