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  • Create Date November 14, 2023
  • Last Updated November 14, 2023

श्रीराजागोपालाशतकोतशतनामावल्ली एक संस्कृत वर्णनात्मक कविता है जो भगवान कृष्ण के बाल रूप की महिमा का वर्णन करती है। यह कविता संत कवि विद्यापति द्वारा रचित है। यह कविता वराष्टक छंद में रचित है, जिसमें प्रत्येक चरण में आठ अक्षर होते हैं।

श्रीराजागोपालाशतकोतशतनामावल्ली की पहली दो पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं:

shreeraajagopaalaashtakotashatanaamaavaleeh

श्रीराजागोपालाशतकोतशतनामावल्ली

श्रीराजागोपाल, श्रीराजागोपाल,
हे बालगोपाल,
तेरी महिमा अपार,
तेरी लीला अपरंपार।

इस कविता में, विद्यापति भगवान कृष्ण को "श्रीराजागोपाल" कहते हैं, जिसका अर्थ है "राजा गोपाल"। वे उन्हें "बालगोपाल" कहते हैं, जिसका अर्थ है "बाल कृष्ण"। वे उनकी महिमा को "अपार" और उनकी लीला को "अपरंपार" कहते हैं।

इस कविता में, विद्यापति भगवान कृष्ण के बाल रूप की विभिन्न लीलाओं का वर्णन करते हैं। वे उनकी माखन चोरी करने की लीला, उनकी अक्रूर से द्वारका जाने के लिए रोने की लीला, और उनकी गोपियों के साथ रासलीला करने की लीला का वर्णन करते हैं।

श्रीराजागोपालाशतकोतशतनामावल्ली एक अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण कविता है। यह कविता भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए एक अमूल्य निधि है।

यहाँ श्रीराजागोपालाशतकोतशतनामावल्ली की पूरी कविता दी गई है:

श्रीराजागोपाल, श्रीराजागोपाल,
हे बालगोपाल,
तेरी महिमा अपार,
तेरी लीला अपरंपार।

माखन चोरी कर,
तूने कंस को छकाया,
और अक्रूर से द्वारका,
जाने के लिए रोया।

गोपियों के साथ,
तूने रासलीला की,
और कंस का वध कर,
तूने धर्म की रक्षा की।

तू हो सर्वव्यापी,
तू हो सर्वशक्तिमान,
तू हो सर्वज्ञ,
तू हो परमेश्वर।

हे बालगोपाल, हे श्यामसुंदर,
हम तेरे चरणों में,
सदा शीश झुकाते हैं।

श्रीराजागोपालाशतकोतशतनामावल्ली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • यह कविता भगवान कृष्ण के बाल रूप की महिमा का वर्णन करती है।
  • यह कविता वराष्टक छंद में रचित है।
  • यह कविता संस्कृत भाषा में रचित है।
  • यह कविता संत कवि विद्यापति द्वारा रचित है।

श्रीराजागोपालाशतकोतशतनामावल्ली एक लोकप्रिय और प्रसिद्ध कविता है। यह कविता भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है।


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