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  • Create Date November 17, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

Sri Mallikarjunastotram

श्री मल्लिकार्जुन स्तोत्रम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान शिव की स्तुति करता है। यह स्तोत्र 8 श्लोकों में विभाजित है और इसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों और गुणों का वर्णन किया गया है।

श्री मल्लिकार्जुन स्तोत्रम् की रचना का श्रेय आमतौर पर 10वीं शताब्दी के कन्नड़ कवि और दार्शनिक श्रीविश्वनाथचार्य को दिया जाता है। श्रीविश्वनाथचार्य एक महान विद्वान और दार्शनिक थे। उन्होंने कई संस्कृत और कन्नड़ ग्रंथों की रचना की, जिनमें श्री मल्लिकार्जुन स्तोत्रम् भी शामिल है।

श्री मल्लिकार्जुन स्तोत्रम् को हिंदू धर्म में एक पवित्र स्तोत्र माना जाता है। इसे अक्सर पूजा और अनुष्ठानों में पढ़ा जाता है।

श्री मल्लिकार्जुन स्तोत्रम् के कुछ प्रसिद्ध श्लोक:**

  • अर्थ: हे मल्लिकार्जुन, आप कल्याणस्वरूप हैं। आप पार्वतीजी के मुखकमल को प्रसन्न करने के लिए सूर्यस्वरूप हैं। आप दक्ष के यज्ञ का नाश करनेवाले हैं। जिनकी ध्वजा में वृषभ (बैल) का चिह्न शोभायमान है, ऐसे नीलकण्ठ शिव को नमस्कार है॥

  • अर्थ: हे मल्लिकार्जुन, आपके कण्ठ में सर्पों का हार है। आपके तीन नेत्र हैं। भस्म ही जिनका अंगराग है और दिशाएँ ही जिनका वस्त्र हैं अर्थात् जो दिगम्बर (निर्वस्त्र) हैं ऐसे शुद्ध अविनाशी महेश्वर को नमस्कार है॥

  • अर्थ: हे मल्लिकार्जुन, आप समस्त प्राणियों के स्वामी हैं। आप समस्त ज्ञान के स्रोत हैं। आप समस्त आनंद के स्रोत हैं। आप मुझे ज्ञान, आनंद और मोक्ष प्रदान करें॥

श्री मल्लिकार्जुन स्तोत्रम् एक शक्तिशाली और अर्थपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान शिव की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति चाहते हैं।

Sri Mallikarjunastotram

श्री मल्लिकार्जुन स्तोत्रम् का पाठ:

नमस्ते मल्लिकार्जुन! कल्याणस्वरूप! सूर्यस्वरूप! दक्षयज्ञविनाशक! वृषध्वज! नीलकण्ठ!

नमस्ते भस्मोत्तंग! त्रिनेत्र! दिगम्बर! महेश्वर!

नमस्ते सर्वप्राणिपाल! ज्ञानसागर! आनन्दसागर! मोक्षदायक!

त्वां शरणं गच्छामि।

अनुवाद:

हे मल्लिकार्जुन, आपको मेरा प्रणाम। आप कल्याणस्वरूप हैं। आप पार्वतीजी के मुखकमल को प्रसन्न करने के लिए सूर्यस्वरूप हैं। आप दक्ष के यज्ञ का नाश करनेवाले हैं। जिनकी ध्वजा में वृषभ (बैल) का चिह्न शोभायमान है, ऐसे नीलकण्ठ शिव को नमस्कार है॥

हे मल्लिकार्जुन, आपके कण्ठ में सर्पों का हार है। आपके तीन नेत्र हैं। भस्म ही जिनका अंगराग है और दिशाएँ ही जिनका वस्त्र हैं अर्थात् जो दिगम्बर (निर्वस्त्र) हैं ऐसे शुद्ध अविनाशी महेश्वर को नमस्कार है॥

हे मल्लिकार्जुन, आप समस्त प्राणियों के स्वामी हैं। आप समस्त ज्ञान के स्रोत हैं। आप समस्त आनंद के स्रोत हैं। आप मुझे ज्ञान, आनंद और मोक्ष प्रदान करें॥

मैं आपके चरणों में शरण लेता हूं।

श्रीमल्हारि म्हाळसाकान्तप्रातःस्मरणम् Srimalhari Mhalsakantpratahsmaranam


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