• Version
  • Download 778
  • File Size 0.00 KB
  • File Count 1
  • Create Date October 6, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

श्रीचामुंडास्तोत्रम् २ एक संस्कृत स्तोत्र है जो हिंदू देवी चामुंडा की स्तुति में लिखा गया है। यह स्तोत्र देवी चामुंडा के रूप और शक्तियों की स्तुति करता है। यह स्तोत्र देवी चामुंडा के एक विशेष रूप, चर्ममुण्डधारिणी की स्तुति करता है। चर्ममुण्डधारिणी देवी चामुंडा का एक रूप है जो उनके बालों में पहने जाने वाले चर्ममुण्ड से जुड़ा हुआ है।

श्रीचामुंडास्तोत्रम् २ के कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:

  • स्तोत्र की शुरुआत में, भक्त देवी चामुंडा की छवि को अपने मन में लाते हैं। इससे उन्हें देवी के साथ एक आध्यात्मिक संबंध स्थापित करने में मदद मिलती है।
  • स्तोत्र के पहले श्लोक में, देवी चामुंडा को "चर्ममुण्डधारिणी" कहा गया है।
  • स्तोत्र के शेष श्लोकों में, देवी चामुंडा की स्तुति की गई है। इन श्लोकों में, देवी को सभी दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाली और भक्तों की रक्षा करने वाली के रूप में वर्णित किया गया है।
  • स्तोत्र के अंत में, भक्त देवी चामुंडा से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें सभी बाधाओं को दूर करने और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करें।

श्रीचामुंडास्तोत्रम् २ एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को देवी चामुंडा की कृपा प्राप्त करने और उनके आशीर्वाद से जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।

श्रीचामुंडास्तोत्रम् २ के पाठ से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं:

  • यह स्तोत्र भक्तों को देवी चामुंडा की कृपा प्राप्त करने में मदद करता है।
  • यह स्तोत्र भक्तों को जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
  • यह स्तोत्र भक्तों को सभी बाधाओं को दूर करने में मदद करता है।
  • यह स्तोत्र भक्तों को मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है।

श्रीचामुंडास्तोत्रम् २ को पढ़ने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जा सकती है:

  1. एकांत स्थान में एक स्वच्छ आसन पर बैठ जाएं।
  2. देवी चामुंडा का ध्यान करें।
  3. स्तोत्र का पाठ करें।
  4. स्तोत्र के अंत में, देवी चामुंडा से प्रार्थना करें।

श्रीचामुंडास्तोत्रम् २ एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को देवी चामुंडा की कृपा प्राप्त करने और उनके आशीर्वाद से जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

श्रीचामुंडास्तोत्रम् २ के कुछ प्रमुख श्लोक इस प्रकार हैं:

  • प्रथम श्लोक:

जय सर्वगते देवि चर्ममुण्डधरे वरे । जय दैत्यकुलोच्छेददक्षे दक्षात्मजे शुभे ॥ १ ॥

अर्थ:

हे सर्वगते देवि, चर्ममुण्ड धारण करने वाली, हे दैत्यकुलोच्छेददक्षे, दक्षात्मजे, शुभे, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

  • द्वितीय श्लोक:

कालरात्रि जयाचिन्त्ये नवम्यष्टमिवल्लभे । त्रिनेत्रे त्र्यम्बकाभीष्टे जय देवि सुरार्चिते ॥ २ ॥

अर्थ:

हे कालरात्रि, जयाचिन्त्ये, नवम्यष्टमिवल्लभे, हे त्रिनेत्रे, त्र्यम्बका, अभीष्टे, हे देवि, सुरार्चिते, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

  • अंतिम श्लोक:

भीमरूपे सुरूपे च महाविद्ये महाबले । महोदये महाकाये जयदेवि महाव्रते ॥ १४ ॥

अर्थ:

हे भीमरूपे, सुरूपे, च, महाविद्ये, महाबले, महोदये, महाकाये, जयदेवि, महाव्रते, तुम्हारी जय


Download

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *