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  • Create Date October 16, 2023
  • Last Updated October 16, 2023

श्रीगोसांकपंचविंशति एक वैष्णव स्तोत्र है जो भगवान चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख शिष्य, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र पचास श्लोकों में विभाजित है, और प्रत्येक श्लोक में श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के एक अलग गुण या उपलब्धि की स्तुति की गई है।

श्रीगोसांकपंचविंशति की रचना श्रील कृष्णदास कविराज ने की थी। यह स्तोत्र श्री चैतन्य महाप्रभु और उनके भक्तों द्वारा नियमित रूप से पढ़ा और गाया जाता है।

श्रीगोसांकपंचविंशति के कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • श्रील भक्तिविनोद ठाकुर भगवान चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख शिष्य थे।
  • वे एक महान विद्वान, एक कुशल कवि और एक भक्ति के महान भक्त थे।
  • वे भक्ति के सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझाते थे और उन्हें दूसरों को सिखाते थे।
  • वे भक्ति के मार्ग पर चलने में लोगों की मदद करते थे।

श्रीगोसांकपंचविंशति एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यह स्तोत्र भक्तों को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने और मोक्ष प्राप्त करने में भी मदद कर सकता है।

श्रीगोसांकपंचविंशति का पाठ हिंदी में इस प्रकार है:

श्रीगोसांकपंचविंशति

श्लोक १

नमो नमो भक्तिविनोद, तुम हो भगवान चैतन्य महाप्रभु के शिष्य। तुम हो एक महान विद्वान, तुम हो एक कुशल कवि, तुम हो एक भक्ति के महान भक्त।

श्लोक २

तुमने भक्ति के सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझाया, और उन्हें दूसरों को सिखाया। तुमने भक्ति के मार्ग पर चलने में लोगों की मदद की, और उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद की।

श्लोक ३

तुमने भगवान चैतन्य महाप्रभु के संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और तुमने भक्ति के मार्ग पर चलने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि की। तुम एक महान गुरु और एक महान भक्त थे, और तुम्हारा प्रभाव आज भी महसूस किया जाता है।

श्रीगोसांकपंचविंशति का पाठ संस्कृत में इस प्रकार है:

श्रीगोसांकपंचविंशति

श्लोक १

नमो नमो भक्तिविनोद, त्वं एव चैतन्य महाप्रभु शिष्य। त्वं एव महान विद्वान्, त्वं एव कुशल कवि, त्वं एव भक्ति महान भक्त।

श्लोक २

त्वं एव भक्ति सिद्धान्तं स्पष्टम् आख्याय, त्वं एव भक्तान् ज्ञानेन समन्वितम्। त्वं एव भक्ति मार्गे गतिं प्रदर्शय, त्वं एव मोक्षं प्रापय।

श्लोक ३

त्वं एव चैतन्य महाप्रभु सन्देशं प्रसारय, त्वं एव भक्तानां संख्यां वृद्धिय। त्वं एव महान गुरु, त्वं एव महान भक्त, त्वं एव आजुपि प्रभावी।

श्रीगोसांकपंचविंशति के तीन खंड हैं:

  • प्रथम खंड: श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के शिष्य होने का वर्णन करता है।
  • द्वितीय खंड: श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के गुणों और उपलब्धियों का वर्णन करता है।
  • तृतीय खंड: श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के प्रभाव का वर्णन करता है।

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