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- Create Date November 17, 2023
- Last Updated November 17, 2023
श्रीगोपालाष्टक एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण के बाल रूप की स्तुति करता है। इस स्तोत्र में भगवान कृष्ण को एक बालक के रूप में वर्णित किया गया है, जो अपनी लीलाओं से सभी को मोहित कर लेते हैं।
श्रीगोपालाष्टक के छंद निम्नलिखित हैं:
Srigopalashtakam
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विहरत स्वच्छन्दं आनन्दकन्दं, श्रीव्रजचन्दं ब्रह्मपरम ।।
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पूरणशशिवदनं, शोभासदनं, जित-छबिमदनं रूपवरम् ।।
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हलधरवरवीरं, श्यामशरीरं, गुणगम्भीरं धीरधरम् ।।
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राजत बनमाला, रूपविशाला, चाल मराला सुरतहरम् ।।
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कुण्डलधृतकरणं, गिरिवरधरणं, निज-जन शरणं कृपाकरम् ।।
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गोपिन कृतअंगं, ललित-त्रिभंगं, लज्जित अनंगं निरखि परम् ।।
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जलधरवरश्यामं, पूरणकामं, अति सुखधामं दुःखहरम् ।।
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वृन्दावन-क्रीड़ित असुरन-पीड़ित, ब्रजतिय-व्रीड़ित रसिकवरम् ।।
श्रीगोपालाष्टक का अर्थ निम्नलिखित है:
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हे कृष्ण, आप स्वच्छन्द विचरण करते हैं, और आप आनंद के कंद हैं। आप श्रीव्रजचंद हैं, और आप ब्रह्म के परम रूप हैं।
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आपके मुख में पूर्णिमा का चाँद है, आप शोभा के सदन हैं, और आप अपनी छवि से सबको जीत लेते हैं। आप रूप के वरण हैं।
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आप हलधर हैं, आप वीर हैं, आप श्याम वर्ण के हैं, आप गुणों में गम्भीर हैं, और आप धीर हैं।
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आपके गले में मोतियों की माला है, आपका रूप विशालता से भरा है, आपकी चाल मराल जैसी है, और आप सुरत हरने वाले हैं।
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आपके कानों में कुण्डल हैं, आप गिरिवर को धारण करते हैं, आप अपने भक्तों की शरण हैं, और आप कृपा करने वाले हैं।
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आप गोपियों के द्वारा सजे हुए हैं, आपका त्रिभंग मुद्रा है, आप लज्जित हैं, और आपका रूप अनंग है।
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आप जलधर के समान श्याम हैं, आप पूर्णकाम हैं, आप अति सुख के धाम हैं, और आप दुःखों को हरने वाले हैं।
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आप वृन्दावन में क्रीड़ा करते हैं, आप असुरों को पीड़ित करते हैं, और आप ब्रज के लोगों के द्वारा व्रीड़ित होते हैं। आप रसिक वर हैं।
श्रीगोपालाष्टक एक बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण के बाल रूप की सुंदरता और आकर्षण को दर्शाता है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण के भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान कृष्ण के बाल रूप के प्रति प्रेम और आस्था बढ़ती है।
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