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  • Create Date November 23, 2023
  • Last Updated November 23, 2023

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण की स्तुति करता है। यह स्तोत्र 1080 श्लोकों में विभाजित है।

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली की रचना का श्रेय 14वीं शताब्दी के कवि और संत श्रीवल्लभाचार्य को दिया जाता है। यह स्तोत्र वल्लभाचार्य के प्रेम मार्ग के सिद्धांतों पर आधारित है।

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली में, भगवान कृष्ण को प्रेम के सागर के रूप में बताया गया है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण की भक्ति के मार्ग को प्रदर्शित करता है।

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली के कुछ प्रमुख श्लोक निम्नलिखित हैं:

Srikrishnaashtottarashatanamavali premamritarasayanakhaya

श्लोक 1:

नमस्ते मधुसूदनाय नमस्ते गोपीवल्लभाय । नमस्ते कृष्णाय नमस्ते वासुदेवाय ॥

अर्थ:

हे मधुसूदन! आपको नमस्कार है। हे गोपीवल्लभ! आपको नमस्कार है। हे कृष्ण! आपको नमस्कार है। हे वासुदेव! आपको नमस्कार है।

श्लोक 2:

नमस्ते गोविन्दाय नमस्ते मुरारिणे । नमस्ते गोपिकामनोहरवे नमस्ते सारवे ॥

अर्थ:

हे गोविंद! आपको नमस्कार है। हे मुरारि! आपको नमस्कार है। हे गोपिकाओं के मनोहर! आपको नमस्कार है। हे सार! आपको नमस्कार है।

श्लोक 3:

नमस्ते दृगविवेचनाय नमस्ते मधुरभाषिणे । नमस्ते श्यामवर्णाय नमस्ते मधुराप्रिये ॥

अर्थ:

हे दृगविवेचना! आपको नमस्कार है। हे मधुरभाषी! आपको नमस्कार है। हे श्यामवर्ण! आपको नमस्कार है। हे मधुरप्रिय! आपको नमस्कार है।

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली का पाठ करने से माना जाता है कि भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। यह पाठ विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है जो भगवान कृष्ण की भक्ति करते हैं।

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली के कुछ अन्य लाभ निम्नलिखित हैं:

  • यह मानसिक शांति और एकाग्रता प्रदान करता है।
  • यह आध्यात्मिक विकास में मदद करता है।
  • यह प्रेम की प्राप्ति में सहायक है।

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका है।

प्रेममृतरसायना शब्द का अर्थ है "प्रेम के अमृत के सागर में रहने वाला"। इस शब्द का प्रयोग श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली में भगवान कृष्ण के वर्णन के लिए किया गया है।

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली के 1080 श्लोकों में से 981 श्लोकों में भगवान कृष्ण को प्रेम के सागर के रूप में वर्णित किया गया है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण की प्रेममय लीलाओं का वर्णन करता है।

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली के श्लोकों से पता चलता है कि भगवान कृष्ण प्रेम के अमृत के सागर में विराजमान हैं। वे प्रेम के सागर के स्रोत हैं। वे प्रेम के सागर के स्वामी हैं।

श्रीकृष्णाष्टोत्तरसहस्रनामावली का पाठ करने से भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रेम के अमृत का अनुभव होता है। यह पाठ भक्तों के जीवन में प्रेम, शांति, और आनंद का संचार करता है।


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