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  • Create Date November 16, 2023
  • Last Updated November 16, 2023

Shrikantheshastutih

श्रीकंठेशस्तुति एक प्राचीन स्तोत्र है जो भगवान विष्णु के एक रूप, श्रीकंठ की स्तुति में रचित है। यह स्तोत्र 10 श्लोकों में विभाजित है। प्रत्येक श्लोक में श्रीकंठ के एक विशेष रूप या गुण का वर्णन किया गया है।

श्रीकंठेशस्तुति के रचयिता अज्ञात हैं। यह स्तोत्र भगवान विष्णु के भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और उन्हें उनके सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

श्रीकंठेशस्तुति के कुछ प्रमुख श्लोक और उनके अर्थ निम्नलिखित हैं:

  • प्रथम श्लोक: इस श्लोक में भगवान विष्णु को श्रीकंठ नाम से संबोधित किया गया है।
  • द्वितीय श्लोक: इस श्लोक में भगवान विष्णु को अनादि, अनंत और सर्वव्यापी बताया गया है।
  • तृतीय श्लोक: इस श्लोक में भगवान विष्णु को सृष्टिकर्ता, पालनहार और संहारक बताया गया है।
  • चतुर्थ श्लोक: इस श्लोक में भगवान विष्णु को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी और सर्वकल्याणकारी बताया गया है।
  • पंचम श्लोक: इस श्लोक में भगवान विष्णु को भक्तों के कष्टों को दूर करने वाला बताया गया है।
  • षष्ठ श्लोक: इस श्लोक में भगवान विष्णु को भक्तों को मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है।
  • सप्तम श्लोक: इस श्लोक में भगवान विष्णु की स्तुति की गई है।

Shrikantheshastutih

श्रीकंठेशस्तुति का पाठ करने से भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और उन्हें उनके सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

श्रीकंठेशस्तुति के कुछ प्रमुख श्लोकों का हिंदी अनुवाद निम्नलिखित है:

प्रथम श्लोक

श्रीकंठेश! त्वमसि सर्वाधार: त्वमेव त्वमेव त्वमेव। सर्वदेवानामपि त्वमेव त्वमेव त्वमेव त्वमेव।

अर्थ:

हे श्रीकंठेश! तुम ही सर्वाधार हो। तुम ही सब कुछ हो। तुम ही सभी देवताओं के भी आधार हो। तुम ही सब कुछ हो।

द्वितीय श्लोक

अनादि: अज: सदाशिव: सर्वव्यापी: त्वमेव। सृष्टिस्थितिसंहारकारक: त्वमेव त्वमेव त्वमेव।

अर्थ:

तुम अनादि, अजन्मा और सदाशिव हो। तुम सर्वव्यापी हो। तुम ही सृष्टि, पालन और संहार के कर्ता हो। तुम ही सब कुछ हो।

तृतीय श्लोक

सर्वशक्तिमान: सर्वज्ञ: सर्वकल्याणकारी: त्वमेव। भक्तानां त्वं भवानि: त्वमेव त्वमेव त्वमेव।

अर्थ:

तुम सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वकल्याणकारी हो। तुम ही भक्तों के भवानि हो। तुम ही सब कुछ हो।

चतुर्थ श्लोक

कष्टनाशन: त्वमेव मोक्षप्रदाता त्वमेव। त्वमेव त्वमेव त्वमेव सर्वेषां त्वमेव भव।

अर्थ:

तुम ही कष्टों को दूर करने वाले हो। तुम ही मोक्ष प्रदान करने वाले हो। तुम ही सब कुछ हो। तुम ही सभी के लिए बनो।

पंचम श्लोक

नमो नमस्ते श्रीकंठेशाय नमो नमस्ते श्रीकंठेशाय। नमो नमस्ते श्रीकंठेशाय सर्वदा नमस्ते नमस्ते।

अर्थ:

हे श्रीकंठेश! तुम्हें बार-बार प्रणाम है। हे श्रीकंठेश! तुम्हें बार-बार प्रणाम है। हे श्रीकंठेश! तुम्हें बार-बार प्रणाम है। तुम्हें सदा प्रणाम है।

श्रीकालभैरवाष्टकं Srikaalbhairavashtakan


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