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  • Create Date October 8, 2023
  • Last Updated October 8, 2023
शिवकृत गणेशस्तुति एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान गणेश की प्रशंसा करता है। यह स्तोत्र 13 श्लोकों में विभाजित है, और प्रत्येक श्लोक में गणेश के विभिन्न रूपों और गुणों की प्रशंसा की जाती है।

स्तोत्र की शुरुआत में, गणेश को "अजं निर्विकल्पं निराकारमेकम" (अजन्मा, निर्विकल्प, निराकार, एक) के रूप में संबोधित किया जाता है। फिर, गणेश के विभिन्न रूपों का वर्णन किया जाता है, जैसे कि उनके लाल रंग, उनके हाथ में पाश और अंकुश, और उनके सिर पर चंद्रमा। स्तोत्र के अंत में, गणेश से प्रार्थना की जाती है कि वे भक्तों को सभी बाधाओं से मुक्त करें और उन्हें सफलता प्रदान करें।

शिवकृत गणेशस्तुति का पाठ करने का सबसे अच्छा समय मंगलवार या रविवार को माना जाता है। भक्त स्तोत्र को घर पर या मंदिर में बैठे हुए पाठ कर सकते हैं। स्तोत्र को पाठ करते समय, भक्तों को गणेश की छवि या मूर्ति के सामने बैठना चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए।

शिवकृत गणेशस्तुति का पाठ करने से भक्तों को निम्नलिखित लाभ होने की उम्मीद है:

  • सभी बाधाओं से मुक्ति
  • सफलता और समृद्धि
  • आध्यात्मिक विकास

शिवकृत गणेशस्तुति एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को कई तरह से लाभ पहुंचा सकता है।

शिवकृत गणेशस्तुति का पाठ निम्नलिखित है:

श्लोक 1

अजं निर्विकल्पं निराकारमेकम, प्रणवात्मकं त्रिदशात्मकं नमः।

अर्थ

हे गणेश, आप अजन्मा, निर्विकल्प, निराकार, और एक हैं। आप प्रणव और त्रिदेवों के भी स्वरूप हैं। आपको नमस्कार।

श्लोक 2

वक्रतुण्डं महाकायं सुरप्रियं, गजवदनं विनायकं नमः।

अर्थ

हे गणेश, आपके वक्रतुण्ड, महाकाय, सुरप्रिय, और गजवदन रूप की मैं स्तुति करता हूं।

श्लोक 3

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशवराभया, दारिद्र्यविनाशं विनायकं नमः।

अर्थ

हे गणेश, आपके एकदंत, चतुर्हस्त, पाशवराभया, और दारिद्र्यविनाश रूप की मैं स्तुति करता हूं।

श्लोक 4

सर्वज्ञं सर्वशक्तिं सर्ववरदं, सर्वकार्यसिद्धिं विनायकं नमः।

अर्थ

हे गणेश, आप सर्वज्ञ, सर्वशक्ति, सर्ववरद, और सर्वकार्यसिद्धि रूप हैं। आपको नमस्कार।

श्लोक 5

मूषकवाहनं गजवाहनं, वृषवाहनं विनायकं नमः।

अर्थ

हे गणेश, आप मूषक, गज, और वृष वाहन पर विराजमान हैं। आपको नमस्कार।

श्लोक 6

अष्टभुजं त्रिनेत्रं त्रिशूलधरं, सिद्धिबुद्धिप्रदं विनायकं नमः।

अर्थ

हे गणेश, आपके आठ हाथ हैं, तीन नेत्र हैं, और आप त्रिशूल धारण करते हैं। आप सिद्धि और बुद्धि प्रदान करते हैं। आपको नमस्कार।

श्लोक 7

सुरगणपतिं महेश्वरपुत्रं, ब्रह्माविष्णुमहेश्वरेश्वरं नमः।

अर्थ

हे गणेश, आप देवताओं के स्वामी, शिव के पुत्र, और ब्रह्मा, विष्णु, और शिव के भी स्वरूप हैं। आपको नमस्कार।

श्लोक 8

**ऋद्धिसिद्धियुक्तं वरदं, सर्वार्थसिद्धिं विनायकं


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