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  • Create Date November 10, 2023
  • Last Updated November 10, 2023

Vajrapanjaropanishat

वज्रपाञ्जर उपनिषद् एक संस्कृत उपनिषद् है जो भगवान शिव की पूजा के लिए एक महत्वपूर्ण पाठ है। यह उपनिषद् भगवान शिव को वज्रपाणि, यानी "वज्र का हाथ" के रूप में वर्णित करता है।

उपनिषद् के अनुसार, भगवान शिव वज्र, यानी "इच्छा शक्ति" के प्रतीक हैं। वे सभी प्राणियों की इच्छाओं को पूरा करते हैं। पाञ्जर, यानी "हाथ", भगवान शिव की शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक है।

उपनिषद् में कहा गया है कि जो कोई भी भगवान शिव की पूजा वज्रपाञ्जर के रूप में करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।

उपनिषद् के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • भगवान शिव वज्रपाणि, यानी "वज्र का हाथ" के रूप में पूजे जाते हैं।
  • वज्र, यानी "इच्छा शक्ति" के प्रतीक हैं।
  • पाञ्जर, यानी "हाथ", भगवान शिव की शक्ति और नियंत्रण का प्रतीक है।
  • जो कोई भी भगवान शिव की पूजा वज्रपाञ्जर के रूप में करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।

Vajrapanjaropanishat

उपनिषद् का महत्व

वज्रपाञ्जर उपनिषद् एक महत्वपूर्ण धार्मिक पाठ है जो भगवान शिव की महिमा और शक्ति को दर्शाता है। यह उपनिषद् शिव भक्तों के बीच लोकप्रिय है और इसका पाठ अक्सर मंदिरों और घरों में किया जाता है।

उपनिषद् वज्रपाणि रूप में भगवान शिव की पूजा के महत्व पर जोर देता है। यह उपनिषद् बताता है कि जो कोई भी भगवान शिव की इस रूप में पूजा करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है।

वरदानदीतत्तीरस्थमधुकेश्वरस्तुतिः VARADANDITATTIRSTHAMDHUKESHWARSTUTIH


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