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  • Create Date November 25, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

प्रदोष स्तोत्र अष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसकी रचना 15वीं शताब्दी में भक्तिकाल के कवि, महादेवी वर्मा ने की थी। यह स्तोत्र प्रदोष काल में भगवान शिव की स्तुति करता है।

प्रदोष स्तोत्र अष्टकम् के 8 श्लोक हैं, और प्रत्येक श्लोक में 8 चरणों होते हैं।

महादेवी वर्मा एक महान भक्ति संत थीं। वे भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। प्रदोष स्तोत्र अष्टकम् में महादेवी वर्मा भगवान शिव के रूप, गुणों और शक्तियों की प्रशंसा करती हैं। वे शिव को ब्रह्मांड का सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता मानती हैं।

प्रदोष स्तोत्र अष्टकम् एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो प्रदोष काल में भगवान शिव की महिमा का अनुभव कराता है।

प्रदोष स्तोत्र अष्टकम् के कुछ महत्वपूर्ण विचार इस प्रकार हैं:

Pradosh Stotra Ashtakam

  • प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है।
  • भगवान शिव ब्रह्मांड के सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं।
  • भगवान शिव सभी प्राणियों के रक्षक हैं।

प्रदोष स्तोत्र अष्टकम् हिंदू धर्म में एक अमूल्य धरोहर है। यह स्तोत्र प्रदोष काल में भगवान शिव की भक्ति के लिए प्रेरित करता है।

प्रदोष स्तोत्र अष्टकम् के 8 श्लोक इस प्रकार हैं:

प्रदोषे समये शिवं ध्यायेत् प्रणम्य सर्व पापनाशकं सर्वोपकारकम्।

सर्वं जगत् सृष्टिं पालनं संहारं करोति सर्वेश्वरं सर्वज्ञं सर्वेष्टं शिवं भजे।

त्रिनेत्रं त्रिशूलधारीं गौरीशं हरिम् नंदीश्वरं गंगाधरं सर्वेशं शिवं भजे।

अनन्तं अनंतगुणं अनंतरूपं शिवं अनंतकालं शंकरं सर्वेशं शिवं भजे।

सर्वेश्वरं सर्वज्ञं सर्वेष्टं शिवं भजे सर्व पापनाशकं सर्वोपकारकम्।

प्रदोषे समये शिवं ध्यायेत् प्रणम्य सर्व पापनाशकं सर्वोपकारकम्।

Pradosh Stotra Ashtakam

अर्थ:

  • "मैं प्रदोष काल में भगवान शिव का ध्यान करता हूँ और उन्हें प्रणाम करता हूँ। वे सभी पापों को दूर करने वाले हैं, और सभी प्राणियों के लिए कल्याणकारी हैं।"
  • "वे ब्रह्मांड की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं। वे सर्वशक्तिमान हैं, सर्वज्ञ हैं, और सभी प्राणियों के इष्ट देव हैं। मैं उन्हें शिव कहकर पुकारता हूँ।"
  • "वे तीन नेत्रों वाले हैं, त्रिशूलधारी हैं, गौरी के पति हैं, और हरि हैं। वे नंदी के स्वामी हैं, गंगाधर हैं, और सभी देवताओं के स्वामी हैं। मैं उन्हें शिव कहकर पुकारता हूँ।"
  • "वे अनंत हैं, अनंत गुणों वाले हैं, और अनंत रूपों वाले हैं। वे अनंत काल से शंकर हैं, और सभी देवताओं के स्वामी हैं। मैं उन्हें शिव कहकर पुकारता हूँ।"
  • "वे सर्वशक्तिमान हैं, सर्वज्ञ हैं, और सभी प्राणियों के इष्ट देव हैं। मैं उन्हें शिव कहकर पुकारता हूँ।"
  • "मैं प्रदोष काल में भगवान शिव का ध्यान करता हूँ और उन्हें प्रणाम करता हूँ। वे सभी पापों को दूर करने वाले हैं, और सभी प्राणियों के लिए कल्याणकारी हैं।"

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