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  • Create Date October 9, 2023
  • Last Updated October 9, 2023
पंचशलोकी गणेश पुराण एक छोटा सा ग्रंथ है जो भगवान गणेश की स्तुति करता है। यह ग्रंथ केवल पाँच श्लोकों का है, और इसे प्राचीन काल में लिखा गया था।

पंचशलोकी गणेश पुराण के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:

  • यह भक्तों को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने में मदद करता है।
  • यह भक्तों को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है।
  • यह भक्तों को मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है।

पंचशलोकी गणेश पुराण के कुछ महत्वपूर्ण छंद निम्नलिखित हैं:

श्लोक 1:

एकदन्तं महाकायं लम्बोदरं शूलपाणिम्। धूम्रवर्णं गजाननं वक्रतुण्डं नमामि॥

अर्थ:

मैं एकदन्त, महाकाय, लम्बोदर, शूलधारी, धूम्रवर्ण, गजानन और वक्रतुण्ड भगवान गणेश को प्रणाम करता हूं।

श्लोक 2:

विनायकं भवभयहरं सर्वार्थसाधिकं। शुभं शीघ्रप्रदायकं नमामि विनायकम्॥

अर्थ:

मैं विघ्नहर्ता, समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाले, शुभ प्रदान करने वाले और शीघ्र प्रसन्न होने वाले भगवान विनायक को प्रणाम करता हूं।

श्लोक 3:

गणेशं ऋद्धिसिद्धिप्रदं सर्वशत्रुविनाशनं। सर्वार्थसिद्धिदायकं नमामि गणेशम्॥

अर्थ:

मैं ऋद्धि और सिद्धि प्रदान करने वाले, समस्त शत्रुओं का नाश करने वाले, और सभी कार्यों को सिद्ध करने वाले भगवान गणेश को प्रणाम करता हूं।

श्लोक 4:

सिद्धिबुद्धिप्रदातारं सर्वपापहारकम्। आयुरारोग्यसुखप्रदं नमामि गणेशम्॥

अर्थ:

मैं सिद्धि और बुद्धि प्रदान करने वाले, समस्त पापों को दूर करने वाले, आयु, आरोग्य और सुख प्रदान करने वाले भगवान गणेश को प्रणाम करता हूं।

श्लोक 5:

सर्वार्थार्थसिद्धिदातारं ऋद्धिसिद्धिदायकम्। सर्वपापहारकं नमामि विनायकम्॥

अर्थ:

मैं समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाले, ऋद्धि और सिद्धि प्रदान करने वाले, समस्त पापों को दूर करने वाले भगवान विनायक को प्रणाम करता हूं।

पंचशलोकी गणेश पुराण एक शक्तिशाली ग्रंथ है जो भक्तों को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यह भक्तों को आध्यात्मिक और भौतिक दोनों स्तरों पर सफलता प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

पंचशलोकी गणेश पुराण को पढ़ने के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं:

  • पंचशलोकी गणेश पुराण को एक शांत और ध्यान केंद्रित करने वाले स्थान पर पढ़ना चाहिए।
  • पंचशलोकी गणेश पुराण को धीरे-धीरे और ध्यान से पढ़ना चाहिए।
  • पंचशलोकी गणेश पुराण को पढ़ते समय, भक्त को भगवान गणेश की छवि या मूर्ति के सामने बैठना चाहिए और उनकी स्तुति करनी चाहिए।

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