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  • Create Date October 25, 2023
  • Last Updated October 25, 2023

योगदर्शन में, निरोधलक्षणम (nirodhalakṣaṇam) एक शब्द है जिसका अर्थ है "निरोध की विशेषता"। यह ध्यान की एक अवस्था को संदर्भित करता है जिसमें चित्त की सभी गतिविधियाँ पूरी तरह से समाप्त हो जाती हैं। निरोधलक्षणम को योगदर्शन के आठ अंगों में से एक माना जाता है, और यह मोक्ष की ओर ले जाने वाली एक महत्वपूर्ण अवस्था है।

निरोधलक्षणम की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

निरोधलक्षणम् nirodhalakshanam

  • चित्त की सभी गतिविधियों का समापन: निरोधलक्षणम की अवस्था में, चित्त किसी भी प्रकार की गतिविधि में संलग्न नहीं होता है। यह विचार, भावना, इच्छा या धारणा से मुक्त होता है।
  • चेतना की प्रबलता: निरोधलक्षणम की अवस्था में, चेतना अपनी पूर्णता में प्रकट होती है। यह स्पष्ट, तीक्ष्ण और अप्रतिबिंबित होती है।
  • सुख का अनुभव: निरोधलक्षणम की अवस्था में, व्यक्ति अत्यधिक आनंद का अनुभव करता है। यह एक आंतरिक शांति और संतुष्टि की स्थिति है।

निरोधलक्षणम को प्राप्त करने के लिए, साधक को ध्यान की एक लंबी और कठिन साधना करनी चाहिए। इस साधना में, साधक को चित्त की सभी गतिविधियों को पहचानना और उन्हें समाप्त करना सीखना चाहिए।

निरोधलक्षणम की अवस्था को प्राप्त करने से साधक को मोक्ष की ओर ले जाने वाले कई लाभ होते हैं। इनमें से कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:

  • दुःख से मुक्ति: निरोधलक्षणम की अवस्था में, साधक दुःख से मुक्त हो जाता है। यह क्योंकि चित्त के सभी कारणों को समाप्त कर दिया जाता है।
  • ज्ञान की प्राप्ति: निरोधलक्षणम की अवस्था में, साधक को ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह क्योंकि चेतना अपनी पूर्णता में प्रकट होती है।
  • अद्वैत का अनुभव: निरोधलक्षणम की अवस्था में, साधक अद्वैत का अनुभव करता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति स्वयं और ब्रह्मांड के बीच कोई अंतर नहीं देखता है।

निरोधलक्षणम एक उच्चतम ध्यान की अवस्था है जो साधक को मोक्ष की ओर ले जाती है।


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