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- Create Date October 6, 2023
- Last Updated October 6, 2023
देवीपञ्चरत्नस्तोत्रम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो हिंदू देवी दुर्गा की स्तुति करता है। यह स्तोत्र देवी दुर्गा के पांच रूपों की स्तुति करता है:
- श्रीविद्या - देवी दुर्गा का ज्ञान और शक्ति का रूप।
- भगवती - देवी दुर्गा का प्रेम और दया का रूप।
- माता - देवी दुर्गा का मां का रूप।
- देवी - देवी दुर्गा का सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान रूप।
- शक्ति - देवी दुर्गा का शक्तिशाली और रक्षक रूप।
देविपञ्चरत्नस्तोत्रम् के कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
- स्तोत्र की शुरुआत में, भक्त देवी दुर्गा के पांच रूपों की स्तुति करते हैं।
- स्तोत्र के शेष श्लोकों में, भक्त देवी दुर्गा से अपने जीवन में आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।
- स्तोत्र के अंत में, भक्त देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति की प्रशंसा करते हैं।
देविपञ्चरत्नस्तोत्रम् के पाठ से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं:
- यह स्तोत्र भक्तों को देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करता है।
- यह स्तोत्र भक्तों को जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है।
- यह स्तोत्र भक्तों को सभी बाधाओं को दूर करने में मदद करता है।
- यह स्तोत्र भक्तों को मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है।
देविपञ्चरत्नस्तोत्रम् को पढ़ने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जा सकती है:
- एकांत स्थान में एक स्वच्छ आसन पर बैठ जाएं।
- देवी दुर्गा का ध्यान करें।
- स्तोत्र का पाठ करें।
- स्तोत्र के अंत में, देवी दुर्गा से प्रार्थना करें।
देविपञ्चरत्नस्तोत्रम् के कुछ प्रमुख श्लोक इस प्रकार हैं:
- प्रथम श्लोक:
नमस्ते श्रीविद्या नमस्ते भगवती, नमस्ते माता नमस्ते देवी। नमस्ते शक्ति नमस्ते सर्वमङ्गला, त्वामेव नमस्कृत्य जिह्वामखिलं वदति।
अर्थ:
हे श्रीविद्या, आपको नमस्कार है, हे भगवती, आपको नमस्कार है, हे माता, आपको नमस्कार है, हे देवी, आपको नमस्कार है। हे शक्ति, आपको नमस्कार है, हे सर्वमङ्गला, आपको नमस्कार है, आपको ही नमस्कार करके, जीभ सभी प्रकार की बातें बोलती है।
- द्वितीय श्लोक:
त्वमसि विद्या त्वमेव शक्ति, त्वमेव माता त्वमेव सुखम्। त्वमेव शान्ति त्वमेव निद्रा, त्वमेव सर्वमंगलमङ्गलम।
अर्थ:
आप ही विद्या हैं, आप ही शक्ति हैं, आप ही माता हैं, आप ही सुख हैं। आप ही शान्ति हैं, आप ही निद्रा हैं, आप ही सभी प्रकार की मंगलमङ्गल हैं।
- अंतिम श्लोक:
त्वद्भक्तिं मयि कृपां च देहि, सर्वपापघ्नी भक्तवत्सले। त्वमेव शरणं त्वमेव गतिः, त्वमेव मातृदेवता नमस्ते।
अर्थ:
मुझे आपकी भक्ति और कृपा प्रदान करें, हे भक्तवत्सले, सभी पापों को नष्ट करने वाली। आप ही मेरी शरण हैं, आप ही मेरा गति हैं, आप ही मातृदेवता हैं, आपको नमस्कार है।
देविपञ्चरत्नस्तोत्रम् एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यदि आप देवी दुर्गा की भक्त हैं, तो यह स्तोत्र पढ़ना एक अच्छा तरीका है।
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