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  • Create Date November 16, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

Dakshinaamoortistotram

दक्षिणामूर्तिस्तोत्रम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान शिव के दक्षिणामूर्ति रूप को समर्पित है। यह स्तोत्र शंकराचार्य द्वारा रचित है और यह अद्वैत वेदांत की परंपरा में शिव के ब्रह्म रूप का वर्णन करता है।

स्तोत्र की शुरुआत में, शंकराचार्य भगवान शिव को नमस्कार करते हैं और उनकी कृपा और ज्ञान की याचना करते हैं। फिर, वे दक्षिणामूर्ति रूप का वर्णन करते हैं, जो एक योगी के रूप में बैठा हुआ है, अपने हाथों में ज्ञान के प्रतीक मुद्राएँ धारण किए हुए है।

स्तोत्र में, शंकराचार्य दक्षिणामूर्ति रूप के माध्यम से ब्रह्मांड के रहस्यों को समझाने का प्रयास करते हैं। वे बताते हैं कि कैसे ब्रह्मांड वास्तव में एक ही चेतना का विस्तार है, और कैसे सभी जीव इस चेतना के अंश हैं।

स्तोत्र की समाप्ति में, शंकराचार्य दक्षिणामूर्ति रूप की स्तुति करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें ज्ञान और मुक्ति प्रदान करें।

दक्षिणामूर्तिस्तोत्रम् एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जो हिंदू धर्म में ज्ञान और मुक्ति की खोज करने वाले लोगों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।

Dakshinaamoortistotram

स्तोत्र के कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • ब्रह्मांड वास्तव में एक ही चेतना का विस्तार है।
  • सभी जीव इस चेतना के अंश हैं।
  • ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग ध्यान और आत्म-साक्षात्कार है।

दक्षिणामूर्तिस्तोत्रम् का पाठ करने से आपको निम्नलिखित लाभ हो सकते हैं:

  • आपको ज्ञान और समझ प्राप्त हो सकती है।
  • आपके मन को शांत और स्थिर किया जा सकता है।
  • आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

दक्षिणामूर्तिस्तोत्रम् का पाठ करने के लिए, आप एक साफ और शांत जगह पर बैठ सकते हैं। अपने सामने एक दीपक जलाकर भगवान शिव की तस्वीर या मूर्ति रख सकते हैं। फिर, स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं, प्रत्येक पंक्ति के अर्थ को समझने का प्रयास कर सकते हैं। स्तोत्र का पाठ कम से कम 108 बार करना चाहिए।

मङ्गलाचरणम् ४ mangalaacharanam 4 


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