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  • Create Date October 4, 2023
  • Last Updated October 4, 2023

तारा प्रत्यंगिरा कवच एक संस्कृत स्तोत्र है जो माँ तारा को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। माँ तारा एक शक्तिशाली देवी हैं जिन्हें तंत्र साधना में बहुत महत्व दिया जाता है। तारा प्रत्यंगिरा कवच का पाठ करने से साधक को माँ तारा की कृपा प्राप्त हो सकती है और सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिल सकती है।

तारा प्रत्यंगिरा कवच में 27 श्लोक हैं। स्तोत्र की शुरुआत में, साधक माँ तारा से उनकी रक्षा करने की प्रार्थना करता है। माँ तारा उनकी प्रार्थना सुनती हैं और उन्हें अपनी रक्षा प्रदान करती हैं। स्तोत्र में, माँ तारा के विभिन्न रूपों का वर्णन है जो साधक की रक्षा करते हैं।

तारा प्रत्यंगिरा कवच का पाठ करने से साधक को कई लाभ होते हैं। यह स्तोत्र साधक को सभी प्रकार के संकटों से बचाता है, उसे आध्यात्मिक सिद्धि प्रदान करता है, और उसे लंबी और सुखी जीवन देता है।

तारा प्रत्यंगिरा कवच का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:

  1. सबसे पहले, एक साफ और पवित्र स्थान पर बैठें।
  2. फिर, एक दीपक जलाएं और माँ तारा की पूजा करें।
  3. अब, तारा प्रत्यंगिरा कवच का पाठ करें।
  4. स्तोत्र का पाठ करते समय, माँ तारा पर ध्यान केंद्रित करें।
  5. स्तोत्र का पाठ करने के बाद, माँ तारा से आशीर्वाद मांगें।

तारा प्रत्यंगिरा कवच का पाठ करने से पहले, किसी योग्य गुरु से निर्देश लेना उचित है।

तारा प्रत्यंगिरा कवच के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:

  • सभी प्रकार के संकटों से सुरक्षा
  • आध्यात्मिक सिद्धि
  • लंबी और सुखी जीवन
  • धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति
  • सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति
  • ऋणों से मुक्ति
  • भय से मुक्ति
  • मनोकामनाओं की पूर्ति

तारा प्रत्यंगिरा कवच का पाठ करने से साधक को आध्यात्मिक उन्नति होती है और वह माँ तारा की कृपा प्राप्त करता है।

तारा प्रत्यंगिरा कवच के कुछ संस्कृत श्लोक निम्नलिखित हैं:

ॐ अस्य श्रीताराप्रत्यंगिरा कवचस्य त्रिपुरेश ऋषिः।

अनुष्टुप छन्दः।

श्रीताराप्रत्यंगिरादेवता।

कवचधारणार्थ जपे विनियोगः।

ध्यानम्

ध्यायेद् ताराप्रत्यंगिरीं त्रिनेत्रां त्रिशूलधारिणीम्।

सर्वभूतेषु स्थितां त्रिभुवनमालिनीम्।

इस स्तोत्र का अर्थ है:

"मैं श्रीताराप्रत्यंगिरा कवचं स्तोत्र को प्रणाम करता हूं।

मैं त्रिपुरेश को ऋषि कहता हूं।

मैं अनुष्टुप छंद को विनियोग कहता हूं।

मैं श्रीताराप्रत्यंगिरा को देवता कहता हूं।

मैं कवचधारणार्थ इस स्तोत्र का पाठ करता हूं।"

ध्यान

"मैं तीन नेत्रों वाली, त्रिशूल धारण करने वाली, सभी प्राणियों में स्थित, तीन लोकों को माला पहनाने वाली माँ ताराप्रत्यंगिरा का ध्यान करता हूं।"

तारा प्रत्यंगिरा कवच एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो साधक को माँ तारा की रक्षा प्रदान करता है।


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