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  • Create Date October 25, 2023
  • Last Updated October 25, 2023

चतुश्लोकी 2 एक धार्मिक कविता है जो भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करती है। यह कविता चार श्लोकों में लिखी गई है, और इसका अर्थ है:

श्लोक 1:

वास्तव में न होने पर भी जो कुछ अनिर्वचनीय वस्तु मेरे अतिरिक्त मुझ परमात्मा में दो चंद्रमाओं की तरह मिथ्या ही प्रतीत हो रही है, अथवा विद्यमान होने पर भी आकाश-मंडल के नक्षत्रों में राहुकी भांति जो मेरी प्रतीति नहीं होती, इसे मेरी माया समझनी चाहिए।

श्लोक 2:

माया के आवरण से ढंके हुए मैं ही इस संसार का कारण हूं। जिस तरह एक कलाकार के हाथों में मिट्टी से अनेक प्रकार के आकार बनते हैं, उसी तरह मेरी माया से अनेक प्रकार के जीव और जगत बनते हैं।

श्लोक 3:

जो लोग मेरी माया को समझते हैं, वे मुझमें ही विलीन हो जाते हैं। वे इस संसार के दुखों से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।

श्लोक 4:

हे भक्तों! तुम भी मेरी माया को समझो और मुझमें ही अपना जीवन समर्पित करो। मैं तुम्हारा कल्याण करूंगा और तुम्हें मोक्ष का मार्ग दिखाऊंगा।

चतुश्लोकी 2 एक भक्ति कविता है जो भगवान विष्णु की भक्ति के महत्व को बताती है। यह कविता यह बताती है कि भगवान विष्णु ही इस संसार के सृष्टिकर्ता, धारणकर्ता और संहारकर्ता हैं। वे ही इस संसार के सभी जीवों के स्वामी हैं। जो लोग भगवान विष्णु की भक्ति करते हैं, वे ही इस संसार के दुखों से मुक्त हो सकते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

चतुश्लोकी 2 को अक्सर भक्ति गीतों और भजनों में गाया जाता है। यह कविता हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

चतुःश्लोकी २ Chatushloki 2


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