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  • Create Date October 10, 2023
  • Last Updated October 10, 2023

गायत्री उपनिषद अथर्ववेद का एक उपनिषद है। यह उपनिषद गायत्री मंत्र की व्याख्या करता है, जो हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण मंत्र है।

गायत्री उपनिषद में, गायत्री मंत्र को ब्रह्मांड की मूल शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। यह मंत्र प्रकाश, ज्ञान, और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।

गायत्री उपनिषद में गायत्री मंत्र के चार चरणों की व्याख्या की गई है। ये चरण हैं:

  • प्रथम चरण: - परम ब्रह्म का प्रतीक है।
  • दूसरा चरण: भूर्भुवः स्वः - तीन लोकों का प्रतीक है।
  • तीसरा चरण: तत्सवितुर्वरेण्यं - ब्रह्मांड की मूल शक्ति का प्रतीक है।
  • चौथा चरण: भर्गो देवस्य धीमहि - ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है।

गायत्री उपनिषद का मानना ​​है कि गायत्री मंत्र का नियमित रूप से जाप करने से भक्तों को ज्ञान, आध्यात्मिकता, और प्रकाश प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

गायत्री उपनिषद के कुछ प्रमुख श्लोक इस प्रकार हैं:

पहला श्लोक:

ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्

अर्थ:

"हम उस परम प्रकाशमान, सर्वव्यापी, और सर्वशक्तिमान परमात्मा को ध्यान में रखते हैं, जो हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।"

दूसरा श्लोक:

सर्वे वेदा यत्पदं वेदांतः प्रवदन्ति तच्चिन्मयं ब्रह्म तद्ब्रह्म ज्ञात्वा मुच्यते सर्वात्मा तस्मात् गायत्रीं जप्यैतत्

अर्थ:

"सभी वेद और वेदान्त इस पद की बात करते हैं, जो चेतनामय ब्रह्म है। इस ब्रह्म को जानकर, आत्मा सभी बन्धनों से मुक्त हो जाती है। इसलिए, गायत्री का जप किया जाना चाहिए।"

गायत्री उपनिषद एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जो गायत्री मंत्र की व्याख्या करता है। यह उपनिषद हिंदू धर्म में ज्ञान, आध्यात्मिकता, और प्रकाश की खोज करने वाले लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है।


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