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- Create Date November 23, 2023
- Last Updated November 23, 2023
कैवल्यष्टकम या केवल्यष्टकम एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान शिव की स्तुति करता है। यह स्तोत्र 8 श्लोकों में विभाजित है।
कैवल्यष्टकम की रचना का श्रेय 12वीं शताब्दी के कवि और संत अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक शंकराचार्य को दिया जाता है। यह स्तोत्र अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों पर आधारित है।
कैवल्यष्टकम में, भगवान शिव को परम सत्य, ब्रह्म, और निर्विकल्प चेतना बताया गया है। यह स्तोत्र मोक्ष की प्राप्ति के लिए एक मार्गदर्शक है।
कैवल्यष्टकम के कुछ प्रमुख श्लोक निम्नलिखित हैं:
kaivalyaashtakam ya kevalaashtakam
श्लोक 1:
निर्विकल्पं निराकारं नित्यं शुद्धं चैतन्यं । शिवं ब्रह्म परमं तं शरणं प्रपद्ये ॥
अर्थ:
मैं निर्विकल्प, निराकार, नित्य, शुद्ध चेतना, शिव, ब्रह्म, परम को शरण लेता हूं।
श्लोक 2:
त्वमेव सत्यं त्वमेव ज्ञानं त्वमेव ब्रह्म । त्वमेव शिवं त्वमेव परं ब्रह्म ॥
अर्थ:
तुम ही सत्य हो, तुम ही ज्ञान हो, तुम ही ब्रह्म हो। तुम ही शिव हो, तुम ही परम ब्रह्म हो।
श्लोक 3:
यदा कदाचित् संसारे विचरतां मम । भ्रमो जायते तदा त्वं दर्शनं करोतु ॥
अर्थ:
जब-जब मुझे संसार में भ्रम होता है, तब-तब तुम मुझे दर्शन दो।
कैवल्यष्टकम का पाठ करने से माना जाता है कि भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यह पाठ विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना जाता है जो मोक्ष की प्राप्ति के लिए अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का पालन करते हैं।
कैवल्यष्टकम के कुछ अन्य लाभ निम्नलिखित हैं:
- यह स्तोत्र मानसिक शांति और एकाग्रता प्रदान करता है।
- यह स्तोत्र आध्यात्मिक विकास में मदद करता है।
- यह स्तोत्र मोक्ष की प्राप्ति में सहायक है।
कैवल्यष्टकम एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका है।
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