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- Create Date November 17, 2023
- Last Updated November 17, 2023
अच्युताष्टक 2, आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक संस्कृत स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु के अच्युत (अक्षय, अविनाशी) रूप की स्तुति करता है।
अच्युताष्टक 2 के छंद निम्नलिखित हैं:
achyutaashtakan 2
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अच्युताच्युत हरे परमात्मन् राम कृष्ण पुरुषोत्तम विष्णो जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे
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माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे
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रुक्मिणीरागिणे जानकीजानये कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः
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श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक
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दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणम् अगस्त्यसम्पूजितो राघवः पातु माम्
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केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः बालगोपालकः पातु मां सर्वदा
अच्युताष्टक 2 का अर्थ निम्नलिखित है:
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हे अच्युत, हे हरे, हे परमात्मा, हे राम, हे कृष्ण, हे पुरुषोत्तम, हे विष्णु, मैं जानकी के पति, रामचंद्र की भक्ति करता हूं।
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हे माधव, हे श्रीधर, हे राधा द्वारा पूजित, हे देवकी के पुत्र, हे नंद के पुत्र, मैं आपकी वंदना करता हूं।
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हे रुक्मिणी के प्रियतम, हे जानकी के पति, हे कंस का वध करने वाले, हे वंश के स्वामी, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
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हे श्रीपति, हे वासुदेव, हे श्री के विजेता, हे श्री के निधान, हे द्वारका के नायक, हे द्रौपदी के रक्षक, मुझे बचाओ।
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हे दंडकारण्य की भूमि को पवित्र करने वाले कारण, हे अगस्त्य द्वारा पूजित, हे राघव, मुझे बचाओ।
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हे केशियों को मारने वाले, हे कंस के हृदय के धनुष को तोड़ने वाले, हे बाल गोपाल, तुम मुझे हमेशा बचाओ।
अच्युताष्टक 2 एक बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु के भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।
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