Chatushloki Stotra

Chatushloki Stotra:चतुश्लोकी स्तोत्र: ये चार श्लोक सम्पूर्ण भागवत पुराण का सार हैं। इन चारों श्लोकों का प्रतिदिन पूर्ण श्रद्धा के साथ पाठ करने और सुनने से व्यक्ति का अज्ञान और अहंकार दूर होता है तथा उसे आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। इनका पाठ करने वाला व्यक्ति पापों से मुक्त होकर जीवन में सत्य मार्ग पर चलता है।

इस स्तोत्र में श्री वल्लभ ने वैष्णव को चार पुरुषार्थों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का अर्थ समझाया है। Chatushloki Stotra उन्होंने अपने वैष्णव से कहा है कि वैष्णव के लिए उसके सभी कर्म और इच्छाएँ केवल एक ही शक्ति अर्थात श्रीनाथजी की ओर निर्देशित होती हैं। स्तोत्र मूलतः वैदिक अवधारणाओं का सार है, जिसे इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि इसका उपयोग कोई भी व्यक्ति बिना किसी धार्मिक निषेध के कर सकता है। कठोर मंत्रिक प्रक्रियाएँ और दिशा-निर्देश स्तोत्र पर लागू नहीं होते।

Chatushloki Stotra

मंत्र शास्त्र (मंत्रों का विज्ञान) पर वैदिक शास्त्रों के अनुसार शब्द (शाश्वत ध्वनि) और नाद (ब्रह्मांडीय कंपन) के उदात्त कंपन प्रकृति में मौजूद हर चीज़ के मूल हैं। यह वास्तव में सर्वोच्च चेतना – परब्रह्म की सर्वव्यापी अभिव्यक्ति का स्रोत है। इसलिए, शब्द और नाद को ब्रह्म का प्रतिबिंब माना जाता है।

अनाहत स्वर, “अनिर्मित ध्वनि, ध्वनिहीन ध्वनि”, ब्रह्मांड की “ध्वनि”, ऊर्जा की मूल ध्वनि। इन कंपनों से प्रेरित ब्रह्मांड में सतत ऊर्जा का जनरेटर कहा जाता है। इस प्रकार मंत्र योग का मानना ​​है कि प्रकृति में सब कुछ, सभी वस्तुएँ, चाहे वे सजीव हों या निर्जीव, ध्वनि कंपन से बनी हैं। सभी भौतिक वस्तुएँ ध्वनि से बनी हैं और प्रत्येक भौतिक वस्तु, चाहे वह कीट हो, चट्टान हो, इमारत हो, ग्रह हो या मनुष्य हो, अपने स्वयं के विशेष हार्मोनिक नोट को प्रतिध्वनित करती है।

Chatushloki Stotra:चतुश्लोकी स्तोत्र के लाभ:

Chatushloki Stotra:चतुश्लोकी स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। लोगों का जीवन सुखमय, समृद्ध और समृद्ध बनता है।

किसको करना चाहिए यह स्तोत्र का पाठ:

जो लोग अपने बुरे कर्मों और बुरे मित्रों से परेशान हैं, उन्हें कष्टों से मुक्ति पाने के लिए इस चतुश्लोकी स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।
अधिक जानकारी और चतुश्लोकी स्तोत्र के विवरण के लिए कृपया एस्ट्रो मंत्र से संपर्क करें।

सदा सर्वात्मभावेन भजनीयो व्रजेश्वर: ।

करिष्यति स एवास्मदैहिकं पारलौकिकम् ।।1।।

अन्याश्रयो न कर्तव्य: सर्वथा बाधकस्तु स: ।

स्वकीये स्वात्मभावश्च कर्तव्य: सर्वथा सदा ।।2।।

सदा सर्वात्मना कृष्ण: सेव्य: कालादिदोषनुत् ।

तद्भक्त्तेषु च निर्दोषभावेन स्थेयमादरात् ।।3।।

भगवत्येव सततं स्थापनीयं मन: स्वयम् ।

कालोऽयं कठिनोऽपि श्रीकृष्णभक्तान्न बाधते ।।4।।

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