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Brahmshakti Stotra:ब्रह्मशक्ति स्तोत्र: आधुनिक समाज के आकलन के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि आज हमारे समाज में 100 में से 40 जोड़े ऐसे हैं जो किसी न किसी तरह से वैचारिक मतभेद या किसी तीसरे पक्ष के कारण अपने ही पारिवारिक जीवन में अनेक विषमताओं का शिकार हो रहे हैं,

जिसके कारण हर पल घुटन और अनिश्चितता के कारण अपना शारीरिक और मानसिक संतुलन खो रहे हैं। और इसका परिणाम यह होता है कि इन सब कारणों से पारिवारिक सामाजिक और आर्थिक स्तर में गिरावट आती जा रही है, कुछ समय बाद लोगों को एहसास होता है कि उन्होंने गलत कदम उठा लिया है, लेकिन जब तक समझ में आता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

यह एक भूल है जिसे नष्ट नहीं किया जा सकता। इस स्तोत्र को पढ़ने या सुनने से प्रेम के वियोग में कष्ट नहीं होता और पत्नी से वियोग नहीं होता। ब्रह्मशक्ति स्तोत्र ब्रह्मा की देवों द्वारा रचित प्रार्थना है Brahmshakti Stotra जो स्कंद पुराण में आने वाले सूक्तों के संग्रह में आती है। ब्रह्मशक्ति स्तोत्र का वर्णन स्कंद पुराण में दिया गया है। ब्रह्मशक्ति स्तोत्र देवताओं द्वारा रचित है। ब्रह्म सूत्र भगवान ब्रह्मा जी को समर्पित है। भगवान ब्रह्मा जी की पूजा में ब्रह्म स्तोत्र का प्रयोग किया जाता है।

छोटे-मोटे वैचारिक मतभेदों को अपने रिश्ते पर इतना हावी न होने दें कि वे आपके रिश्ते को ही खा जाएं और एक बात हमेशा ध्यान रखें कि अवैध संबंधों की उम्र और विश्वसनीयता बहुत कम होती है चाहे वह महिला हो या पुरुष। Brahmshakti Stotra अगर आप आज अपने साथी को भूलने के लिए आकर्षित हो गए हैं, तो इस बात की क्या गारंटी है कि वह कल किसी और से दूर नहीं भागेगा। लेकिन फिर भी अगर आप पीड़ित हैं तो वैदिक पद्धति से ब्रह्मशक्ति स्तोत्र का पाठ करें, जिससे आपको बाधा से मुक्ति मिलेगी।

ब्रह्मशक्ति स्तोत्र के लाभ:

पारिवारिक कलह, बीमारी या अकाल मृत्यु आदि के संबंध में इसका पाठ करना चाहिए। प्रेम संबंधों में बाधाएं आने पर भी इसके पाठ से लाभ होगा।

विभिन्न उपचारों के साथ अपने इष्ट देव या भगवती गौरी की पूजा करके उद्धृत स्तोत्र पढ़ें। Brahmshakti Stotra प्राप्ति के लिए व्यय, समर्पण आवश्यक है।

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इस स्तोत्र का पाठ किसे करना चाहिए:

जिस व्यक्ति ने किसी कारणवश अपने प्रियतम को खो दिया हो और विवाहेतर संबंध बना लिया हो, Brahmshakti Stotra उसे नियमित रूप से ब्रह्मशक्ति स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

ब्राह्मि ब्रह्म-स्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनि ।
परमात्म-स्वरूपे च, परमानन्द-रूपिणि ।।

ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवार्णवे ।
सर्व-मंगल-रूपे च, प्रसीद सर्व-मंगले ।।

विजये शिवदे देवि ! मां प्रसीद जय-प्रदे ।
वेद-वेदांग-रूपे च, वेद-मातः ! प्रसीद मे ।।

शोकघ्ने ज्ञान-रूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले ।
सर्व-सम्पत्-प्रदे माये, प्रसीद जगदम्बिके ।।

लक्ष्मीर्नारायण-क्रोडे, स्रष्टुर्वक्षसि भारती ।
मम क्रोडे महा-माया, विष्णु-माये प्रसीद मे ।।

काल-रूपे कार्य-रूपे, प्रसीद दीन-वत्सले ।
कृष्णस्य राधिके भद्रे, प्रसीद कृष्ण पूजिते ।।

समस्त-कामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे ।
सर्व-सम्पत्-स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे ।।

यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसां निधेः ।
चराचर-स्वरूपे च, प्रसीद मम मा चिरम् ।।

मम योग-प्रदे देवि ! प्रसीद सिद्ध-योगिनि ।
सर्व-सिद्धि-स्वरूपे च, प्रसीद सिद्धि-दायिनि ।।

अधुना रक्ष मामीशे, प्रदग्धं विरहाग्निना ।
स्वात्म-दर्शन-पुण्येन, क्रीणीहि परमेश्वरि ।।

।। फल-श्रुति ।।

एतत् पठेच्छृणुयाच्चन, वियोग-ज्वरो भवेत् ।
न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि ।।

।। इति ब्रह्मशक्ति स्तोत्र संपूर्णम्‌ ।।

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