Bhaum Pradosh Vrat

Bhaum Pradosh Vrat:माह की त्रयोदशी तिथि का प्रदोष काल मे होना, प्रदोष व्रत होने का सही कारण है। प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट पहिले प्रारम्भ होकर सूर्यास्त के बाद 45 मिनट होता है। प्रदोष का दिन जब साप्ताहिक दिवस सोमवार को होता है उसे सोम प्रदोष कहते हैं, मंगलवार को होने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष तथा शनिवार के दिन प्रदोष को शनि प्रदोष कहते हैं।

प्रदोष व्रत कब है? – Pradosh Kab Hai

फाल्गुन शुक्ल प्रदोष व्रत: मंगलवार, 11 मार्च 2025 
भौम प्रदोष व्रत – ऋण मोचन
भौम प्रदोष व्रत कथा

प्रदोष काल – 6:27 PM से 8:53 PM

फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी तिथि : 11 मार्च 2025 8:13 AM – 12 मार्च 2025 9:11 AM

प्रदोष व्रत की पूजा कब करनी चाहिए?

प्रदोष व्रत की पूजा अपने शहर के सूर्यास्त होने के समय के अनुसार प्रदोष काल मे करनी चाहिए।

प्रदोष में क्या न करें?

भगवान शिव की प्रदोष काल में पूजा किए बिना भोजन ग्रहण न करें. व्रत के समय में अन्न, नमक, मिर्च आदि का सेवन नहीं करें।

प्रदोष व्रत मे पूजा की थाली में क्या-क्या रखें?

पूजा की थाली में अबीर, गुलाल, चंदन, काले तिल, फूल, धतूरा, बिल्वपत्र, शमी पत्र, जनेऊ, कलावा, दीपक, कपूर, अगरबत्ती एवं फल के साथ पूजा करें।

Bhaum Pradosh Vrat katha:भौम प्रदोष व्रत कथा

Bhaum Pradosh Vrat:सूतजी बोले- अब मैं मंगल त्रयोदशी प्रदोष व्रत का विधि विधान कहता हूं। मंगलवार का दिन व्याधियों का नाशक है। इस व्रत में एक समय व्रती को गेहूं और गुड़ का भोजन करना चाहिए। इस व्रत के करने से मनुष्य सभी पापों व रोगों से मुक्त हो जाता है इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है।

अब मैं आपको उस बुढ़िया की कथा सुनाता हूं, जिसने यह व्रत किया व मोक्ष को प्राप्त हुई। अत्यन्त प्राचीन काल की घटना है। एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी। उसके मंगलिया नाम का एक पुत्र था। Bhaum Pradosh Vrat वृद्धा को हनुमानजी पर बड़ी श्रद्धा थी। वह प्रत्येक मंगलवार को हनुमानजी का व्रत रखकर यथाविधि उनका भोग लगाती थी। इसके अलावा मंगलवार को एक न तो घर लीपती थी और न ही मिट्टी खोदती थी।

इसी प्रकार से व्रत रखते हुए जब उसे काफी दिन बीत गए तो हनुमानजी ने सोचा कि चलो आज इस वृद्धा की श्रद्धा की परीक्षा करें। वे साधु का वेष बनाकर उसके द्वार पर जा पहुंचे और पुकारा “है कोई हनुमान का भक्त जो हमारी इच्छा पूरी करे।” वृद्धा ने यह पुकार सुनी तो बाहर आई और महाराज क्या आज्ञा है? साधु वेषधारी हनुमान जी बोले कि ‘मैं बहुत भूखा हूं भोजन करूंगा। Bhaum Pradosh Vrat तू थोड़ी सी जमीन लीप दे।’ वृद्धा बड़ी दुविधा में पड़ गई। अंत में हाथ जोड़कर प्रार्थना की- हे महाराज! लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त जो काम आप कहें वह मैं करने को तैयार हूं।

साधु ने तीन बार परीक्षा करने के बाद कहा- “तू अपने बेटे को बुला मैं उसे औंधा लिटाकर, उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।” वृद्धा ने सुना तो पैरों तले की धरती खिसक गई, मगर वह वचन हार चुकी थी। Bhaum Pradosh Vrat उसने मंगलिया को पुकार कर साधु महाराज के हवाले कर दिया। मगर साधु ऐसे ही मानने वाले न थे। उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को ओंधा लिटाकर उसकी पीठ पर आग जलवाई।

आग जलाकर, दुखी मन से वृद्धा अपने घर के अंदर जा घुसी। साधु जब भोजन को बुलाकर कहा कि वह मंगलिया को पुकारे ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। वृद्धा में आंसू भरकर कहने लगी कि अब उसका नाम लेकर मेरे हृदय को और न दुखाओ, लेकिन साधु महाराज न माने वृद्धा को भोजन के लिए मंगलिया को पुकारना पड़ा। Bhaum Pradosh Vrat पुकारने की देर थी कि मंगलिया बाहर से हंसता हुआ घर में दौड़ा आया। मंगलिया को जीता जागता देखकर वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ। वह साधु महाराज के चरणों में गिर पड़ी। Bhaum Pradosh Vrat साधु महाराज ने उसे अपने असली रूप में दर्शन दिए। हनुमानजी को अपने आंगन में देखकर वृद्धा को लगा कि जीवन सफल हो गया।

Bhaum Pradosh Vrat ki vidhi:प्रदोष व्रत की विधि

प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें।
इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है।
पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है।

पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है।
अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है।
प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है।
इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।
पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए।

प्रदोष व्रत का महत्व

मान्यता और श्रध्दा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों यह व्रत करते हैं। कहा जाता है Bhaum Pradosh Vrat कि इस व्रत से कई दोषों की मुक्ति तथा संकटों का निवारण होता है. यह व्रत साप्ताहिक महत्त्व भी रखता है।
रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।

मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपासक की Bhaum Pradosh Vrat सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है।
शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है।
संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।
अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किए जाते हैं तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है।

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