Bhagwan Shiv:हम सबके प्रिय भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ है वे स्वयंभू हैं। लेकिन पुराणों में उनकी उत्पत्ति का विवरण मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं।
श्रीमद् भागवत के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे तब एक जलते हुए खंभे से भगवान शिव प्रकट हुए।
विष्णु पुराण में वर्णित शिव के जन्म की कहानी शायद भगवान शिव का एकमात्र बाल रूप वर्णन है। इसके अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए तपस्या की। तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका कोई नाम नहीं है इसलिए वह रो रहा है।
तब ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रूद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’। शिव तब भी चुप नहीं हुए। इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया पर शिव को नाम पसंद नहीं आया और वे फिर भी चुप नहीं हुए। इस तरह शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा ने 8 नाम दिए और शिव 8 नामों (रूद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव) से जाने गए। शिव पुराण के अनुसार यह नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे।
Bhagwan Shiv:शिव के इस प्रकार ब्रह्मा पुत्र के रूप में जन्म लेने के पीछे भी विष्णु पुराण की एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार जब धरती, आकाश, पाताल समेत पूरा ब्रह्माण्ड जलमग्न था तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के सिवा कोई भी देव या प्राणी नहीं था। तब केवल विष्णु ही जल सतह पर अपने शेषनाग पर लेटे नजर आ रहे थे। Bhagwan Shivतब उनकी नाभि से कमल नाल पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा-विष्णु जब सृष्टि के संबंध में बातें कर रहे थे तो शिव जी प्रकट हुए। ब्रह्मा ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया। तब शिव के रूठ जाने के भय से भगवान विष्णु ने दिव्य दृष्टि प्रदान कर ब्रह्मा को शिव की याद दिलाई।
ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और शिव से क्षमा मांगते हुए उन्होंने उनसे अपने पुत्र रूप में पैदा होने का आशीर्वाद मांगा। Bhagwan Shivशिव ने ब्रह्मा की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उन्हें यह आशीर्वाद प्रदान किया। जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की तो उन्हें एक बच्चे की जरूरत पड़ी और तब उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद ध्यान आया। अत: ब्रह्मा ने तपस्या की और बालक शिव बच्चे के रूप में उनकी गोद में प्रकट हुए।
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भगवान शिव को अजन्मा माना जाता है। वे सृष्टि के आरंभ से ही विद्यमान हैं, यानी उनका कोई जन्म नहीं हुआ है। वे अनंत, अनादि और अचल हैं।
Bhagwan Shiv क्यों कहा जाता है कि भगवान शिव अजन्मा हैं?
- शिव तात्विक हैं: शिव एक तात्विक शक्ति हैं, जो सृष्टि के मूल में विद्यमान है। वे चेतना, शक्ति और ज्ञान का प्रतीक हैं।
- कालाग्निरूपी: शिव को कालाग्निरूपी भी कहा जाता है, यानी वे समय और विनाश के देवता हैं। वे सृष्टि का अंत और पुनर्जन्म दोनों करते हैं।
- अद्वैतवाद: शिव दर्शन अद्वैतवाद पर आधारित है, जिसके अनुसार ब्रह्मांड और चेतना एक ही हैं। शिव इस एकत्व का प्रतीक हैं।
Bhagwan Shiv:अवतरण कथा न होने के बावजूद शिव पुराण में क्या वर्णित है?
Bhagwan Shivहालांकि शिव का कोई जन्म नहीं हुआ है, लेकिन शिव पुराण में उनकी कई कथाएं वर्णित हैं। इन कथाओं में शिव के विभिन्न रूपों और लीलाओं का वर्णन मिलता है। ये कथाएं शिव के विभिन्न गुणों और सिद्धांतों को समझने में मदद करती हैं।
Bhagwan Shiv:उदाहरण के लिए:
- सती का जन्म और त्याग: सती, दक्ष प्रजापति की पुत्री थी और शिव की पत्नी थी। दक्ष द्वारा शिव का अपमान करने पर सती ने होमकुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए थे।
- पार्वती का जन्म: सती के पुनर्जन्म के रूप में पार्वती का जन्म हुआ था। पार्वती ने कठोर तपस्या करके शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था।
- कामदेव को भस्म करना: कामदेव ने शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास किया था, जिसके कारण शिव ने उन्हें भस्म कर दिया था।
ये कथाएं हालांकि काल्पनिक हैं, लेकिन इनका उद्देश्य शिव के विभिन्न रूपों और लीलाओं के माध्यम से उनके गुणों और सिद्धांतों को समझाना है।
निष्कर्ष
भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ है, वे अजन्मा हैं। शिव पुराण में वर्णित कथाएं हमें शिव के विभिन्न रूपों और लीलाओं के बारे में बताती हैं, लेकिन इनका उद्देश्य शिव के दर्शन को समझना है।