Batuk Bhairav Ashtottara Stotra:बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्रम्: बटुक भैरव भगवान रुद्र के अवतार हैं। भगवान भैरव की पूजा-अर्चना से सभी तांत्रिक क्रियाओं में सफलता मिलती है। दस भैरवों में जहां कालभैरव को सबसे विकराल रूप माना जाता है, वहीं बटुक भैरव को सबसे शांत और सौम्य रूप में पूजा जाता है। अघोरिया और तांत्रिक लोगों के लिए काल भैरव की पूजा बताई गई है, वहीं आम लोगों के लिए बटुक भैरव की पूजा उपयुक्त मानी गई है।
भैरव तंत्र के अनुसार भय से मुक्ति दिलाने वाले को भैरव कहा जाता है। इनकी आराधना से जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। श्री भैरव की वटुक रूप में आराधना के बिना श्री शिव मंत्र सिद्धि संभव नहीं है। Batuk Bhairav Ashtottara Stotra वे क्रिया शक्ति के रूप हैं, जो साधक को सात्विकता में प्रवृत्त कर शिव और शक्ति की ओर आकर्षित करते हैं। बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति शिव साधना में लग जाता है और मुक्ति प्राप्त करता है।
भैरव तांत्रिकों के लिए सबसे पसंदीदा देवताओं में से एक हैं। Batuk Bhairav Ashtottara Stotra बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्र की पूजा करने के लिए कुछ रोचक मंत्र हैं जो भय को दूर करने, रोगों को ठीक करने, शत्रुओं को नष्ट करने और समृद्धि प्रदान करने के लिए जाने जाते हैं।
बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्र भगवान भैरव को समर्पित एक गुप्त स्तोत्र है। बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्र को पढ़ने या सुनने से कई लाभ और सिद्धियाँ मिलती हैं जैसे वाक सिद्धि (आप जो भी बोलेंगे वह सच हो जाएगा), बुद्धि, भय से मुक्ति, शत्रुओं का नाश और लंबी आयु प्राप्त होती है।
एक बार नियमित अभ्यास करने के बाद, Batuk Bhairav Ashtottara Stotra बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्र जप करने वाले पर अनंत आशीर्वाद प्रदान कर सकता है और उसे भगवान का दिव्य आशीर्वाद दिला सकता है जिससे समृद्धि और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए, लोग बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्र का बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ पाठ करते हैं।
Batuk Bhairav Ashtottara Stotra:बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्र के लाभ
जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करने के लिए भैरव देवता की पूजा में बहुत महत्व है। Batuk Bhairav Ashtottara Stotra यदि आप बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्र के शब्दों का पाठ करते हैं, खासकर भैरव अष्टमी की पूर्व संध्या पर या शनिवार को, तो आप निश्चित रूप से अपने सभी कामों को सफल और सार्थक बनाने में सक्षम होंगे, साथ ही आपके व्यवसाय, व्यापार और जीवन में पूर्ण सफलता, परेशानियाँ, बाधाएँ, शत्रु, कोर्ट-कचहरी आदि से मुक्ति मिलेगी।
Batuk Bhairav Ashtottara Stotra:किसको करना चाहिए यह स्तोत्र का पाठ
जो व्यक्ति तुरंत समृद्धि चाहते हैं, Batuk Bhairav Ashtottara Stotra उन्हें नियमित रूप से बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्रम् | Batuk Bhairav Ashtottara Stotra
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे।
विनियोग:- ॐ अस्य श्रीबटुक भैरव स्तोत्र मन्त्रस्य, कालाग्नि रूद्र ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, आपदुद्धारक बटुक भैरवो देवता, ह्रीं बीजम्, भैरवी वल्लभः शक्तिः, नील वर्णों दण्ड पाणि: कीलकं, समस्त शत्रु दमने समस्ता-पन्निवारणे सर्वाभीष्ट प्रदाने च विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास:
ॐ कालाग्नि ऋषये नमः शिरसि।
अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे।
आपदुद्धारक श्रीबटुक भैरव देवतायै नमः हृदये।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्यये।
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयोः
नील वर्णों दण्ड-पाणि: कीलकाय नमः नाभौ।
समस्त शत्रु दमने समस्तापन्निवारणे सर्वाभीष्ट प्रदाने च विनियोगाय नमः सर्वांगे।
मूल-मन्त्र:
ॐ ह्रीं बं बटुकाय क्षौं क्षौं आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय स्वाहा ।
ध्यान:
नील-जीमूत-संकाशो जटिलो रक्त-लोचनः ।
दंष्ट्रा कराल वदनः सर्प यज्ञोपवीत-वान् ।।
दंष्ट्राSSयुधालंकृतश्च कपाल-स्त्रग्-विभूषितः ।
हस्त-न्यस्त-करो टीका-भस्म-भूषित-विग्रहः ।।
नाग-राज-कटि-सूत्रों बाल-मूर्तिर्दिगम्बरः ।
मञ्जु-सिञ्जान-मञ्जरी-पाद-कम्पित-भूतलः ।।
भूत-प्रेत-पिशाचैश्च सर्वतः परिवारितः ।
योगिनी-चक्र-मध्यस्थो मातृ-मण्डल-वेष्टितः ।।
अट्टहास-स्फुरद्-वक्त्रो भृकुटी-भीषणाननः ।
भक्त-संरक्षणार्थ हि दिक्षु भ्रमण-तत्परः ।।
मूल स्तोत्र:
ॐ ह्रीं बटुकों वरदः शूरो भैरवः काल भैरवः ।
भैरवी वल्लभो भव्यो दण्ड पाणिर्दया निधिः ।।1
वेताल वाहनों रौद्रो रूद्र भृकुटि सम्भवः ।
कपाल लोचनः कान्तः कामिनी वश कृद् वशी ।।2
आपदुद्धारणो धीरो हरिणाङ्क शिरोमणिः ।
दंष्ट्रा-करालो दष्टोष्ठौ धृष्टो-दुष्ट-निवर्हणः ।।3
सर्प-हारः सर्प-शिरः सर्प-कुण्डल-मण्डितः ।
कपाली करुणा-पूर्णः कपालैक-शिरोमणिः ।।4
श्मशान-वासी मासांशी मधु-मत्तोSट्टहास-वान् ।
वाग्मी वाम-व्रतो वामो वाम-देव-प्रियंङ्करः ।।5
वनेचरो रात्रि-चरो वसुदो वायु-वेग-वान् ।
योगी योग-व्रत-धरो योगिनी-वल्लभो युवा ।।6
वीर-भद्रो विश्वनाथो विजेता वीर-वन्दितः ।
भूताध्यक्षो भूति-धरो भूत-भीति-निवरणः ।।7
कलङ्क-हीनः कंकाली क्रूरः कुक्कुर-वाहनः ।
गाढ़ो गहन-गम्भीरो गण-नाथ-सहोदरः ।।8
देवी-पुत्रो दिव्य-मूर्तिर्दीप्ति-मान् दिवा-लोचनः ।
महासेन-प्रिय-करो मान्यो माधव-मातुलः ।।9
भद्र-काली -पतिर्भद्रो भद्रदो भद्र-वाहनः ।
पशूपहार-रसिकः पाशी पशु-पतिः पतिः ।।10
चण्डः प्रचण्ड-चण्डेशश्चण्डी-हृदय-नन्दनः ।
दक्षो दक्षाध्वर-हरो दिग्वासा दीर्घ-लोचनः ।।11
निरातङ्को निर्विकल्पः कल्पः कल्पान्त-भैरवः ।
मद-ताण्डव-कृन्मत्तो महादेव-प्रियो महान् ।।12
खट्वांग-पाणिः खातीतः खर-शूलः खरान्त-कृत् ।
ब्रह्माण्ड-भेदनो ब्रह्म-ज्ञानी ब्राह्मण-पालकः ।।13
दिक्-चरो भू-चरो भूष्णुः खेचरः खेलन-प्रियः ,
सर्व-दुष्ट-प्रहर्त्ता च सर्व-रोग-निषूदनः ।
सर्व-काम-प्रदः शर्वः सर्व-पाप-निकृन्तनः ।।14
फल-श्रुति:
इत्थमष्टोत्तर-शतं नाम्ना सर्व-समृद्धिदम् ।
आपदुद्धार-जनकं बटुकस्य प्रकीर्तितम् ।।
एतच्च श्रृणुयान्नित्यं लिखेद् वा स्थापयेद् गृहे ।
धारयेद् वा गले बाहौ तस्य सर्वा समृद्धयः ।।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न चौर-नृपजं भयम् ।
न चापस्मृति-रोगेभ्यो डाकिनीभ्यो भयं नहि ।।
न कूष्माण्ड-ग्रहादिभ्यो नापमृत्योर्न च ज्वरात् ।
मासमेकं त्रि-सन्ध्यं तु शुचिर्भूत्वा पठेन्नरः ।।
सर्व-दारिद्रय-निर्मुक्तो निधि पश्यति भूतले ।
मास-द्वयमधीयानः पादुका-सिद्धिमान् भवेत् ।।
अञ्जनं गुटिका खड्गं धातु-वाद-रसायनम् ।
सारस्वतं च वेताल-वाहनं बिल-साधनम् ।।
कार्य-सिद्धिं महा-सिद्धिं मन्त्रं चैव समीहितम् ।
वर्ष-मात्रमधीनः प्राप्नुयात् साधकोत्तमः ।।
एतत् ते कथितं देवि ! गुह्याद् गुह्यतरं परम् ।
कलि-कल्मष-नाशनं वशीकरणं चाम्बिके ! ।।