Baglamukhi Chalia:बगलामुखी चालीसा: शत्रु नाश और सिद्धि का मंत्र
Baglamukhi Chalia:बगलामुखी चालीसा एक शक्तिशाली स्तुति है जो हिंदू धर्म में देवी बगलामुखी को समर्पित है। Baglamukhi Chalia देवी बगलामुखी को शत्रु नाश करने वाली देवी माना जाता है Baglamukhi Chalia और उनके भक्तों को विजय और सफलता प्रदान करने वाली मानी जाती हैं।
Baglamukhi Chalia:बगलामुखी चालीसा का महत्व
- शत्रु नाश: यह चालीसा शत्रुओं से रक्षा करने और उनके प्रभाव को कम करने के लिए प्रसिद्ध है।
- विजय: यह विजय और सफलता प्राप्त करने में मदद करती है, चाहे वह व्यापार हो, नौकरी हो या कोई अन्य क्षेत्र हो।
- वाक सिद्धि: यह वाक सिद्धि प्रदान करती है, जिसका अर्थ है प्रभावशाली और आश्वस्त तरीके से बोलने की क्षमता।
- मनोबल वृद्धि: यह भक्तों के मनोबल को बढ़ाती है और उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति देती है।
Baglamukhi Chalia:बगलामुखी चालीसा का पाठ कैसे करें
- शुद्ध मन से: चालीसा का पाठ करते समय मन को शुद्ध रखना चाहिए Baglamukhi Chalia और देवी बगलामुखी पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।
- नियमित पाठ: नियमित रूप से चालीसा का पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।
- विधि-विधान: चालीसा का पाठ करते समय कुछ विशेष विधि-विधानों का पालन करना चाहिए, जैसे कि स्नान करना, शुद्ध वस्त्र धारण करना और दीपक जलाना।
ध्यान रखने योग्य बातें
- सकारात्मक भाव: चालीसा का पाठ करते समय सकारात्मक भाव रखना चाहिए।
- अहंकार से बचें: चालीसा के प्रभाव के बारे में अहंकार नहीं करना चाहिए।
- गुणों का विकास: देवी बगलामुखी की कृपा पाने के लिए अपने गुणों का विकास करना चाहिए।
Baglamukhi Chalia:बगलामुखी चालीसा
॥ दोहा ॥
सिर नवाइ बगलामुखी,
लिखूं चालीसा आज ॥
कृपा करहु मोपर सदा,
पूरन हो मम काज ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय श्री बगला माता ।
आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥
बगला सम तब आनन माता ।
एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥
शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी ।
असतुति करहिं देव नर-नारी ॥
पीतवसन तन पर तव राजै ।
हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥ 4 ॥
तीन नयन गल चम्पक माला ।
अमित तेज प्रकटत है भाला ॥
रत्न-जटित सिंहासन सोहै ।
शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥
आसन पीतवर्ण महारानी ।
भक्तन की तुम हो वरदानी ॥
पीताभूषण पीतहिं चन्दन ।
सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥ 8 ॥
एहि विधि ध्यान हृदय में राखै ।
वेद पुराण संत अस भाखै ॥
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा ।
जाके किये होत दुख-नाशा ॥
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै ।
पीतवसन देवी पहिरावै ॥
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन ।
अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥ 12 ॥
माल्य हरिद्रा अरु फल पाना ।
सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥
धूप दीप कर्पूर की बाती ।
प्रेम-सहित तब करै आरती ॥
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे ।
पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥
मातु भगति तब सब सुख खानी ।
करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥ 16 ॥
त्रिविध ताप सब दुख नशावहु ।
तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥
बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं ।
अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥
पूजनांत में हवन करावै ।
सा नर मनवांछित फल पावै ॥
सर्षप होम करै जो कोई ।
ताके वश सचराचर होई ॥ 20 ॥
तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै ।
भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥
दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई ।
निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥
फूल अशोक हवन जो करई ।
ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥
फल सेमर का होम करीजै ।
निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥ 24 ॥
गुग्गुल घृत होमै जो कोई ।
तेहि के वश में राजा होई ॥
गुग्गुल तिल संग होम करावै ।
ताको सकल बंध कट जावै ॥
बीलाक्षर का पाठ जो करहीं ।
बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥
एक मास निशि जो कर जापा ।
तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥ 28 ॥
घर की शुद्ध भूमि जहं होई ।
साध्का जाप करै तहं सोई ॥
सेइ इच्छित फल निश्चय पावै ।
यामै नहिं कदु संशय लावै ॥
अथवा तीर नदी के जाई ।
साधक जाप करै मन लाई ॥
दस सहस्र जप करै जो कोई ।
सक काज तेहि कर सिधि होई ॥ 32 ॥
जाप करै जो लक्षहिं बारा ।
ताकर होय सुयशविस्तारा ॥
जो तव नाम जपै मन लाई ।
अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥
सप्तरात्रि जो पापहिं नामा ।
वाको पूरन हो सब कामा ॥
नव दिन जाप करे जो कोई ।
व्याधि रहित ताकर तन होई ॥ 36 ॥
ध्यान करै जो बन्ध्या नारी ।
पावै पुत्रादिक फल चारी ॥
प्रातः सायं अरु मध्याना ।
धरे ध्यान होवैकल्याना ॥
कहं लगि महिमा कहौं तिहारी ।
नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥
पाठ करै जो नित्या चालीसा ।
तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥ 40 ॥
॥ दोहा ॥
सन्तशरण को तनय हूं,
कुलपति मिश्र सुनाम ।
हरिद्वार मण्डल बसूं ,
धाम हरिपुर ग्राम ॥
उन्नीस सौ पिचानबे सन् की,
श्रावण शुक्ला मास ।
चालीसा रचना कियौ,
तव चरणन को दास ॥