श्री राम लक्ष्मण के नागपाश में बंधने के बाद युद्ध समाप्त हो जाता है और लंका की सेना अपने नगर में वापस लौट जाते हैं।

श्री राम और लक्ष्मण के नागपाश में बंधने के बाद युद्ध समाप्त हो जाता है। लंका की सेना अपने नगर लौट जाती है और रावण अपनी जीत का जश्न मनाता है।

इधर सुग्रीव, हनुमान, अंगद, जामवंत और विभीषण सभी श्री राम और लक्ष्मण के इस हालत पर बहुत दुखी होते हैं।

राम और लक्ष्मण के साथियों को उनकी हालत पर (Ramayan ) बहुत दुख होता है। वे सभी उनके लिए कोई उपाय खोजने की कोशिश करते हैं।

क्योंकि जिनके के लिए पूरी वानर सेना समुंद्र लांघ कर युद्ध करने के लिए आई थी। आज वही श्री राम और लक्ष्मण भूमि पर नागपाश में बंधे मूर्छित पड़े है। और धीरे-धीरे नाग उनके शरीर से प्राण चूस रहे थे।

वानर सेना ने राम और लक्ष्मण के लिए ही समुद्र पार किया था। अब जब वे दोनों Ramayan नागपाश में बंधे हैं, तो सभी वानर सेना के सदस्य बहुत दुखी हैं। वे जानते हैं कि अगर राम और लक्ष्मण को जल्दी से नागपाश से मुक्त नहीं किया गया, तो वे मर जाएंगे।

श्री राम की सेना में पूरी तरह शौक सागर में डूब जाते हैं। किसी को भी श्री राम और लक्ष्मण को इस संकट से बाहर निकालने में का रास्ता नहीं सूझ रहा था।

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विभीषण द्वारा नागपाश अस्त्र की शक्ति का वर्णन

ग्रीव के पूछने पर विभीषण बताते हैं कि इंद्रजीत ने घात लगाकर नागपाश अस्त्र का प्रयोग श्रीराम और लक्ष्मण पर किया है।

सुग्रीव, हनुमान, अंगद, जामवंत और विभीषण सभी श्री राम और लक्ष्मण के नागपाश में बंधने के बाद बहुत दुखी होते हैं। वे सभी उन्हें बचाने के लिए कोई उपाय खोजने की कोशिश करते हैं।

तब सुग्रीव विभीषण से नागपाश से मुक्त होने का कोई उपाय बताने के लिए कहते हैं। के दुनिया में ऐसा कौन सा अस्त्र है जिसका कोई उपाय नहीं है।

सुग्रीव विभीषण से नागपाश से मुक्त होने का कोई उपाय पूछते हैं। वह जानता है कि नागपाश एक बहुत ही शक्तिशाली अस्त्र है और इससे मुक्त होना बहुत मुश्किल है।

लेकिन विभीषण जी कहते हैं कि एक बार यमपाश से कोई मुक्त हो सकता है लेकिन नागपाश अस्त्र से प्राणी मृत्यु होने तक छूट नहीं सकता।

विभीषण सुग्रीव को बताते हैं कि नागपाश अस्त्र एक बहुत ही घातक अस्त्र है। इससे मुक्त होना असंभव है।

क्योंकि नागपाश अस्त्र स्वयं ब्रह्मदेव द्वारा प्रकट किया गया था। दुष्टों का संहार करने के लिए भगवान शिव ने ब्रह्मदेव से नागपाश अस्त्र मांग लिया था । और भगवान शिव की कड़ी तपस्या करके रावण पुत्र इंद्रजीत ने उनसे यह वरदान के रूप में प्राप्त किया। इंद्रजीत बहुत विकट परिस्थिति में ही इस अस्त्र का प्रयोग करता है। आज तक नागपाश से कोई भी बच नहीं पाया है।

माता सीता का विलाप 

वहीं दूसरी और लंका में अशोक वाटिका में बैठी माता सीता श्री राम और लक्ष्मण के नाग पाश में बंध जाने की सुचना पाकर शोकाकुल हो उठती है। और विलाप करते हुए माता जगदंबा से अपने पति और लक्ष्मण की रक्षा की प्रार्थना करती है । इधर रणभूमि में समय बीतता जा रहा था पूरी वानर सेना श्री राम और लक्ष्मण के इस हालत से मायूस हो चुकी थी। ऐसे में सुग्रीव देखते हैं कि बजरंगबली हनुमान वहां पर नहीं है, जोकि हमेशा श्री राम के कार्य सिद्ध करते है। सुग्रीव पूछते हैं कि संकट मोचन महाबली हनुमान कहां है? जब उनके आराध्य श्री राम पर इतना घनघोर संकट छाया है।   वही हनुमान श्री राम और लक्ष्मण के नागपाश में बंधने के बाद ही कुछ विचार करके पहले ही बिना समय गवाएं सीधे भगवान विष्णु के वाहन और पक्षी श्रेष्ठ गरुड़ के पास पहुंच जाते हैं। हनुमान को यह ज्ञात था कि नागपाश अस्त्र को छिन्न भिन्न करने की क्षमता केवल पक्षीराज गरुड़ में ही है।

हनुमान और गरुड़

हनुमान शीघ्रता से गरुड़ के पास आते हैं और गरुड़ को लक्ष्मण और मेघनाथ के युद्ध का सारा वृतांत बताते हैं कि कैसे मेघनाथ द्वारा छल से श्री राम और लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया गया है।

हनुमान जब गरुड़ के पास आते हैं, तो वे बहुत ही चिंतित होते हैं। वे गरुड़ को बताते हैं कि कैसे इंद्रजीत ने नागपाश अस्त्र का प्रयोग करके श्री राम और लक्ष्मण को बांध दिया है। हनुमान जानते हैं कि नागपाश अस्त्र एक बहुत ही शक्तिशाली अस्त्र है और इससे मुक्त होना बहुत मुश्किल है।

हनुमान गरुड़ देव से प्रार्थना करते हैं कि वह शीघ्रता से उनके साथ चले और श्री राम और लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करने की कृपा करें।

हनुमान गरुड़ से कहते हैं कि श्री राम और लक्ष्मण उनके आराध्य हैं। वे उनका जीवन बचाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। वे गरुड़ से कहते हैं कि वह केवल पक्षीराज गरुड़ ही हैं जो नागपाश अस्त्र को छिन्न भिन्न कर सकते हैं।

शुरुआत में तो गुरुदेव आनाकानी करते हैं लेकिन वहां पर देव ऋषि नारद भी आ जाते हैं। और वे भी गरुड़ को समझाते हैं कि इस समय भगवान विष्णु ने धरती से असुरों का नाश करने के लिए श्री राम के रूप में अवतार लिया है। इसलिए आपका परम धर्म यही है कि इस वक्त पवन पुत्र हनुमान की सहायता करें।

देव ऋषि नारद गरुड़ को समझाते हैं कि भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार लेकर धरती पर असुरों का नाश करने का वचन दिया है। इसलिए गरुड़ का परम धर्म है कि वह श्री राम की सहायता करें।

देव ऋषि नारद के समझाने के बाद गरुड़ उनसे सहमत होते हैं और हनुमान के साथ चलने के लिए मान जाते हैं।

देव ऋषि नारद के समझाने के बाद गरुड़ हनुमान की सहायता करने के लिए तैयार हो जाते हैं। वे हनुमान के साथ शीघ्रता से लंका की ओर चल पड़ते हैं।

इस प्रकार, हनुमान और गरुड़ दोनों मिलकर श्री राम और लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त करते हैं और उन्हें युद्ध में विजय प्राप्त करने में मदद करते हैं।

राम – लक्ष्मण की नागपाश से मुक्ति

इधर समस्त वानर सेना हताश होकर किसी चमत्कार के होने की प्रतीक्षा कर रही थी अचानक वे सभी देखते हैं कि पवन पुत्र हनुमान पक्षीराज गुरुड को लेकर आकाश मार्ग से आ रहे हैं। पक्षीराज गरुड़ को देखकर सभी प्रसन्न हो जाते हैं। राम और लक्ष्मण के पास आते हैं गरुड़ अपने पंजों और चोंच से श्री राम और लक्ष्मण के ऊपर लिपटे हुए सभी जहरीले नागो को मारकर हटा देते है। और श्री राम और लक्ष्मण नागपाश से मुक्त कर देते है। नागपाश से मुक्त होते ही दोनों भाई चेतना में आ जाते हैं और उठ खड़े होते हैं। श्रीराम बड़े सहज भाव से पूछते हैं कि क्या हो गया था? तब सुग्रीव उन्हें बताते हैं कि मेघनाथ ने आप दोनों को नागपाश अस्त्र द्वारा बांध दिया था । हम सब हिम्मत हार चुके थे, लेकिन पक्षीराज गरुड़ ने आप दोनों को नागपाश से मुक्त करके नया जीवनदान  दिया है। 

राम और गरुड़

तब श्री राम पक्षीराज गरुड़ का धन्यवाद करते हैं और बोलते हैं कि, “हे पक्षीराज”  हमारा और आपका कोई संबंध ना होते हुए भी आपने निश्चल भाव से हमारे प्राणों की रक्षा की है, हम सदैव आपके आभारी रहेंगे। पक्षीराज गरुड़ कहते हैं कि “हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम, आभार प्रकट करके कृपया मुझे लज्जित ना करें। क्योंकि मैं तो आपका ही सेवक हूं , जब आप अपने इस अवतार को पूरा करके अपने परमधाम में चले जाएंगे तब आप हम दोनों के स्वामी और सेवक के संबंध को पहचान जाएंगे। तब गरुड़ श्रीराम से विनती करता है कि कृपया इन राक्षसों से सतर्क  होकर युद्ध करें, क्योंकि यह किसी भी छल तथा मायावी रूप में युद्ध कर सकते हैं । जबकि आप मर्यादा पुरुषोत्तम है, और युद्ध में भी मर्यादा का पालन वाले है। इतना कहकर गरुड़ श्री राम और लक्ष्मण की परिक्रमा करके वापस चले जाते हैं ।

श्रीराम और लक्ष्मण को सकुशल देखकर पूरी वानर सेना हर्ष हर्षोल्लास से भर जाते हैं और वे श्रीराम के नाम के जयकारे लगाने लगते है। जय श्रीराम तथा जय सियाराम के नारों से पूरा आकाश गूंज उठता है।

वही लंका में जब रावण वानर सेना का जयनाथ तथा जय सियाराम  के नारे सुनता है तो उसके नींद उड़ जाती हैं। तब वह अपने गुप्तचर को बुलाता है और पूछता है कि शत्रु सेना इतनी रात को जयनाद क्यों कर रही है। तब रावण का गुप्त चर बताता है कि राम और लक्ष्मण पर जो संकट आया था वह टल गया है। इसलिए पूरी वानर सेना खुशी से जयनाद कर रही है। तब रावण पूछता है कि यह असंभव है नागपाश से कोई भी मुक्त नहीं हो सकता यह संभव कैसे हुआ।  तब गुप्तचर शुक रावण को बताता है कि विष्णु के अवतार गरुड़ ने राम और लक्ष्मण को नागपाश से मुक्त कर दिया है।

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