Vikram Betaal एक समय की बात है, एक नगर में एक राजा रहता था। उसका नाम चंद्रसेन था। राजा बहुत ही दयालु और धर्मात्मा था। वह हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहता था।
एक दिन, राजा जंगल में शिकार करने गया। शिकार करते समय राजा को एक बूढ़ा व्यक्ति मिला। बूढ़ा व्यक्ति बहुत ही गरीब और भूखा था। राजा ने बूढ़े व्यक्ति को अपने साथ महल ले आया और उसे खाना खिलाया। राजा ने बूढ़े व्यक्ति को कपड़े और पैसे भी दिए।
बूढ़ा व्यक्ति राजा की दयालुता से बहुत खुश हुआ। उसने राजा को धन्यवाद दिया और कहा, “महाराज, आपने मेरे जीवन को बचा लिया है। मैं आपका बहुत आभारी हूं।”
राजा ने कहा, “यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आपकी मदद कर पाया।”
राजा ने बूढ़े व्यक्ति को अपने महल में रहने के लिए भी कहा। बूढ़ा व्यक्ति राजा के महल में रहने लगा और राजा की सेवा करने लगा।
एक दिन, राजा को पता चला कि बूढ़ा व्यक्ति एक सिद्ध पुरुष है। सिद्ध पुरुष ने राजा को बताया कि राजा ने उसके साथ जो दयालुता की है, उसके लिए उसे बहुत पुण्य प्राप्त होगा।
राजा को यह बात सुनकर बहुत खुशी हुई। उसने सिद्ध पुरुष से पूछा, “महात्मा, क्या आप मुझे बता सकते हैं कि सबसे बड़ा पुण्य क्या है?”
सिद्ध पुरुष ने कहा, “सबसे बड़ा पुण्य दूसरों की मदद करना है। जो लोग दूसरों की मदद करते हैं, वे ही सबसे बड़े पुण्यवान होते हैं।”
राजा ने सिद्ध पुरुष की बात मान ली और उसने अपना पूरा जीवन दूसरों की मदद करने में लगा दिया। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था।
राजा की मृत्यु के बाद, वह स्वर्ग में गया। स्वर्ग में, राजा को पता चला कि उसने बहुत बड़ा पुण्य अर्जित किया है। राजा स्वर्ग में बहुत खुश था।
Vikram Betaal बेताल का सवाल
बेताल ने विक्रमादित्य से पूछा, “राजन, बताओ कि राजा चंद्रसेन का पुण्य कितना बड़ा था?”
विक्रमादित्य ने कहा, “राजा चंद्रसेन का पुण्य बहुत बड़ा था। उसने अपने जीवन में दूसरों की मदद करके बहुत बड़ा पुण्य अर्जित किया था।”
बेताल ने कहा, “तुमने सही कहा। राजा चंद्रसेन का पुण्य बहुत बड़ा था।”
बेताल ने विक्रमादित्य को छोड़ दिया और पेड़ पर लटक गया।
विचार
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि दूसरों की मदद करना सबसे बड़ा पुण्य है। जो लोग दूसरों की मदद करते हैं, वे ही सबसे बड़े पुण्यवान होते हैं।