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  • Create Date November 6, 2023
  • Last Updated November 6, 2023

Vishweshvaradistutih

विश्वेश्वरादिस्तुतिः भगवान शिव की स्तुति का एक प्रसिद्ध स्तोत्र है। यह स्तोत्र शिव के सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान रूप की स्तुति करता है। स्तोत्र की रचना अज्ञात है, लेकिन यह अक्सर शिव की पूजा में पढ़ा जाता है।

स्तोत्र की शुरुआत में, भक्त शिव की स्तुति करते हैं। वे शिव को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वव्यापी बताते हैं। वे शिव को ब्रह्मांड का निर्माता, पालनहार और संहारकर्ता भी कहते हैं।

इसके बाद, भक्त शिव से आशीर्वाद मांगते हैं। वे शिव से उन्हें ज्ञान, शक्ति और मोक्ष प्रदान करने का अनुरोध करते हैं। वे शिव से उन्हें अपने भक्तों की रक्षा करने का भी अनुरोध करते हैं।

स्तोत्र का अंत शिव की स्तुति के साथ होता है। भक्त शिव की महिमा गाते हैं और उनके आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं।

स्तोत्र की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं:

  • "हे विश्वेश्वर, आप सर्वव्यापी हैं,

  • और आप ब्रह्मांड के पालनहार हैं।

  • आप सर्वशक्तिमान हैं, और आपके पास सभी ज्ञान है।

  • आप सभी प्राणियों के संरक्षक हैं।"

  • "हे विश्वेश्वर, कृपया मुझे ज्ञान प्रदान करें,

  • ताकि मैं आपकी प्रशंसा कर सकूं।

  • कृपया मुझे शक्ति प्रदान करें,

  • ताकि मैं अपने कर्तव्यों को निभा सकूं।

  • और कृपया मुझे मोक्ष प्रदान करें,

  • ताकि मैं आपकी सेवा कर सकूं।"

  • "हे विश्वेश्वर, आप सर्वशक्तिमान हैं,

  • और आपके पास सभी गुण हैं।

  • आप सर्वव्यापी हैं, और आप सभी प्राणियों में हैं।

  • आप सर्वज्ञ हैं, और आप सब कुछ जानते हैं।"

Vishweshvaradistutih

विश्वेश्वरादिस्तुतिः एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो शिव की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यह स्तोत्र अक्सर भय, मृत्यु और अन्य कठिनाइयों से छुटकारा पाने के लिए पढ़ा जाता है।

स्तोत्र का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है:

विश्वेश्वरादिस्तुतिः

प्रथम श्लोक

वन्दे विश्वेश्वरं देवं, सर्वव्यापिं परात्परम्। सर्वशक्तिमानं ज्ञानी, सर्वज्ञं परमं व्रतम्॥

अर्थ:

मैं विश्वेश्वर देव की वन्दना करता हूँ, जो सर्वव्यापी और परात्पर हैं। वे सर्वशक्तिमान हैं, ज्ञानी हैं, और सर्वज्ञ हैं।

द्वितीय श्लोक

ब्रह्माण्डस्य निर्माता, पालकश्चापि सदा। संहारकर्ता चैव स, विश्वेश्वरो महान्॥

अर्थ:

ब्रह्माण्ड के निर्माता, पालक और संहारकर्ता, विश्वेश्वर महान् हैं।

तृतीय श्लोक

ज्ञानं देहि मे देव, शक्तिं देहि मे प्रभो। मोक्षं देहि मे देव, त्वमेव शरणं मम॥

अर्थ:

हे देव, मुझे ज्ञान प्रदान करें, मुझे शक्ति प्रदान करें, मुझे मोक्ष प्रदान करें। आप ही मेरी शरण हैं।

चतुर्थ श्लोक

सर्वव्यापिं सर्वशक्तिमानं, ज्ञानिं सर्वज्ञं व्रतम्। सर्वदेवानां नाथं, विश्वेश्वरं नमामि॥

अर्थ:

मैं सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, ज्ञानी, सर्वज्ञ और व्रतधारी सर्वदेवों के नाथ, विश्वेश्वर की वन्दना करता हूँ।

वीरभद्रध्यानम् Veerbhadradhyanam


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