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- Create Date October 24, 2023
- Last Updated July 29, 2024
श्री शिवप्रातःस्मरणस्तोत्रम् 2 एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान शिव की स्तुति में लिखा गया है। यह स्तोत्र दो श्लोकों में विभाजित है, प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव के एक अलग रूप या गुण का वर्णन है।
श्लोक 1:
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम्। खट्वाङ्गशूल वरदाभयहस्तमीशं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥
अर्थ:
मैं सुबह भगवान शिव को याद करता हूं, जो भवभीति को दूर करते हैं, देवताओं के स्वामी हैं, गंगाधर हैं, वृषभ पर सवार हैं, और पार्वती के पति हैं। मैं उनको खट्वांग, त्रिशूल, वर और अभयमुद्रा धारण करने वाले, संसार के रोगों को दूर करने वाले और अद्वितीय औषधि के रूप में स्मरण करता हूं।
श्लोक 2:
वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम्। नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यम्॥
अर्थ:
मैं भगवान शिव को वेदांत द्वारा ज्ञात, निर्दोष, महान पुरुष के रूप में स्मरण करता हूं। मैं उनको नाम आदि भेद से रहित, और षड्भाव से शून्य के रूप में स्मरण करता हूं।
श्री शिवप्रातःस्मरणस्तोत्रम् 2 का नियमित पाठ करने से भक्तों में भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति जागृत हो सकती है। यह स्तोत्र भक्तों को शांति, समृद्धि, और सफलता प्रदान कर सकता है।
श्री शिवप्रातःस्मरणस्तोत्रम् 2 के कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलू इस प्रकार हैं:
- यह स्तोत्र भगवान शिव के दो अलग-अलग रूपों की स्तुति करता है।
- यह स्तोत्र भगवान शिव को सर्वोच्च देवता के रूप में दर्शाता है।
- यह स्तोत्र भक्तों में भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति जागृत करने में मदद कर सकता है।
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