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- Create Date October 10, 2023
- Last Updated July 29, 2024
श्री अन्नपूर्णाष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो देवी अन्नपूर्णा की स्तुति करता है। यह स्तोत्र देवी अन्नपूर्णा की महिमा और उनके भक्तों को प्रदान की जाने वाली कृपा का वर्णन करता है।
श्री अन्नपूर्णाष्टकम् के अनुसार, देवी अन्नपूर्णा समस्त ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री हैं। वे सभी जीवों को भोजन प्रदान करती हैं और उनके जीवन को समृद्ध करती हैं। देवी अन्नपूर्णा के भक्तों को कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है। वे हमेशा सुखी और समृद्ध रहते हैं।
श्री अन्नपूर्णाष्टकम् का पाठ करने से देवी अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्तों को भोजन, धन, समृद्धि और आरोग्य प्रदान करता है।
श्री अन्नपूर्णाष्टकम् के कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:
- यह स्तोत्र भोजन, धन, समृद्धि और आरोग्य प्रदान करता है।
- यह स्तोत्र भक्तों को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति दिलाता है।
- यह स्तोत्र भक्तों को मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
श्री अन्नपूर्णाष्टकम् का पाठ करने के लिए कोई विशेष नियम नहीं है। इसे किसी भी समय और किसी भी स्थान पर पढ़ा जा सकता है। हालांकि, सुबह जल्दी उठकर और पवित्र स्थान पर बैठकर पाठ करना अधिक लाभदायक होता है।
श्री अन्नपूर्णाष्टकम् का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जा सकता है:
- सबसे पहले, एक शुद्ध स्थान पर बैठें और अपने सामने एक दीपक जलाएं।
- फिर, अपने हाथों को जोड़कर देवी अन्नपूर्णा का ध्यान करें।
- अब, स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ समाप्त होने के बाद, देवी अन्नपूर्णा से प्रार्थना करें कि वे आपको अपनी कृपा प्रदान करें।
श्री अन्नपूर्णाष्टकम् का पाठ निम्नलिखित है:
श्री अन्नपूर्णाष्टकम्
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी।
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी॥१॥
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥२॥
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी।
मुक्ताहारविलम्बमान विलसत् वक्षोजकुम्भान्तरी॥३॥
काश्मीरागरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥४॥
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी।
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी॥५॥
सर्वदेवमूर्ति देवी सर्वशक्तिस्वरूपिणी।
सर्वभूतहितकरी देवी अन्नपूर्णेश्वरी॥६॥
सर्वत्रैव वससि त्वं सर्वेषां हृदयेषु।
सर्वलोकहितकरी देवी अन्नपूर्णेश्वरी॥७॥
नित्यं त्वां स्मरन् भक्तो न भुजेत् कदापि दुःखम्।
सर्वपापनाशिनी देवी अन्नपूर्णेश्वरी॥८॥
अन्नपूर्णे प्रसीदतु मातः सर्वाभीष्टफलप्रदा।
त्वं भवानी भवानी भवानी भवानी भवानी॥९॥
अर्थ:
(1) हे देवी अन्नपूर्णेश्वरी, आप आनंद और सुरक्षा प्रदान करने वाली हैं, और आप सौंदर्य की खान हैं। आप सभी पापों को नष्ट करने वाली हैं, और आप प्रत्यक्ष रूप से भगवान शिव की पत्नी हैं।
(2) हे देवी अन्नपूर्णेश्वरी, आप हिमालय के परिवार को पवित्र करने वाली हैं, और आप काशी की देवी हैं। मुझे भिक्षा
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