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  • Create Date October 10, 2023
  • Last Updated October 10, 2023

Annapurnastava एक संस्कृत स्तोत्र है जो देवी अन्नपूर्णा की स्तुति करता है। यह स्तोत्र देवी अन्नपूर्णा की महिमा और उनके भक्तों को प्रदान की जाने वाली कृपा का वर्णन करता है।

Annapurnastava के अनुसार, देवी अन्नपूर्णा समस्त ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री हैं। वे सभी जीवों को भोजन प्रदान करती हैं और उनके जीवन को समृद्ध करती हैं। देवी अन्नपूर्णा के भक्तों को कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है। वे हमेशा सुखी और समृद्ध रहते हैं।

Annapurnastava का पाठ करने से देवी अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्तों को भोजन, धन, समृद्धि और आरोग्य प्रदान करता है।

Annapurnastava के कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

  • यह स्तोत्र भोजन, धन, समृद्धि और आरोग्य प्रदान करता है।
  • यह स्तोत्र भक्तों को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति दिलाता है।
  • यह स्तोत्र भक्तों को मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।

Annapurnastava का पाठ करने के लिए कोई विशेष नियम नहीं है। इसे किसी भी समय और किसी भी स्थान पर पढ़ा जा सकता है। हालांकि, सुबह जल्दी उठकर और पवित्र स्थान पर बैठकर पाठ करना अधिक लाभदायक होता है।

Annapurnastava का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जा सकता है:

  1. सबसे पहले, एक शुद्ध स्थान पर बैठें और अपने सामने एक दीपक जलाएं।
  2. फिर, अपने हाथों को जोड़कर देवी अन्नपूर्णा का ध्यान करें।
  3. अब, मंत्र का उच्चारण करते हुए स्तोत्र का पाठ करें।
  4. पाठ समाप्त होने के बाद, देवी अन्नपूर्णा से प्रार्थना करें कि वे आपको अपनी कृपा प्रदान करें।

Annapurnastava एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को कई लाभ प्रदान करता है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से आप देवी अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख, समृद्धि और आरोग्य प्राप्त कर सकते हैं।

Annapurnastava का एक उदाहरण निम्नलिखित है:

श्री अन्नपूर्णास्तव

नमस्ते अन्नपूर्णे देवी, सर्वभूताधिश्वरि। सर्वेष्टेश्वरि, सर्वज्ञा, सर्वशक्ति, सर्वकारिणी।

नमस्ते करुणावतारिणी, नमस्ते जगत्प्रदायिनि। नमस्ते सर्वदुःखहरिणी, नमस्ते सर्वसौभाग्यदायिनि।

नमस्ते सर्वदेवदेवते, नमस्ते सर्वदेववल्लभे। नमस्ते सर्वलोकपते, नमस्ते सर्वलोकवर्धिनि।

नमस्ते सर्वसौभाग्ये, नमस्ते सर्वसम्पदे। नमस्ते सर्वपापनाशिनि, नमस्ते सर्वदुःखहारिणी।

नमस्ते सर्वसुखप्रदे, नमस्ते सर्वप्रदायिनि। नमस्ते सर्वलोकवत्सले, नमस्ते सर्वलोकप्रिये।

नमस्ते सर्वभूतेश्वरि, नमस्ते सर्वदुःखहारिणी। नमस्ते सर्वसौभाग्ये, नमस्ते सर्वसम्पदे।

इति श्रीअन्नपूर्णास्तव समाप्त।

इस स्तोत्र में, भक्त देवी अन्नपूर्णा की महिमा का वर्णन करते हैं। वे देवी को सर्वभूताधिश्वरी, सर्वेष्टेश्वरि, सर्वज्ञा, सर्वशक्ति और सर्वकारिणी कहते हैं। वे देवी को करुणावतारिणी, जगत्प्रदायिनि, सर्वदुःखहरिणी और सर्वसौभाग्यदायिनि भी कहते हैं।

भक्त देवी को सर्वदेवदेवते, नमस्ते सर्वदेववल्लभे, सर्वलोकपते, सर्वलोकवर्धिनि, सर्वसौभाग्ये, सर्वसम्पदे, सर्वपापनाशिनि, सर्वदुःखहारिणी, सर्वसुखप्रदे, सर्वप्रदायिनि, सर्वलोकवत्सले और सर्वलोकप्रिये कहते हैं।

अंत में, भक्त देवी से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति दिलाएं और उन्हें सभी प्रकार के सुख प्रदान करें।


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