साल में आने वाली हर एक एकादशी का अपना अलग ही महत्व है। सावन शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है पुत्रदा एकादशी साल में वैसे 2 बार आती है। पुत्रदा एकादशी को लेकर मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान की सुख की प्राप्ति होती है साथ ही संतान की उन्नति होती है। आइए जानते हैं कब है सावन शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी। इसका महत्व और पूजा विधि।
कब है पुत्रदा एकादशी
पंचांग के अनुसार, सावन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 26 अगस्त देर रात 12 बजकर 9 मिनट पर प्रारंभ होगी और अगले दिन यानी 27 अगस्त की रात 9 बजकर 33 मिनट तक रहेगी। उदय तिथि में एकादशी तिथि होने के कारण यह व्रत 27 अगस्त को ही रखा जाएगा।
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27 अगस्त को बहुत ही शुभ सर्वार्थ सिद्धि योग भी है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 5 बजकर 56 मिनट से आरंभ होगा और 7 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इसलिए इस शुभ मुहूर्त में पूजा करना अति उत्तम फलदायी रहेगा।
पुत्रदा एकादशी का महत्व
मान्यताओं के अनुसार, पुत्रदा एकादशी का व्रत उत्तम फल देने वाला है। अगर किसी को संतान सुख में बाधा आ रही है तो वह इस व्रत को रख सकते हैं। साथ ही इस व्रत को रखने से संतान के सभी कष्ट भी दूर होता है। साथ ही संतान को स्वास्थ्य और अच्छी आयु का वरदान मिलता है।
पुत्रदा एकादशी पूजा विधि
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि के बाद घर के मंदिर में देसी घी का दीपक जलाएं। इसके बाद भगवान विष्णु को गंगाजल से अभिषेक करें। इसके बाद भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी अर्पित करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। साथ ही तुलसी माला से 108 बार ओम वासुदेवाय नम: का जप करें। अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। इस दिन भगवान को भी सात्विक चीजों का ही भोग लगाएं। साथ ही भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। इस दिन रविवार है तो तुलसी के पत्ते पहले ही तोड़ कर रख दें।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
द्वापर युग के आरंभ में महिरूपति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। एक दिन राज्य के सभी ऋषि-मुनियों, सन्यासियों और विद्वानों को बुलाकर संतान प्राप्ति के उपाय पूछे। राजा की बात सुनकर सभी ने कहा कि ‘हे राजन तुमने पूर्व जन्म में सावन माह की एकादशी के दिन अपने तालाब से एक गाय को जल नहीं पीने दिया था। जिसके कारण गाय ने तुम्हे संतान न होने का श्राप दिया था।
इसके बाद सभी ऋषि-मुनियों ने कहा कि हे राजन यदि तुम और तुम्हारी पत्नी पुत्रदा एकादशी का व्रत रखें तो इस श्राप से मुक्ति पा सकते हो। जिसके बाद तुम्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है। यह सुनकर राजा ने पत्नी के साथ मिलकर पुत्रदा एकादशी का व्रत का संकल्प लिया। इसके बाद राजा ने सावन माह में आने वाली पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा और इस व्रत के प्रभाव से वह शाप से मुक्त हो गया। जिसके बाद उसकी पत्नी गर्भवती हुई और एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। राजा काफी प्रसन्न हुए और तब से वह प्रत्येक पुत्रदा एकादशी का व्रत करने लगे। कहते हैं जो कि साधक पूरे मन व श्रद्धा के साथ यह व्रत करता है भगवान विष्णु उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।