वैसे तो उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती होती है और वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भी आरती के लिए चिता की अग्नि का इस्तेमाल किया जाता है। भगवान शंकर के ये दोनों ही मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल हैं, लेकिन इसके अतिरिक्त अगर देश में कोई अन्य ऐसा शिवालय है जहां आरती की ज्योत प्रज्जवलित करने के लिए जलती हुई चिता की लकड़ी का सहारा लिया जाता है, तो वह है कोलकाता के नीमतल्ला घाट के समीप बना बाबा भूतनाथ मंदिर।

महाकाल शिव शंकर भोलेनाथ का वह स्वरूप जो रुद्र है प्रचंड है, जो काल का भी काल है वो महाकाल हैं। जी हाँ यूँ तो भोलेनाथ बड़े ही सौम्य स्वभाव के हैं लेकिन महाकाल शिव का वह रूप है जिसमें गुस्सा है, आग है, पापियों का सर्वनाश करने की क्षमता है, जिसमें समाहित है धर्म और सत्य की विजय। महाकाल जो लिंगम रूप में विराजमान हैं। उज्जैन के रुद्र सागर झील के किनारे महाकालेश्वर में जो भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और दक्षिण मुखी है।

प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में महाकालेश्वर को भगवान शिव का सबसे पवित्र निवास स्थान माना जाता है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ चिता की राख से भस्म आरती की रस्म निभाई जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि भस्म क्यों लगाते है बाबा भोले नाथ। क्या है शिव के शरीर पर भस्म लगाने का रहस्य, भस्म में छिपा है कौन सा जीवन का सार ये सब हम आपको बताएंगे लेकिन इससे पहले आपको बताते हैं महाकालेश्वर की अद्भुत कथा जिसके बारे में शिवपुराण में भी बताया गया है।

पुराणो में लिखा है कि उज्जैन की अवंती नगरी में एक वेद प्रिय नाम के ब्राह्मण रहते थे एक दिन वेदप्रिय अपने बेटों और अन्य धर्म आत्माओं के साथ पूजा पाठ में लीन थे तभी एक दूषण नाम के असुर ने उन पर आक्रमण कर दिया लेकिन भयंकर आक्रमण से भी शिव पर विश्वास करने वाले ब्राह्मण के पुत्र नहीं डरे और शिव की पूजा करते रहे लेकिन जब असुर को लगा कि ब्राह्मण के पुत्र उस से नहीं डर रहे तो गुस्साएं दैत्य ने जैसे ही शस्त्र उठाये

वैसे ही वहाँ भगवान शिव प्रकट हो गए और फिर भगवान शिव ने दूषण को भस्म कर दिया और फिर उसकी राख से अपना श्रृंगार किया इसी वजह से इस मंदिर का नाम महाकालेश्वर रख दिया गया। और इस शिवलिंग की भस्म से आरती की जाने लगी। इसके अलावा भगवान शिव के भस्म रमाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण भी बताए गए हैं। भोले नाथ का अपने शरीर पर भस्म लगाने का दार्शनिक अर्थ यह है की ये शरीर जिस पर हम गर्व करते हैं

700 साल पुरानी है भूतनाथ मंदिर, मनोवांछित फल और भक्तों की मुरादे होती है पूरी

एक दिन इसका भस्म के समान ही अंत हो जाना है। वहीं भस्म की एक विशेषता यह भी है की ये शरीर के रोमछिद्रों को बंद कर देता है साथ ही इसका मुख्य गुण ये है की यदि कोई व्यक्ति इसे शरीर पर लगाता है तो गर्मी में गर्मी और सर्दी में ठंड नहीं लगती। तो ये वो रहस्य है जो ज्यादातर लोग भस्म को लेकर नहीं जानते हैं लेकिन अब बात शिव के भस्म आरती की भी कर लेते हैं जिससे जुड़े कई नियम भी हैं जो की इस आरती के दौरान किए जाते हैं।

दरअसल महिलाओं को इस आरती में शामिल होने के लिए साड़ी पहनना जरूरी होता है और जिस वक्त शिवलिंग पर भस्म चढ़ती है उस वक्त महिलाओं को घूंघट करने को भी कहा जाता है। मान्यता है कि उस वक्त भगवान शिव निराकार स्वरूप में होते हैं इस स्वरूप के दर्शन करने की अनुमति महिलाओं के लिए वर्जित है इसलिए महिलाओं को आरती के दौरान घूंघट में रहना होता है। लेकिन ऐसा नहीं के नियम केवल महिलाओं के लिए हैं। पुरुषों को भी इस आरती के दौरान कई नियमों का पालन करना होता है।

इस आरती में शामिल होने के लिए पुरुषों को केवल धोती पहननी होती है वो भी साफ, स्वच्छ और सूती होनी चाहिए। पुरुष इस आरती को केवल देख सकते हैं और करने का अधिकार केवल यहाँ के पुजारियों को ही होता है। वैसे आपको बता दें कि देशभर में ये इकलौता ऐसा शिव मंदिर है जहाँ भगवान शिव की 6 बार आरती की जाती है और हर आरती में भगवान शिव के एक नए स्वरूप के दर्शन होते हैं।

सबसे पहले भस्म आरती फिर दूसरी आरती में भगवान शिव को घटाटोप स्वरूप दिया जाता है तीसरी आरती में शिवलिंग को हनुमानजी का रूप दिया जाता है। चौथी में भगवान शिव का शेषनाग अवतार, पाँचवी में शिव भगवान के दूल्हे का रूप और छठवीं आरती में शयन आरती होती है। जिसमें भगवान शिव खुद के स्वरूप में होते हैं। ऐसे में अगर आप भी इस मंदिर में भस्म आरती में शामिल होना चाहते हैं तो आप इसके लिए पहले से ही रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।

भूतनाथ मंदिर का इतिहास खंगालने पर पता चला है कि बिल्कुल श्मशान भूमि पर ही शिवलिंग यानी मंदिर बना हुआ था इसीलिए आरती के वक्त जब ज्योति प्रज्जवलन की जरूरत होती थी तब पुजारी किसी भी जलती हुई चिता से एक लकड़ी उठा लेता था। यह प्रथा तब से आज तक जारी है।

गंगा नदी के पश्चिम किनारे पर बने भूतनाथ मंदिर के भव्य व दिव्य मंदिर के संचालन का जिम्मा हिंदू सत्कार समिति के पास है, जबकि प्रबंधन का कार्य मंदिर कमेटी देखती है। हिंदू सत्कार समिति के संयुक्त सचिव के मुताबिक 1932 से समिति ने मंदिर का संचालन अपने हाथों में लिया और साल-दर-साल मंदिर का विस्तार व प्रचार होता गया।

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