भारत देश में रीती रिवाजों का मैला हैं. सभी धर्म एवम जाति की भिन्न – भिन्न विभिन्न मान्यतायें हैं, जिनके अनुसार वे अपने धर्म का पालन करते हैं.पूजा, पाठ, उपवास एवम व्रत का पालन सभी धर्मो में किया जाता हैं उसी प्रकार जैन धर्म में कई व्रत एवम उपवास का नियम होता हैं.
रोहिणी व्रत जैन धर्म के अनुयायी द्वारा किया जाता हैं. इस पूजा में जैन धर्म के लोग भगवान वासुपूज्य की पूजा करते हैं. यह व्रत जैन महिलाओ द्वारा अपने पति की लम्बी आयु एवम स्वास्थ्य के लिए करती हैं.
रोहिणी व्रत तिथी व इसका महत्त्व क्या हैं
सत्ताविस नक्षत्र में से रोहिणी एक नक्षत्र हैं. जब रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय के बाद प्रबल होता हैं. उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता हैं. यह दिन प्रति 27 दिनों के बाद आता है, इस प्रकार रोहिणी व्रत वर्ष में बारह – तेरह बार मनाया जाता हैं.
नियमानुसार रोहिणी व्रत 3 वर्ष, 5 वर्ष अथवा 7 वर्ष तक नियमित किया जाता है, उसके बाद इस व्रत का उद्यापन कर दिया जाता हैं. इस उपवास का पालन करने से दुःख तकलीफ एवम परेशानियों से छुटकारा मिलता हैं.
साल 2023 में रोहिणी व्रत कब है
रोहिणी व्रत का पालन जैन धर्म के लोगो द्वारा किया जाता है.जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर भगवान कहे जाते हैं, जिनके अनुसार मनुष्य जाति का सबसे बड़ा धर्म अहिंसा हैं. वे एक सन्यासी व्यक्ति थे, जिन्होंने आध्यात्म को सदा साधना एवम कठोर सैयमित जीवन के रूप में देखा हैं. उनका मानना था मनुष्य खुद अपने ही भौतिक सुखो के सामने परतंत्र हैं, अगर मनुष्य स्वयं की भावनाओं अर्थात इन्द्रियों पर नियंत्रण करेगा, तब ही सच्चे मायने में एक तपस्वी कहलायेगा.
जैन धर्म में रोहिणी व्रत महिलाओं द्वारा किया जाता हैं, जिसे वे अपने परिवार की खुशहाली एवम पति की लम्बी उम्र के लिए करती हैं, विधि अनुसार 5 वर्ष 5 महीने तक रोहिणी व्रत का पालन करना अच्छा माना जाता हैं.
रोहिणी व्रत की पूजा कैसे की जाती हैं
- इसके लिए महिलायें प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करती हैं साथ ही पवित्र होकर पूजा करती हैं.
- इस व्रत में भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती हैं.
- वासुपूज्य देव की आरधना करके नैवेध्य लगाया जाता हैं.
- रोहिणी व्रत का पालन रोहिणी नक्षत्र के दिन से शुरू होकर अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष तक चलता हैं.
- रोहिणी व्रत के दिन गरीबों को दान देने का भी महत्व होता हैं.
- इसके लिए महिलायें प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करती हैं साथ ही पवित्र होकर पूजा करती हैं.
- इस व्रत में भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती हैं.
- वासुपूज्य देव की आरधना करके नैवेध्य लगाया जाता हैं.
- रोहिणी व्रत का पालन रोहिणी नक्षत्र के दिन से शुरू होकर अगले नक्षत्र मार्गशीर्ष तक चलता हैं.
- रोहिणी व्रत के दिन गरीबों को दान देने का भी महत्व होता हैं.
रोहिणी व्रत उद्यापन विधि
यह व्रत एक निश्चित काल तक ही किया जाता हैं इसका निर्णय व्रती स्वयं लेता हैं. मानी गई व्रत अवधि पूरी होने पर इस व्रत का उद्यापन कर दिया जाता हैं. इस व्रत के लिए 5 वर्ष 5 माह की अवधि श्रेष्ठ कही जाती हैं.
उद्यापन के लिए इस व्रत को नियमित रूप से करके गरीबो को भोजन कराया जाता हैं एवम दान दिया जाता हैं एवम भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती हैं उद्यापन के दिन इनके दर्शन किये जाते हैं.
इस प्रकार पुराणों में रोहिणी व्रत का महत्व निकलता हैं.रोहिणी एक नक्षत्र हैं जैन एवम हिन्दू धर्म में नक्षत्र की मान्यता लगभग समाना होती हैं. रोहिणी व्रत का नियमित पालन करने से धन, धान्य एवम सुखो में वृद्धि होती हैं.
MOST IMPORTANT QUESTION
Q- रोहिणी व्रत का महत्व क्या है?
Ans- रोहिणी व्रत का महत्व है दुख और परेशानियों से छुटकारा पाना।
Q- रोहिणी व्रत की पूजा कब की जाती है?
Ans- रोहिणी व्रत सूर्योदय के बाद की जाती है।
Q- रोहिणी व्रत किस समुदाय के लोग करते हैं?
Ans- रोहिणी व्रत की सबसे ज्यादा मान्यता जैन समुदाय में है।
Q- रोहिणी व्रत कब होता है?
Ans- रोहिणी व्रत 27 नक्षत्रों से मिलने पर होता है रोहिणी व्रत।
Q- रोहिणी व्रत कौन करता है?
Ans- रोहिणी व्रत कोई भी कर सकता है।