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Mitra Saptami

Mitra Saptami 2025: मित्र सप्तमी, जिसे सूर्य सप्तमी या भानु सप्तमी के रूप में भी जाना जाता है, सूर्य देव की उपासना का एक प्रमुख हिन्दू पर्व है। यह पर्व संपूर्ण भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है।

Mitra Saptami 2025 Mein Kab Manayi Jati Hai: मित्र सप्तमी कब मनाई जाती है?

मित्र सप्तमी सूर्य देव को समर्पित एक पवित्र और शुभ दिन है।
मित्र सप्तमी 2025 की तिथि – 27 नवंबर 2025

यह व्रत मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन सूर्य देव की आराधना करके स्वास्थ्य, शक्ति, तेज और समृद्धि की कामना करते हैं।

मार्गशीर्ष (अगहन) माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मित्र सप्तमी मनाई जाती है।

इस दिन विशेष रूप से भगवान श्रीहरि के अवतार सूर्य देव की उपसना की जाती है। “मित्र”, भगवान सूर्य के कई नामों में से एक है, अतः इस सप्तमी को मित्र सप्तमी के नाम से संबोधित किया जाता है।

मित्र सप्तमी का पौराणिक महत्व:Mythological significance of Mitra Saptami

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव को महर्षि कश्यप और देव-माता अदिति का पुत्र कहा गया है। जब दैत्यों का प्रभुत्व स्वर्ग पर स्थापित हो गया और देवों की दुर्दशा हुई, तब देव-माता अदिति ने भगवान सूर्य की कठोर उपासना की। अदिति की तपस्या से प्रसन्न होकर, सूर्य भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि वह उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और देवताओं की रक्षा करेंगे।

भगवान सूर्य ने अदिति के गर्भ से जन्म लिया, देवताओं के नायक बने, असुरों को परास्त किया और देवों का प्रभुत्व पुनः कायम किया। नारद जी के कथन के अनुसार, जो व्यक्ति मित्र सप्तमी का व्रत करता है और अपने पापों की क्षमा मांगता है, सूर्य भगवान उससे प्रसन्न होकर उसे पुन: नेत्र ज्योति प्रदान करते हैं।

मित्र सप्तमी पर कैसे करें पूजा? (पूजन विधि):How to worship on Mitra Saptami? (Liturgy)

मित्र सप्तमी Mitra Saptami का व्रत भगवान सूर्य की उपासना का एक महत्वपूर्ण पर्व है।

1. पवित्र स्नान और स्वच्छता: इस दिन परिवार के सभी सदस्य स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं। व्रत का आयोजन मार्गशीर्ष माह के आरंभ के साथ ही शुरू हो जाता है।

2. नदी स्नान: मित्र सप्तमी के दिन गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे स्नान करने की विशेष महत्ता है।

3. अर्घ्यदान (जल अर्पित करना): स्नान के उपरांत, उगते हुए सूर्य को जल (अर्घ्य) अर्पित करें। यह अर्घ्यदान इस प्रकार किया जाता है: भगवान सूर्य के सामने मुँह करते हुए, नमस्कार मुद्रा में, मुड़े हुए हाथ से, छोटे कलश की सहयता से धीरे-धीरे जल चढ़ाते हैं। जल की गिरती धारा के बीच सूर्य देव के दर्शन करने से नेत्र रोग दूर होते हैं।

4. व्रत और फलाहार: इस दिन व्रत रखें और केवल फल खाएं। नमक (नमक) का सेवन बिल्कुल न करें। सप्तमी को फलाहार करके अष्टमी को मिष्ठान (मीठा) ग्रहण करते हुए व्रत का पारण करें।

5. षोडशोपचार पूजन: व्रती अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर भगवान आदित्य का पूजन करता है। Mitra Saptami पूजा में फल, विभिन्न प्रकार के पकवान एवं मिष्ठान को शामिल किया जाता है। पूजा का सामान जैसे फल, दूध, केसर, कुमकुम, बादाम आदि तैयार किया जाता है।

6. विशेष पूजा: सात घोड़ों पर बैठे सूर्य देव की तस्वीर या मूर्ति की पूजा करने से त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं।

7. तिलक: इस दिन माथे और हृदय पर लाल चंदन का तिलक लगाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

मित्र सप्तमी के मंत्र और जाप:Mantras and chanting of Mitra Saptami

सूर्य देव को अर्घ्य देने और उनकी पूजा करते समय मंत्र जाप का विशेष महत्व है:

गायत्री मंत्र: लाल चंदन की माला या रुद्राक्ष की माला से गायत्री मंत्र का जाप करने से मानसिक सुख, शांति और शारीरिक शक्ति मिलती है। गायत्री मंत्र का जाप सभी रोगों से मुक्ति दिलाता है।

आदित्य हृदय स्तोत्र: मित्र सप्तमी के दिन आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप करें।

सूर्य देव का मंत्र: “ॐ मित्राय नमः” मंत्र का जाप करने से सभी रोगों से मुक्ति मिलती है।

दान का महत्व:importance of charity

यदि आपकी कुंडली में सूर्य खराब स्थिति में है और सूर्य नीच राशि में स्थित है, तो 10 किलो गेहूं में सवा किलो गुड़ मिलाकर किसी गरीब व्यक्ति को दान कर दें।

मित्र सप्तमी करने के लाभ और महत्व:Benefits and importance of doing Mitra Saptami

सृष्टि में सकारात्मकता के देव सूर्यदेव को प्रत्यक्ष देवता माना जाता है। Mitra Saptami मित्र सप्तमी का व्रत सभी सुखों को प्रदान करने वाला है। इस व्रत को करने के निम्नलिखित लाभ हैं:

1. स्वास्थ्य और दीर्घायु: भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। Mitra Saptami यह व्रत करने से आरोग्य (स्वास्थ्य) और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

2. रोगों से मुक्ति: इस दिन भगवान सूर्य की आराधना करने से नेत्र ज्योति (आँखों की रोशनी) एवं चर्म रोंगों (त्वचा रोगों) से मुक्ति मिलती है। नेत्र रोग दूर होते हैं।

3. सुख-समृद्धि: इस व्रत को करने से घर में धन की वृद्धि होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

4. सूर्य की किरणें: पूजन और अर्घ्य देने के समय सूर्य की किरणें अवश्य ग्रहण करनी चाहिए।

सूर्य देव की आराधना से जुड़े और जानकारियाँ, जैसे श्री सूर्य देव चालीसा, कोणार्क सूर्य मंदिर की जानकारी, और आदित्य-हृदय स्तोत्र, भी उपलब्ध हैं।

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