
Govatsa Dwadashi 2025 Mein Kab Hai: क्या आप जानते हैं कि भारतीय संस्कृति में गौमाता को सर्वोच्च तीर्थस्थान और देवताओं का निवास क्यों माना जाता है? गोवत्स द्वादशी एक ऐसा ही पावन पर्व है जो गाय और उनके बछड़ों के प्रति हमारी कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है, जिसे ‘नंदिनी व्रत’ या ‘बछ बारस’ के नाम से भी जाना जाता है
गोवत्स द्वादशी और वसु बारस का अर्थ और महत्व:Meaning and significance of Govatsa Dwadashi and Vasu Baras
Govatsa Dwadashi:गोवत्स द्वादशी हिंदू कैलेंडर के अनुसार अश्विन माह (अक्टूबर और नवंबर के बीच) के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि (12वें दिन) को मनाई जाती है। कई क्षेत्रों में, यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है।
नाम: इसे नंदिनी व्रत भी कहा जाता है। महाराष्ट्र में इसे ‘वसु बारस’ कहते हैं, जो दीवाली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। ‘वसु’ का अर्थ गाय और ‘बारस’ का अर्थ बारहवाँ दिन होता है। Govatsa Dwadashi गुजरात में इसे ‘वाघ बारस’ के नाम से जाना जाता है। Govatsa Dwadashi उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में इसे ‘वाघ’ भी कहते हैं, जिसका अर्थ है वित्तीय ऋण चुकाना, इसलिए इस दिन व्यापारी अपने खाते की किताबें साफ करते हैं।
महत्व: यह पर्व गौमाता को समर्पित है, जिन्हें हिंदू धर्म में पवित्र माता माना जाता है क्योंकि वे मानव जाति को पोषण प्रदान करती हैं।
संतान सुख: माताएँ इस दिन अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य, लंबी आयु और कल्याण के लिए उपवास रखती हैं।
संतान प्राप्ति: यह माना जाता है कि यदि कोई निसंतान दंपत्ति श्रद्धापूर्वक गोवत्स द्वादशी का व्रत और पूजा करता है, तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।
पापों से मुक्ति: इस दिन गाय की सेवा और पूजा करने से व्यक्ति को जाने-अनजाने में हुए गौ-अनादर या पापों से मुक्ति मिलती है।
Govatsa Dwadashi 2025 Date And Time: गोवत्स द्वादशी 2025 (बछ बारस): जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और व्रत के नियम
Govatsa Dwadashi 2025 Mein Kab Hai: क्या आप जानते हैं कि भारतीय संस्कृति में गौमाता को सर्वोच्च तीर्थस्थान और देवताओं…
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गोवत्स द्वादशी 2025: शुभ तिथि और मुहूर्त:Govatsa Dwadashi 2025: Auspicious date and time
गोवत्स द्वादशी का पर्व धनतेरस से ठीक एक दिन पहले आता है।
विवरण | तिथि और समय | |
गोवत्स द्वादशी 2025 की तिथि | 17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार | |
द्वादशी तिथि प्रारम्भ | 17 अक्टूबर, 2025 को 11:12 ए एम बजे से | |
द्वादशी तिथि समाप्त | 18 अक्टूबर, 2025 को 12:18 पी एम बजे तक | |
प्रदोषकाल गोवत्स द्वादशी मुहूर्त (श्री मंदिर) | 05:29 पी एम से 07:59 पी एम तक (अवधि: 02 घण्टे 30 मिनट्स) | |
प्रदोषकाल गोवत्स द्वादशी मुहूर्त (गणेशस्पीक्स) | 06:05 PM to 08:30 PM (Duration: 02 Hours 25 Mins) |
गोवत्स द्वादशी पूजा विधि और व्रत के नियम:Govatsa Dwadashi puja method and fasting rules
इस दिन गाय और बछड़े की पूजा के लिए शुद्धता और श्रद्धा सबसे महत्वपूर्ण है।
पूजा की विधि (Puja Vidhi)
1. व्रत का संकल्प: व्रत रखने वाली महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें और संतान की दीर्घायु या अन्य मनोकामनाओं के लिए व्रत का संकल्प लें।
2. गौ-स्नान और सज्जा: गाय और बछड़े को साफ पानी से स्नान कराएं और उन्हें नए वस्त्र या कपड़े से सजाएं।
3. तिलक: उनके माथे पर कुमकुम, हल्दी, अक्षत (चावल) और बाजरे या मूंग से तिलक लगाएं।
4. भोग: उन्हें श्रद्धा से हरा चारा, अंकुरित मूंग-मौठ, भीगे चने, गुड़ और मीठी रोटी खिलाएं। (यह भोग नंदिनी की पृथ्वी पर उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करता है।)
5. आरती और प्रार्थना: दीपक जलाकर गाय की आरती उतारें। उनके चरण स्पर्श करें, सहलाएं और जाने-अनजाने में हुए पापों के लिए क्षमा याचना करते हुए परिक्रमा करें।
6. प्रतिकात्मक पूजा: यदि आपके पास गाय और बछड़े उपलब्ध न हों, तो शुद्ध गीली मिट्टी से उनकी प्रतीकात्मक प्रतिमा बनाकर भी पूजा की जा सकती है।
7. श्रीकृष्ण की पूजा: इस दिन भगवान श्रीकृष्ण (जिन्हें गायों के प्रति अपने गहरे प्रेम के लिए जाना जाता है) की भी पूजा की जाती है।
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गोवत्स द्वादशी व्रत के दौरान क्या न करें (वर्जित कार्य):What not to do during Govatsa Dwadashi fast (forbidden actions)
गोवत्स द्वादशी Govatsa Dwadashi के दिन व्रत के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।
वर्जित वस्तु/कार्य | कारण और स्पष्टीकरण | |
गाय के दूध से बने उत्पाद | इस दिन गाय का दूध, दही, घी या पनीर जैसी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए। | |
चाकू से कटी वस्तुएँ | व्रत रखने वाली महिलाएं चाकू से कटी हुई फल, कंद-मूल या सब्जियां नहीं खाती हैं। केवल बिना कटे फल और कंद-मूल का सेवन करें। | |
गेहूं से बना भोजन | इस दिन गेहूं से बने खाद्य पदार्थों को ग्रहण करना भी वर्जित माना जाता है। बाजरे से बना खाना ग्रहण किया जा सकता है. | |
गौमाता को कष्ट | किसी भी गाय या बछड़े को मारना, भगाना या कष्ट देना अत्यंत पाप माना गया है। | |
शारीरिक श्रम | व्रत करने वाले को अत्यधिक शारीरिक श्रम से बचना चाहिए और रात भर जागरूक रहना चाहिए। |
गोवत्स द्वादशी की पौराणिक कथा:Mythology of Govatsa Dwadashi
गोवत्स द्वादशी के महत्व का उल्लेख ‘भविष्य पुराण’ में भी मिलता है, जिसमें दिव्य गाय नंदिनी और उनके बछड़ों की कहानी बताई गई है।
एक समय सुवर्णपुरा नामक राज्य था, जिसके राजा देवदानी की दो रानियां (सीता और गीता) थीं। रानी सीता को भैंस प्रिय थी, जबकि रानी गीता गाय और उसके बछड़े को प्रेम करती थी। एक दिन ईर्ष्यावश भैंस के कहने पर रानी सीता ने क्रोध में आकर गाय के बछड़े को मार डाला और उसे गेहूं के ढेर में दबा दिया।
जब राजा भोजन करने बैठे, तो उन्हें चारों ओर रक्त और मांस के टुकड़े दिखाई देने लगे; यहाँ तक कि उनके थाल का भोजन भी मलिन हो गया और पूरे राज्य में रक्त की वर्षा होने लगी। चिंतित राजा ने एक आकाशवाणी सुनी, जिसमें उन्हें रानी सीता के पाप के बारे में पता चला। आकाशवाणी ने राजा से कहा कि इस पाप का प्रायश्चित करने के लिए, उन्हें अगले दिन गोवत्स द्वादशी का व्रत करना होगा। Govatsa Dwadashi आकाशवाणी ने यह भी बताया कि यदि राजा चाकू से कटे फल और दूध का सेवन नहीं करेंगे, तो उन्हें पापों से मुक्ति मिल जाएगी और बछड़ा जीवित हो जाएगा।
राजा ने वैसा ही किया। परिणामस्वरूप, बछड़ा जीवित हो उठा। तब राजा ने तुरंत पूरे राज्य में गोवत्स द्वादशी का व्रत और पूजन करने का आदेश दिया, और तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
गोवत्स द्वादशी पर किए जाने वाले शुभ उपाय:Auspicious measures to be taken on Govatsa Dwadashi
इस दिन किए गए छोटे उपाय जीवन में समृद्धि लाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
1. गाय की परिक्रमा: गाय और बछड़े की सात बार परिक्रमा करें और अपनी मनोकामना माँगे। इससे संतान सुख और पारिवारिक शांति मिलती है।
2. तिलक और आरोग्य: गाय को तिलक लगाकर आरती करने से घर में सौभाग्य और रोगों से मुक्ति मिलती है।
3. मंत्र जाप: इस दिन “ॐ गौमातायै नमः” या “ॐ नमो गोविंदाय” मंत्र का 108 बार जाप करने से मन की अशांति दूर होती है।
4. दान: गौशाला में चारा, गुड़, या गौसेवा के लिए धन दान करने से कई जन्मों के पाप मिट जाते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
गोवत्स द्वादशी का यह पवित्र पर्व गौमाता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक सुंदर माध्यम है। यदि आप अपनी संतान के भविष्य या अपनी आध्यात्मिक उन्नति को और सशक्त बनाना चाहते हैं, तो इस दिन की गई सेवा आपको अनंत पुण्य दिलाती है।