Paush Purnima:हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण तिथियों में से एक है। यह दिन चंद्रमा की पूर्णता का प्रतीक है और पौष मास के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि के रूप में मनाया जाता है। जनवरी 2025 में पौष पूर्णिमा का व्रत, पूजन और इससे जुड़ी पौराणिक कथा धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन का महत्व न केवल धार्मिक अनुष्ठानों में है, Paush Purnima बल्कि यह व्रत आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का भी एक साधन माना जाता है।
जनवरी 2025 में पौष पूर्णिमा की तिथि और समय (January Purnima 2025 Date and Time)
सत्यनारायण व्रत कब है? – सोमवार, 13 जनवरी 2025 | पौष शुक्ल पूर्णिमा
पूर्णिमा प्रारंभ – 13 जनवरी 2025 5:03 AM
पूर्णिमा समाप्त – 14 जनवरी 2025 3:56 AM
पूर्णिमा चन्द्रोदय – 5:04 PM
13 जनवरी को प्रातः 05:03 बजे आरंभ होकर 14 जनवरी को प्रातः 03:56 बजे समाप्त होगा।
पौष पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा (Paush Purnima Katha)
पौराणिक कथाओं Paush Purnima के अनुसार, एक समय की बात है जब कार्तिका नाम की नगरी में चंद्रहाश नामक राजा का शासन था। उसी नगर में धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण भी रहता था। धनेश्वर की पत्नी बहुत ही सुशील और रूपवान थी। उनके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनके जीवन में एक बड़ी कमी थी—संतान का अभाव। यह उनके लिए अत्यंत दुख का कारण था।
एक बार उस गांव में एक योगी आया। वह योगी अन्य सभी घरों से भिक्षा लेकर गंगा किनारे जाकर भोजन करने लगा, लेकिन उसने धनेश्वर के घर से भिक्षा नहीं ली। इस बात से व्यथित होकर धनेश्वर ने योगी से इसका कारण पूछा।
योगी ने उत्तर दिया, “निसंतान के घर का अन्न पतितों के अन्न के समान होता है, और जो व्यक्ति पतितों का अन्न खाता है, वह स्वयं भी पतित हो जाता है। इसलिए, मैंने तुम्हारे घर से भिक्षा लेने से इनकार कर दिया।”
योगी की इस बात से धनेश्वर अत्यंत दुखी हुआ और उसने योगी से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। योगी ने सलाह दी, “तुम मां चंडी की आराधना करो।” धनेश्वर ने इस सुझाव को मानकर वन में जाकर मां चंडी की कठोर तपस्या शुरू कर दी। उन्होंने नियमित रूप से उपवास करते हुए मां चंडी की आराधना की।धनेश्वर की तपस्या से प्रसन्न होकर मां चंडी ने सोलहवें दिन उन्हें स्वप्न में दर्शन दिया।
उन्होंने वरदान देते हुए कहा, “तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। लेकिन ध्यान रहे, अगर तुम दोनों पति-पत्नी लगातार 32 पूर्णिमा व्रत रखोगे, तो तुम्हारा पुत्र दीर्घायु होगा।” मां चंडी के इस आशीर्वाद से धनेश्वर ने व्रत का पालन किया और उन्हें संतान सुख प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि पूर्णिमा का व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है।
दुर्गम दैत्य और पौष पूर्णिमा की कथा:(Story of inaccessible monster and Paush Purnima)
एक अन्य कथा में बताया गया है कि दुर्गम नामक एक शक्तिशाली दैत्य ने अपने आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया था। उसके अत्याचारों के कारण पृथ्वी पर सौ वर्षों तक बारिश नहीं हुई। बारिश न होने के कारण पृथ्वी पर अकाल पड़ गया और लोग अन्न और जल के अभाव में अपने प्राण त्यागने लगे।
इस स्थिति से मुक्ति दिलाने के लिए देवी-देवताओं ने मां दुर्गा से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर मां दुर्गा ने शाकंभरी के रूप में अवतार लिया। कहा जाता है कि मां शाकंभरी की सौ आंखें थीं। धरती पर अवतरित होते ही उन्होंने रोना शुरू कर दिया। उनके आंसुओं से पूरी धरती जलमग्न हो गई, जिससे जल की कमी पूरी हो गई और धरती पर एक बार फिर हरियाली लौट आई।
इसके बाद मां शाकंभरी ने दुर्गम दैत्य का अंत किया और पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया। तब से पौष पूर्णिमा का दिन मां शाकंभरी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनकी पूजा के लिए विशेष माना जाता है।
पौष पूर्णिमा की पूजा विधि (Paush Purnima Puja Vidhi)
पौष पूर्णिमा Paush Purnima के दिन स्नान के बाद पवित्र मन से पूजा की तैयारी करें। सबसे पहले गेहूं और अन्य अनाज के पांच छोटे ढेर बनाएं। इन ढेरों पर भगवान विष्णु, सूर्य, रुद्र, ब्रह्मा और देवी लक्ष्मी को प्रतीक रूप में स्थापित करें। यदि उनके चित्र या मूर्ति उपलब्ध न हों, तो ध्यानपूर्वक उनके नाम का स्मरण करते हुए प्रत्येक ढेर पर एक पुष्प अर्पित करें। इसके बाद क्रमवार इनकी पूजा करें।
घी का दीपक जलाएं और तिल, गुड़, तथा फल का प्रसाद अर्पित करें। भगवान की आरती करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। Paush Purnima अगले दिन इस अनाज को किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को दान कर दें।
शाम को खीर का प्रसाद बनाकर देवी लक्ष्मी को अर्पित करें और उनकी आरती करें। ऐसा करने से घर में दुख और दरिद्रता समाप्त होती है और सुख-शांति का वास होता है।
पौष पूर्णिमा से कल्पवास की शुरुआत (Paush Purnima Aur Kalpvaas)
पौष पूर्णिमा के दिन से माघ स्नान का शुभारंभ होता है। इस व्रत के नियम अनुसार माघ के पूरे महीने सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए। जितनी देर से स्नान करेंगे, उतना ही पुण्य कम प्राप्त होगा। माघ मास में भीषण ठंड के बावजूद जो व्यक्ति धर्मपरायण होकर सूर्योदय से पहले गंगा स्नान करता है, वह मोक्ष का अधिकारी बनता है।