जानिएं शुकदेव Sukhdev Muni क्यों गए थे राजा जनक के पास

Sukhdev Muni:शुकदेव मुनि: जीवन परिचय, राजा जनक के पास जाने का कारण और रहस्य

Sukhdev Muni:शुकदेव मुनि कौन थे?

हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत का श्रवण व पठन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। शुकदेव मुनि, महर्षि वेदव्यास के पुत्र, महाभारत काल के महान संत थे जिन्होंने पहली बार राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाई थी। इससे राजा परीक्षित को मृत्यु के श्राप से मुक्ति मिली, और यह कथा भगवान के परमधाम तक पहुँचने का मार्ग बनी। इसी घटना से श्रीमद्भागवत कथा का महत्व स्थापित हुआ। शुकदेव मुनि के माता-पिता का नाम वटिका और वेदव्यास था, और उनके जीवन में कई अद्भुत घटनाएं और दिव्य रहस्य जुड़े हैं।

Sukhdev Muni:शुकदेव जी का जीवन परिचय

शुकदेव मुनि Sukhdev Muni का जन्म महाभारत काल में हुआ था। वेदों और उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए, बहुत ही कम उम्र में शुकदेव मुनि वन में चले गए और ब्रह्मलीन हो गए। कहा जाता है कि भगवान शिव ने पार्वती जी को अमर कथा सुनाते समय गलती से यह कथा एक शुक (तोता) को सुनाई, जिसे उन्होंने त्रिशूल से मारने का प्रयास किया। भयभीत होकर वह तोता महर्षि वेदव्यास के आश्रम में जाकर उनकी पत्नी के गर्भ में छुप गया, और वहां से ही शुकदेव मुनि का जन्म हुआ।

राजा जनक के पास जाने का कारण

महर्षि वेदव्यास के आदेश पर शुकदेव मुनि Sukhdev Muni माता सीता के पिता राजा जनक के पास गए थे। राजा जनक अपनी कठोर तपस्या और विद्वत्ता के लिए प्रसिद्ध थे और उन्होंने शुकदेव जी की कठिन परीक्षा ली थी। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करके ही शुकदेव मुनि को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हुई। राजा जनक से प्राप्त इस ज्ञान ने उन्हें अद्वितीय तत्त्वदृष्टा बना दिया, जिसके बल पर उन्होंने परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाया।

शुकदेव मुनि के रहस्य और महान योगदान

शुकदेव मुनि ने पिता वेदव्यास से श्रीमद्भागवत महापुराण और महाभारत का ज्ञान प्राप्त किया था। महाभारत का अध्ययन करने के बाद, उन्होंने इसे देवताओं को सुनाया। श्रीमद्भागवत के दिव्य प्रभाव से परीक्षित ने मृत्यु के श्राप से मुक्ति पाई, और भगवान के परमधाम के अधिकारी बने। इसके अलावा, शुकदेव Sukhdev Muni जी ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। ऐसी मान्यता है कि देवलोक की अप्सरा रंभा ने उनसे प्रणय निवेदन किया, परंतु शुकदेव जी ने इसे अस्वीकार कर दिया और ध्यानस्थ रहे।

शुकदेव जी से जुड़े रहस्य (Mysteries related to Shukdev ji)

पौराणिक कथा के अनुसार, शुकदेव मुनि Sukhdev Muni जन्म लेते ही श्रीकृष्ण व माता-पिता को प्रणाम करके तपस्या के लिये वन में चले गए थे। हालांकि, व्यास जी की इच्छा थी कि शुकदेव श्रीमद्भागवद् का अध्ययन करें। शुकदेव के वन में जाने के बाद व्यास जी ने भागवत का एक श्लोक बनाकर अपने शिष्यों को रटा दिया। शिष्य रोजाना उस श्लोक को गाते हुए वन में लकड़ियां लेने जाते थे। एक दिन शुकदेव ने शिष्यों के मुख से वह श्लोक सुन लिया, Sukhdev Muni जिसके बाद वे श्री कृष्ण लीला के आकर्षण से बंधकर दोबारा अपने पिता श्री व्यास जी के पास लौट आए और श्रीमद्भागवत महापुराण के सभी श्लोकों का विधिवत अध्ययन किया।

कहते हैं कि पिता वेदव्यास जी के आदेश पर शुकदेव परम तत्त्वज्ञानी और माता सीता के पिता महाराज जनक के पास गए थे। जनक जी की कड़ी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर शुकदेव ने ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त किया था। कहा जाता है कि शुकदेव जी ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। कहते हैं कि एक बार देवलोक की अप्सरा रंभा शुकदेव से आकर्षित हो गईं और उनसे प्रणय निवेदन किया, लेकिन शुकदेव जी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया।

रंभा के बहुत कोशिश करने पर शुकदेव ने उससे पूछा- आप मेरा ध्यान क्यों आकर्षित कर रही हैं, मैं तो उस सार्थक रस को पा चुका हूं, जिससे क्षण भर हटने से जीवन निरर्थक जैसा लगता है। मैं उस रस को छोड़कर अपने जीवन को निरर्थक नहीं बनाना चाहता। कुछ और रस हो, तो भी मुझे कोई मतलब नहीं है। अगर भगवत प्रेरणा से मुझे दोबारा जन्म लेना पड़ा, तो मैं 9 माह आप जैसी ही माता के गर्भ में रहकर इसका सुख लूंगा।

कुछ कथाओं के अनुसार, 25 साल की उम्र में शुकदेव जी का विवाह स्वर्ग में वभ्राज नाम के सुकर लोक में रहने वाले पितरों के मुखिया वहिंषद जी की पुत्री पीवरी से हुआ था। कूर्म पुराण के अनुसार, शुकदेव मुनि के 5 पुत्र व एक पुत्री थी। हालांकि, कुछ कथाओं के अनुसार, शुकदेव जी के 12 महान तेजस्वी पुत्र व एक पुत्री थी।

अङ्गिरा ऋषि का उल्लेख

अङ्गिरा ऋषि, प्राचीन काल के सप्तर्षियों में से एक, ज्ञान के आदिकर्ताओं में से एक माने जाते हैं। ऋग्वेद में अङ्गिरा ऋषि के ज्ञान का उल्लेख मिलता है। शुकदेव मुनि Sukhdev Muni , वेदव्यास, और अङ्गिरा ऋषि जैसे महान संतों के समय में भारतीय संस्कृति का विस्तार और सृजन हुआ था।

निष्कर्ष

शुकदेव मुनि का जीवन और उनके योगदान ने हिंदू धर्म के ग्रंथों में अमिट छाप छोड़ी है। उनके जीवन से जुड़े रहस्य, परीक्षित को दी गई श्रीमद्भागवत कथा, और ब्रह्मचर्य के प्रति उनकी निष्ठा सभी धार्मिक और सामाजिक परंपराओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।

Sukhdev Muni

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