Kripacharya Rishi:क्या आप जानते हैं कृपाचार्य कौन थे? जानें महाभारत में उनके योगदान और युद्ध कौशल के बारे में रोचक तथ्य?

कृपाचार्य:Kripacharya Rishi महाभारत के चिरंजीवी योद्धा और आदर्श गुरु

कृपाचार्य महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र हैं, जिनकी गिनती हिंदू धर्म के 7 चिरंजीवियों में होती है। उन्हें कौरवों और पांडवों दोनों का कुलगुरु माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कृपाचार्य को चिरंजीविता का वरदान प्राप्त था, यानी वे आदिकाल से अंतकाल तक पृथ्वी पर विद्यमान रहेंगे। कृपाचार्य के पिता महर्षि शर्द्धवान थे, महर्षि गौतम के पुत्र थे शर्द्धवान, जिनकी धनुष और बाण के प्रति विशेष रूचि थी। महर्षि शर्द्धवान के पुत्र थे कृपाचार्य जी। जो धनुर्विद्या और तप में निपुण थे। उनके जीवन में महाभारत के युद्ध से लेकर गुरु-शिष्य परंपरा में कई महत्वपूर्ण योगदान हैं।

कृपाचार्य Kripacharya Rishi का जीवन परिचय

कृपाचार्य का जन्म एक विशेष प्रकार की घटना से हुआ था। महर्षि शर्द्धवान, जो गौतम ऋषि के पुत्र थे, ने तपस्या के दौरान विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। इंद्रदेव को यह भय हुआ कि कहीं शर्द्धवान तपस्या के बल पर उनका इंद्रलोक न छीन लें, इसलिए उन्होंने अप्सरा जानपदी को भेजा। इसके परिणामस्वरूप शर्द्धवान का शुक्रपात हुआ, और यह एक सरकंडे पर गिरा, जिससे दो संतानों – कृप और कृपी – का जन्म हुआ।

राजा शांतनु ने इन दोनों संतानों को अपने महल में पाल-पोस कर बड़ा किया और लड़के का नाम कृप और लड़की का नाम कृपी रखा। बाद में कृप, कृपाचार्य बने और उनकी बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोणाचार्य से हुआ। कृपाचार्य ने गुरु शर्द्धवान से तपोबल और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की, जिससे वे धनुर्वेद में निपुण हो गए।

Kripacharya Rishi कृपाचार्य का महाभारत में योगदान

महाभारत में कृपाचार्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भीष्म पितामह ने उन्हें कौरव और पांडव राजकुमारों की शिक्षा का दायित्व सौंपा। वे एक निष्पक्ष गुरु थे और धर्म के पथ पर चलने का उपदेश देते थे।

धर्म और न्याय के प्रति समर्पण

कृपाचार्य धर्म और न्याय के प्रति समर्पित थे। महाभारत युद्ध से पहले युधिष्ठिर उनके पास आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। कृपाचार्य ने युधिष्ठिर को धर्म के मार्ग पर बने रहने और विजय की कामना करते हुए कहा था कि उनका पक्ष न्यायसंगत है। Kripacharya Rishi हालांकि, कौरवों के कुलगुरु होने के कारण उन्होंने उनके पक्ष से युद्ध लड़ा।

युद्ध कौशल और कौरवों के लिए समर्पण

कृपाचार्य की युद्ध कौशलता और साहस के कारण वे महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ने वाले 3 योद्धाओं में से एक थे, जो अंत तक जीवित रहे। उन्होंने युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया और धर्म के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखी।

परीक्षित को दी गई शिक्षा

महाभारत युद्ध के बाद कृपाचार्य ने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को अस्त्रविद्या में निपुण बनाया। उनके शिष्य परीक्षित ने आगे चलकर धर्म और न्याय के साथ राज्य का संचालन किया।

कृपाचार्य Kripacharya Rishi से जुड़े रोचक तथ्य और रहस्य

  1. अद्भुत जन्म: कृपाचार्य का जन्म सरकंडे से हुआ था, जो कि एक दिव्य घटना मानी जाती है।
  2. चिरंजीवी: कृपाचार्य को चिरंजीविता का वरदान प्राप्त है। वे पृथ्वी पर आदिकाल से अंतकाल तक रहेंगे।
  3. कुलगुरु का सम्मान: कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के कुलगुरु माने जाते थे। उनके निष्पक्ष स्वभाव के कारण उनका सम्मान बहुत था।
  4. महाभारत युद्ध में योगदान: कृपाचार्य ने धर्म और न्याय के प्रति अपने कर्तव्य को निभाते हुए कौरव पक्ष से महाभारत का युद्ध लड़ा।
  5. शर्द्धवान के तप का प्रभाव: उनके पिता, महर्षि शर्द्धवान के तप और ज्ञान का प्रभाव कृपाचार्य पर भी पड़ा, जिससे वे तपस्वी और श्रेष्ठ योद्धा बने।

निष्कर्ष

कृपाचार्य Kripacharya Rishi भारतीय संस्कृति में महान गुरु और योद्धा के रूप में माने जाते हैं। उनका जीवन धर्म, न्याय, और निष्ठा का प्रतीक है। कृपाचार्य का महाभारत में योगदान और उनकी निष्पक्षता उन्हें अमर बनाती है। उनके चिरंजीवी होने का आशीर्वाद उन्हें महाकाव्य के इतिहास में विशेष स्थान प्रदान करता है।

Kripacharya Rishi

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