Rani Sati Dadi Ji Chalisa:श्री राणी सती दादी चालीसा
Rani Sati Dadi Ji Chalisa:श्री राणी सती दादी चालीसा एक धार्मिक स्तुति है जो हिंदू धर्म में विशेषकर राजस्थान के क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है। यह चालीसा श्री राणी सती दादी, जिन्हें नारायणी देवी भी कहा जाता है, की स्तुति में लिखी गई है। Rani Sati Dadi Ji Chalisa माना जाता है कि श्री राणी सती दादी महाभारत काल में उत्तरा थीं और उन्हें भगवान श्री कृष्ण ने वरदान दिया था कि कलयुग में वे नारायाणी के नाम से श्री सती दादी के रूप में विख्यात होंगी।
Rani Sati Dadi Ji Chalisa:चालीसा का महत्व
- धार्मिक आस्था: यह चालीसा भक्तों के लिए भक्ति और आस्था का एक महत्वपूर्ण साधन है।
- मनोकामना पूर्ति: माना जाता है कि इस चालीसा का पाठ करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- आध्यात्मिक विकास: यह चालीसा आध्यात्मिक विकास में सहायक मानी जाती है।
- समाज में एकता: यह चालीसा समाज में एकता और भाईचारे का प्रतीक है।
Rani Sati Dadi Ji Chalisa:चालीसा में क्या होता है?
श्री राणी सती दादी चालीसा में दादी जी के जीवन, उनके कार्यों और उनके महत्व के बारे में वर्णन किया जाता है। इसमें उनके गुणों, कृपा और चमत्कारों का वर्णन भी होता है। भक्त इस चालीसा का पाठ करते हुए दादी जी से अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना करते हैं।
Rani Sati Dadi Ji Chalisa:चालीसा का पाठ कैसे करें?
- शुद्ध मन से: चालीसा का पाठ करते समय मन को शुद्ध रखना चाहिए।
- विधि-विधान से: चालीसा का पाठ करते समय विधि-विधान का पालन करना चाहिए।
- नियमित रूप से: चालीसा का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए।
Shri Rani Sati Dadi Ji:श्री राणी सती दादी
॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन,
दुषित भाव सुधार,
राणी सती सू विमल यश,
बरणौ मति अनुसार,
काम क्रोध मद लोभ मै,
भरम रह्यो संसार,
शरण गहि करूणामई,
सुख सम्पति संसार॥
॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी।
जग विख्यात सभी मन मानी ॥
नमो नमो संकट कू हरनी।
मनवांछित पूरण सब करनी ॥
नमो नमो जय जय जगदंबा।
भक्तन काज न होय विलंबा ॥
नमो नमो जय जय जगतारिणी।
सेवक जन के काज सुधारिणी ॥4
दिव्य रूप सिर चूनर सोहे ।
जगमगात कुन्डल मन मोहे ॥
मांग सिंदूर सुकाजर टीकी ।
गजमुक्ता नथ सुंदर नीकी ॥
गल वैजंती माल विराजे ।
सोलहूं साज बदन पे साजे ॥
धन्य भाग गुरसामलजी को ।
महम डोकवा जन्म सती को ॥8
तनधनदास पति वर पाये ।
आनंद मंगल होत सवाये ॥
जालीराम पुत्र वधु होके ।
वंश पवित्र किया कुल दोके ॥
पति देव रण मॉय जुझारे ।
सति रूप हो शत्रु संहारे ॥
पति संग ले सद् गती पाई ।
सुर मन हर्ष सुमन बरसाई ॥12
धन्य भाग उस राणा जी को ।
सुफल हुवा कर दरस सती का ॥
विक्रम तेरह सौ बावन कूं ।
मंगसिर बदी नौमी मंगल कूं ॥
नगर झून्झूनू प्रगटी माता ।
जग विख्यात सुमंगल दाता ॥
दूर देश के यात्री आवै ।
धुप दिप नैवैध्य चढावे ॥16
उछाङ उछाङते है आनंद से ।
पूजा तन मन धन श्रीफल से ॥
जात जङूला रात जगावे ।
बांसल गोत्री सभी मनावे ॥
पूजन पाठ पठन द्विज करते ।
वेद ध्वनि मुख से उच्चरते ॥
नाना भाँति भाँति पकवाना ।
विप्र जनो को न्यूत जिमाना ॥20
श्रद्धा भक्ति सहित हरसाते ।
सेवक मनवांछित फल पाते ॥
जय जय कार करे नर नारी ।
श्री राणी सतीजी की बलिहारी ॥
द्वार कोट नित नौबत बाजे ।
होत सिंगार साज अति साजे ॥
रत्न सिंघासन झलके नीको ।
पलपल छिनछिन ध्यान सती को ॥24
भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला ।
भरता मेला रंग रंगीला ॥
भक्त सूजन की सकल भीङ है ।
दरशन के हित नही छीङ है ॥
अटल भुवन मे ज्योति तिहारी ।
तेज पूंज जग मग उजियारी ॥
आदि शक्ति मे मिली ज्योति है ।
देश देश मे भवन भौति है ॥28
नाना विधी से पूजा करते ।
निश दिन ध्यान तिहारो धरते ॥
कष्ट निवारिणी दुख: नासिनी ।
करूणामयी झुन्झुनू वासिनी ॥
प्रथम सती नारायणी नामा ।
द्वादश और हुई इस धामा ॥
तिहूं लोक मे कीरति छाई ।
राणी सतीजी की फिरी दुहाई ॥32
सुबह शाम आरती उतारे ।
नौबत घंटा ध्वनि टंकारे ॥
राग छत्तीसों बाजा बाजे ।
तेरहु मंड सुन्दर अति साजे ॥
त्राहि त्राहि मै शरण आपकी ।
पुरी मन की आस दास की ॥
मुझको एक भरोसो तेरो ।
आन सुधारो मैया कारज मेरो ॥36
पूजा जप तप नेम न जानू ।
निर्मल महिमा नित्य बखानू ॥
भक्तन की आपत्ति हर लिनी ।
पुत्र पौत्र सम्पत्ति वर दीनी ॥ 40
पढे चालीसा जो शतबारा ।
होय सिद्ध मन माहि विचारा ॥
टिबरिया ली शरण तिहारी।
क्षमा करो सब चूक हमारी ॥
॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण,
जन जीवन आधार ।
बिगङी बात सुधारियो,
सब अपराध बिसार ॥
॥ मात श्री राणी सतीजी की जय ॥