Sita haran सीता हरण रामायण महाकाव्य का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है। इसमें रावण, लंका का राजा, सीता, राम की पत्नी का हरण करता है।
रावण की योजना
रावण, सीता की सुंदरता से मोहित हो गया था। वह उन्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता था। उसने अपनी बहन शूर्पणखा को सीता को लुभाने के लिए भेजा। शूर्पणखा ने सीता को प्रपोज किया, लेकिन सीता Sita ने उसे अपमानित कर दिया। शूर्पणखा ने रावण को यह बात बताई, तो रावण ने सीता का हरण करने की योजना बनाई।
स्वर्ण मृग (हिरन)
तब लंकापति रावण मारीच को कहते हैं कि तुम एक अद्भुत स्वर्ण मृग (हिरण) का रूप धारण करो जिसके सींग सोने के हों तथा जिसकी चमड़ी सुनहरे रंग की हो। ऐसे अद्भुत हिरण को देखकर सीता अवश्य ही उसकी मांग करेगी और राम लक्ष्मण को उसका शिकार करने के लिए बोलेगी। जब राम लक्ष्मण उस सुनहरे मृग (हिरण) के पीछे पीछे जाएंगे तब मैं सीता का हरण कर लूंगा। रावण की बात मानकर मारीच एक अद्भुत सुनहरे हिरण का रूप धारण करके श्री राम लक्ष्मण की कुटिया की तरफ जाकर विचरण करने लगता है। सीता जी की नजर जब उस हिरण पर पड़ती है तो वह उस स्वर्ण मृग के सुंदर रूप को देखकर मोहित हो जाती है । कुटिया में आकर वह श्री राम लक्ष्मण को उस स्वर्ण मृग के बारे में बताती हैं और इच्छा जाहिर करती हैं कि वह मृग उन्हे चाहिए। सीता Sita के इच्छा का मान रखते हुए श्री राम लक्ष्मण को वहीं छोड़कर हिरन रूपी मारीच के पीछे धनुष बाण लेकर चल पड़ते हैं। श्री राम को अपनी ओर आता देख कर योजना के अनुसार मृग के वेश में मारीच कुटिया से दूर भाग जाता है जिसके पीछे श्रीराम भी चले जाते हैं।
कुछ समय तक स्वर्ण मृग के पीछे भागते हुए श्रीरम उस पर बाण चला देते हैं। बाण लगते ही मारीच श्रीराम के जैसे स्वर में चिल्लाने लगता है हे सीते हे लक्ष्मण, हे सीते हे लक्ष्मण। श्री राम जैस स्वर में अपना और लक्ष्मण का नाम सुनकर सीता जी को यही लगता है कि श्रीराम पर कोई संकट आ गया है और वह मदद के लिए लक्ष्मण तथा उन्हें पुकार रहे हैं। इसलिए सीता जी लक्ष्मण को तुरंत अपने भैया की सहायता के लिए जाने को कहती लेकिन लक्ष्मण उनकी बात मानने से मना कर देते हैं। क्योंकि लक्ष्मण जी को पता था की श्रीराम का कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता यह किसी असुर की चाल हो सकती है। लेकिन अपने पति के ऐसे स्वर सुनने के बाद सीता जी को शांति नहीं हो रही थी और वह लक्ष्मण को बार-बार जाने के लिए कहती है। जब लक्ष्मण नहीं मानते तो वह उन्हें अपशब्द कहने लगती हैं।
लक्ष्मण रेखा
अंत में लक्ष्मण जी के पास कोई और रास्ता नहीं होता इसलिए वह सीता जी की सुरक्षा के लिए कुटिया के दहलीज के पास एक रेखा खींच देते है और बोलते हैं कि जो भी इस रेखा को पार करने की कोशिश करेगा वह जलकर भस्म हो जाएगा। अंत में लक्ष्मण जाते-जाते माता सीता से कहते हैं कि आप कितनी भी विकट परिस्थिति में इस रेखा को पार नहीं करेंगी। और कोई भी असुर, देव या जीव इस लक्ष्मण रेखा को पार नहीं कर पाएगा। कहकर लक्ष्मण कुटिया से चले जाते है।
लक्ष्मी जी के जाते ही कुटिया के आस पास झाड़ियों में छुपा हुआ रावण बाहर निकलता है और कुटिया के अंदर जाने की कोशिश करता है। लेकिन जैसे ही रावण लक्ष्मण द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा पर पैर रखता है तो उसके पैर जल जाते हैं। बार-बार प्रयत्न करने के बाद भी जब रावण कुटिया में प्रवेश नहीं कर पाया तो उसने दूसरी योजना सोची। तब रावण एक साधु का वेश धारण करके कुटिया के बाहर अलख जगाता है। कुटिया के बाहर आए किसी साधु की आवाज सुनकर माता सीता कुटिया से बाहर आती है तो देखती हैं एक साधु उनके दरवाजे पर भिक्षा मांग रहा है। भिक्षा लेकर सीता कुटिया से बाहर आती हैं और लक्ष्मण रेखा के पास आकर खड़ी हो जाती और रावण (साधु) को बोलती है कि वह आकर भिक्षा ले ले। क्योंकि वह इस रेखा से बाहर नहीं आ सकती। इस पर साधु के भेष में रावण बोलता है कि तु शायद हमें नहीं जानती हैं, हम परम तपस्वी साधु हैं यदि तुम बाहर भिक्षा लेकर नहीं आई तो मैं तुम्हारे पति को श्राप दे दूंगा।
Sita haran सीता हरण
एक दिन, रावण ने अपने मामा मारीच को सोने का हिरण बनकर सीता को लुभाने के लिए भेजा। सीता को हिरण बहुत सुंदर लगा और वह उसे पकड़ने के लिए राम से कहती है। राम हिरण को पकड़ने के लिए जाते हैं और मारीच को मार देते हैं। मरते समय, मारीच राम की आवाज में सीता और लक्ष्मण को पुकारता है। सीता को लगता है कि यह राम की आवाज है और वह लक्ष्मण से कहती है कि वह राम की मदद करे। लक्ष्मण कुटिया के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींच देते हैं और सीता को उस रेखा को पार करने से मना करते हैं। लक्ष्मण की बात मानकर सीता कुटिया में ही रहती है।
तभी रावण साधु का वेश धारण करके आता है और सीता से भिक्षा मांगता है। सीता रावण को भिक्षा देती है। भिक्षा लेने के बाद, रावण सीता से कुटिया से बाहर आने के लिए कहता है। सीता रावण की बात मानकर कुटिया से बाहर आती है। रावण उसी समय सीता का हरण कर लेता है।
रावण और जटायु का युद्ध
जब रावण सीता को पुष्पक विमान में ले जा रहा था तब सीता की मदद की गुहार वहां पर बैठे जटायु नाम के गिद्ध ने सुनी और वह सीता की सहायता करने के लिए रावण से युद्ध करने लगता है। बहुत समय तक रावण से लड़ते हुए रावण अपनी चंद्रहास खड़ग (तलवार) से जटायु का एक पंख काट देता है जिससे वह लुढ़कता हुआ जमीन पर आकर गिरता है और दर्द से कराहने लगता है। जब कुछ भी ना हो पाया तो सीता जी अपने पल्लू का एक टुकड़ा फाड़ कर अपने सारे जेवर उसमें बांधकर नीचे ऋषिमुख पर्वत पर फेंक देती हैं तथा फिर मदद की गुहार लगाते हुए कहती कि यदि उनके प्रभु श्रीराम उन्हें ढूंढते हुए आए तो कहना कि मुझे रावण उठा कर ले गया है।