लक्ष्मी-गणेश, राधा-कृष्ण, राम-सीता, विष्णु, ब्रह्मा आदि अनेकों भगवान भारी-भारी गहनों और वस्त्रों से लदे होते हैं. इन भगवानों की मूर्तियां मंदिरों में देखें या फिर इनके चित्रों पर गौर करें. हर जगह यह सभी सोने-चांदी से जड़े आभूषणों में दिखाई देते हैं. लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर भगवान शिव क्यों बिना आभूषणों के रहते हैं. उनके गले में माला के नाम पर सांप, सिर पर मुकुट की जगह जटाएं, शरीर पर मलमल के कपड़ों के बजाय बाघ की खाल और शरीर पर चंदन के लेप के बजाय भस्म क्यों है?
कहते हैं भगवान शिव भोले हैं, क्योंकि वे अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले हैं। वे अपने भक्तों के समक्ष स्वयं प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं एवं मन मुताबिक वरदान देते हैं।
हिंदू धर्म में शिवजी की बड़ी महिमा हैं। शिवजी का न आदि है ना ही अंत। शास्त्रों में शिवजी के स्वरूप के संबंध कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। इनका स्वरूप सभी देवी-देवताओं से बिल्कुल भिन्न है। जहां सभी देवी-देवता दिव्य आभूषण और वस्त्रादि धारण करते हैं वहीं शिवजी ऐसा कुछ भी धारण नहीं करते, वे शरीर पर भस्म रमाते हैं, उनके आभूषण भी विचित्र है। शिवजी शरीर पर भस्म क्यों रमाते हैं? इस संबंध में धार्मिक मान्यता यह है कि शिव को मृत्यु का स्वामी माना गया है और शिवजी शव के जलने के बाद बची भस्म को अपने शरीर पर धारण करते हैं। इस प्रकार शिवजी भस्म लगाकर हमें यह संदेश देते हैं कि यह हमारा यह शरीर नश्वर है और एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलिन हो जाएगा। अत: हमें इस नश्वर शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए। कोई व्यक्ति कितना भी सुंदर क्यों न हो, मृत्यु के बाद उसका शरीर इसी तरह भस्म बन जाएगा। अत: हमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए।
जब भगवान शिव और माता सति को यज्ञ के लिए निमंत्रण ना मिलने पर सति ने क्रोध में आकर खुद को अग्नि के हवाले कर दिया था. उस वक्त भगवान शिव माता सति का शव लेकर धरती से लेकर आकाश तक हर जगह घूमे. विष्णु जी भगवान शिव की ये दशा देख ना पाए और माता सति के शव को छूकर उन्होंने उसे भस्म में बदल दिया. अपने हाथों में सति की जगह भस्म देखकर शिव जी और परेशान हो गए और बाद में भस्म को देखकर माता सति को याद कर वो राख उन्होंने अपने शरीर पर लगा ली
इस संबंध में एक अन्य तर्क भी है कि शिवजी कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं, जहां का वातावरण अत्यंत ही ठंडा है और भस्म शरीर का आवरण का काम करती हैं। यह वस्त्रों की तरह ही उपयोगी होती है। भस्म बारिक लेकिन कठोर होती है जो हमारे शरीर की त्वचा के उन रोम छिद्रों को भर देती है जिससे सर्दी या गर्मी महसूस नहीं होती हैं। शिवजी का रहन-सहन सन्यासियों सा है। सन्यास का यही अर्थ है कि संसार से अलग प्रकृति के सानिध्य में रहना। संसारी चीजों को छोड़कर प्राकृतिक साधनों का उपयोग करना। ये भस्म उन्हीं प्राकृतिक साधनों में शामिल है।