रावण का दुख Ravan ka dukh
कुंभकरण की मृत्यु की खबर सुनकर लंकापति रावण अत्यंत व्याकुल हो जाता है। वह अपने छोटे भाई की मृत्यु से इतना दुखी होता है कि उसका रोम-रोम कांपने लगता है। वह अपने सिंहासन से उठकर खड़ा हो जाता है और अपने हाथों को जोड़कर कहता है, “यह सत्य नहीं हो सकता, कुंभकरण स्वयं मृत्यु का दूसरा नाम है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी कुंभकरण की मृत्यु का कारण नहीं बन सकते फिर उसकी मृत्यु कैसे संभव हुई?”
रावण के सभासदों में से एक मंत्री कहता है, “महाराज, कुंभकरण को श्री राम ने युद्ध में मारा है।”
यह सुनकर रावण का क्रोध और भी बढ़ जाता है। वह कहता है, “अरे मूर्ख! श्री राम ने कुंभकरण को कैसे मारा? कुंभकरण तो एक अजेय योद्धा था। उसने अपनी सोलह हजार वर्ष की नींद से जागकर श्री राम और लक्ष्मण को परास्त करने का संकल्प लिया था। अब वह कैसे मारा जा सकता है?”
कुम्भकरण- रावण संवाद श्रीराम द्वारा कुम्भकरण का वध Ramayan- Kumbhkaran Vadh Story in Hindi
रावण का दूसरा मंत्री कहता है, “महाराज, श्री राम ने कुंभकरण को अपने बाण से मारा है। कुंभकरण ने श्री राम को मारने के लिए अपना त्रिशूल उठाया था, लेकिन श्री राम ने पहले ही उसे बाण मार दिया।”
यह सुनकर रावण और भी अधिक दुखी हो जाता है। वह कहता है, “अब तो असुर जाति का विनाश निश्चित है। कुंभकरण के बिना हमें श्री राम का सामना करना बहुत मुश्किल होगा।”
रावण का जेष्ठ पुत्र इंद्रजीत अपने पिता को धीरज बंधाते हुए कहता है, “नहीं पिताजी, केवल काका कुंभकरण के मृत्यु से असुर जाति का विनाश निश्चित हो यह आवश्यक नहीं है। कृपा करके मुझे युद्ध में जाने की आज्ञा दीजिए, मैं आज ही राम और लक्ष्मण के जीवन का अंत करके इस युद्ध को समाप्त कर दूंगा।”
रावण इंद्रजीत की बात सुनकर कुछ शांत होता है। वह कहता है, “ठीक है, मैं तुम्हें युद्ध में जाने की आज्ञा देता हूं। जाओ और राम और लक्ष्मण को मारकर असुर जाति की रक्षा करो।”
इंद्रजीत अपने पिता को प्रणाम करके युद्ध के मैदान में चला जाता है।
रावण पुत्र देवांतक का वध Raavan putr devaantak ka vadh
रावण के पुत्र देवांतक, जिन्हें नरांतक भी कहा जाता है, को युद्ध में हनुमान जी ने मारा था। देवांतक एक शक्तिशाली योद्धा था, लेकिन वह हनुमान जी के सामने टिक नहीं सका।
रामायण (Ramayan) के विभिन्न संस्करणों में देवांतक के वध का वर्णन अलग-अलग तरीके से किया गया है, लेकिन कहानी का सार एक ही है:
युद्ध में प्रवेश
कुंभकरण के वध के बाद, रावण ने अपने योद्धाओं को युद्ध के मैदान में भेजा। इन योद्धाओं में देवांतक भी शामिल था। देवांतक ने वानर सेना पर जमकर वार किया और कई वानरों को मार डाला।
हनुमान जी से युद्ध
देवांतक के शौर्य को देखकर हनुमान जी उससे युद्ध करने के लिए आगे आए। दोनों योद्धाओं के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। देवांतक ने हनुमान जी पर अपने शक्तिशाली हथियारों से प्रहार किया, लेकिन हनुमान जी ने उन सभी को रोक लिया।
देवांतक का अंत
हनुमान जी ने अपने गदा से देवांतक पर एक ऐसा प्रहार किया कि वह वहीं मूर्छित होकर गिर पड़ा। इसके बाद हनुमान जी ने देवांतक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
रावण पुत्र नरांतक का वध
युद्ध के मैदान में दोनों योद्धाओं के बीच का युद्ध देखकर सभी हतप्रभ रह जाते हैं। दोनों योद्धा एक दूसरे पर प्रहार करने से पीछे नहीं हट रहे थे। नरांतक एक शक्तिशाली योद्धा था और उसने अंगद को परास्त करने के लिए अपना पूरा दम लगा दिया। लेकिन अंगद भी एक कुशल योद्धा था और वह नरांतक के सभी प्रहारों को विफल कर रहा था।
अंत में, काफी समय तक युद्ध के पश्चात नरांतक भूमि पर गिर जाता है। अंगद उस पर लगातार वार पर वार करते हैं और अंत में नरांतक की मृत्यु हो जाती है। नरांतक की मृत्यु से रावण की सेना में हाहाकार मच जाता है। रावण के पुत्र की मृत्यु से वह स्वयं भी बहुत दुखी होता है।
नरांतक की मृत्यु से रामायण के युद्ध का रुख बदल जाता है। इस युद्ध से यह स्पष्ट हो जाता है कि रावण की सेना अब राम और लक्ष्मण के सामने टिक नहीं सकती है।
रावण पुत्र त्रिश्रा, निकुंभ तथा सेनापति अकम्पन का वध
रावण की सेना के सेनापति अकंपन का वध
रामायण Ramayan के युद्ध में, रावण की सेना के सेनापति अकंपन एक शक्तिशाली योद्धा थे। उन्होंने वानर सेना पर जमकर वार किया और कई वानरों को मार डाला। सुग्रीव को अकंपन के युद्ध कौशल से बहुत गुस्सा आया और उसने अकंपन से युद्ध करने के लिए आगे आया।
दोनों योद्धाओं के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। अकंपन ने अपनी गदा से सुग्रीव पर कई प्रहार किए, लेकिन सुग्रीव ने सभी प्रहारों को अपनी गदा से रोक लिया। अंत में, सुग्रीव ने अकंपन पर एक ऐसा प्रहार किया कि वह वहीं मूर्छित होकर गिर पड़ा। इसके बाद सुग्रीव ने अकंपन का सिर धड़ से अलग कर दिया।
रावण पुत्र त्रिश्रा का वध
हनुमान जी एक शक्तिशाली योद्धा थे और उन्होंने रावण की सेना के कई योद्धाओं को मार डाला था। रावण के पुत्र त्रिश्रा भी एक शक्तिशाली योद्धा था और उसने हनुमान जी को परास्त करने के लिए अपना पूरा दम लगा दिया।
दोनों योद्धाओं के बीच एक भयंकर मल्लयुद्ध हुआ। त्रिश्रा ने अपनी तलवार से हनुमान जी पर कई प्रहार किए, लेकिन हनुमान जी ने सभी प्रहारों को अपने हाथों से रोक लिया। अंत में, हनुमान जी ने त्रिश्रा को अपने हाथों से पकड़ लिया और उसकी तलवार को छीन लिया। इसके बाद हनुमान जी ने उसी तलवार से त्रिश्रा का वध कर दिया।
रावण पुत्र निकुंभ का वध
बाली पुत्र अंगद भी एक शक्तिशाली योद्धा थे और उन्होंने रावण की सेना के कई योद्धाओं को मार डाला था। रावण के पुत्र निकुंभ भी एक शक्तिशाली योद्धा था और उसने अंगद को परास्त करने के लिए अपना पूरा दम लगा दिया।
दोनों योद्धाओं के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। निकुंभ ने अपनी गदा से अंगद पर कई प्रहार किए, लेकिन अंगद ने सभी प्रहारों को अपनी गदा से रोक लिया। अंत में, अंगद ने निकुंभ पर एक ऐसा प्रहार किया कि वह वहीं मूर्छित होकर गिर पड़ा। इसके बाद अंगद ने निकुंभ का सिर धड़ से अलग कर दिया।
इन तीनों योद्धाओं के वध से रावण की सेना का मनोबल गिर गया और राम और लक्ष्मण की जीत की संभावना बढ़ गई।
अतिकाय तथा लक्ष्मण का युद्ध
रावण पुत्र अतिकाय का वध
रावण के पुत्र अतिकाय एक शक्तिशाली योद्धा थे। वह अन्य योद्धाओं की तुलना में अधिक पराक्रमी तथा शक्तिशाली था। विभीषण जी द्वारा बताए गए कथा के अनुसार अतिकाय पिछले जन्म में बहुत अधिक शक्तिशाली राक्षस था। तब उसने ब्रह्मदेव की तपस्या करके बहुत अधिक शक्ति अर्जित कर ली थी। जिससे उसने अपनी इच्छा मृत्यु का वरदान ब्रह्मदेव से मांग लिया था। और तब उनके साथ भगवान विष्णु ने माया का उपयोग करके उनसे उन्हीं की मृत्यु का मार्ग जानकर उनका वध किया था। उसी तरह आज भी अतिकाय उतना ही शक्तिशाली है इसलिए वह लक्ष्मण जी को परामर्श देते हैं कि अतिकाय के साथ युद्ध करने के लिए साधारण तीरों का नहीं बल्कि दिव्यास्त्रों का प्रयोग करना चाहिए।
अतिकाय तथा लक्ष्मण दोनों शूरवीर योद्धा धनु विद्या में निपुण थे। इसलिए अतिकाय के साथ युद्ध करने के लिए लक्ष्मण जी को अपने सबसे श्रेष्ठ तीरों का उपयोग करना पड़ रहा था। दोनों के बीच युद्ध बहुत लंबे समय तक चलता रहा। इसका कोई परिणाम नहीं निकल रहा था। तब सूर्यास्त होने लगता है और असुर होने के कारण अतिकाय की शक्ति और भी अधिक बढ़ने लगती है। सूर्यास्त के बाद अपनी बढ हुई शक्तियों के बल पर अतिकाय अपने रथ को आकाश में लेकर चला जाता है और वहीं से लक्ष्मण पर तीरों की बौछार करने लगता है। उसके आकाश में होने से लक्ष्मण जी के तीरों की गति उसकी और धीमी हो रही थी।
लक्ष्मण जी को यह समझ आ गया कि अब साधारण तीरों से अतिकाय का वध नहीं हो सकता है। इसलिए वह हनुमान जी से सहायता मांगते हैं। हनुमान जी अपने परम भक्त लक्ष्मण जी की सहायता करने के लिए तुरंत आते हैं। हनुमान जी अपने पंजों से लक्ष्मण जी को अपने कंधे पर बैठा लेते हैं और उन्हें आकाश में ले जाते हैं। आकाश में पहुंचकर हनुमान जी लक्ष्मण जी को एक ऐसा दिव्यास्त्र देते हैं जिसका प्रयोग करके अतिकाय का वध किया जा सकता है।
लक्ष्मण जी ने उस दिव्यास्त्र का प्रयोग करके अतिकाय को मार गिराया। अतिकाय की मृत्यु से रावण की सेना में हाहाकार मच गया। रावण के पुत्र की मृत्यु से वह स्वयं भी बहुत दुखी होता है।
अतिकाय के वध का रामायण के युद्ध पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। इस युद्ध से यह स्पष्ट हो गया कि रावण की सेना अब राम और लक्ष्मण के सामने टिक नहीं सकती है।
अतिकाय के वध का महत्व
अतिकाय के वध का रामायण में बहुत महत्व है। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है। अतिकाय के वध ने यह भी दिखाया कि रावण के पास कोई भी शक्तिशाली योद्धा नहीं था जो राम और लक्ष्मण को हरा सकता था।