सीता की खोज तथा राम जटायु संवाद
सीता की खोज
Sita सीता का हरण होते ही, राम और लक्ष्मण बहुत दुखी हुए। उन्होंने सीता को खोजने का संकल्प लिया। वे वन में सीता की खोज करने लगे।
एक दिन, वे एक घने जंगल में पहुंचे। वहां, उन्होंने एक घायल पक्षी देखा। पक्षी का नाम जटायु था। जटायु ने राम और लक्ष्मण को बताया कि उसने रावण को सीता का हरण करते हुए देखा था।
राम और लक्ष्मण जटायु से सीता के बारे में और पूछने लगे। जटायु ने उन्हें बताया कि रावण ने सीता को लंका ले गया है। वह सीता को लंका के अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा है।
राम और लक्ष्मण को जटायु की बातों से बहुत दुख हुआ। उन्होंने जटायु को धन्यवाद दिया और उसे मरने से बचा लिया।
राम और लक्ष्मण सीता की खोज में आगे बढ़ गए। वे ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे। वहां, उन्होंने शबरी नाम की एक भीलनी से मुलाकात की। शबरी ने उन्हें सीता के बारे में कुछ और जानकारी दी।
शबरी ने उन्हें बताया कि सीता ने उसे एक बार देखा था। सीता ने उसे बताया था कि वह रावण द्वारा लंका ले जाई जा रही है।
राम और लक्ष्मण को शबरी की बातों से भी कुछ और जानकारी मिली। वे सीता की खोज में आगे बढ़ते रहे।
राम जटायु संवाद
Sita सीता की खोज में राम और लक्ष्मण जब जटायु से मिले, तो उन्होंने उससे सीता के बारे में पूछा। जटायु ने उन्हें बताया कि उसने रावण को सीता का हरण करते हुए देखा था।
राम ने जटायु से कहा, “हे पक्षिराज! तुमने सीता का हरण करते हुए रावण को देखा? तुमने उसे लंका ले जाते हुए देखा?”
जटायु ने कहा, “हां, मैंने रावण को सीता का हरण करते हुए देखा था। मैंने उसे लंका ले जाते हुए भी देखा था।”
राम ने कहा, “हे पक्षिराज! तुमने सीता को कैसे बचाया?”
Jatau जटायु ने कहा, “मैंने रावण से सीता को छोड़ने के लिए कहा, लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी। उसने मेरे पंख काट दिए और मुझे घायल कर दिया।”
राम ने कहा, “हे पक्षिराज! तुमने हमारे लिए बहुत बड़ा उपकार किया है। तुमने सीता को बचाने की कोशिश की। हम तुम्हें कभी नहीं भूलेंगे।”
जटायु ने कहा, “मैंने सीता को बचाने की कोशिश की, लेकिन मैं असफल रहा। मैं सीता को नहीं बचा सका।”
राम ने कहा, “हे पक्षिराज! तुमने सीता को बचाने की कोशिश की, यह ही सबसे बड़ी बात है। तुमने सीता की रक्षा के लिए अपना प्राण तक दे दिया। हम तुम्हारी वीरता को कभी नहीं भूलेंगे।”
राम और लक्ष्मण ने जटायु को धन्यवाद दिया और उसे मरने से बचा लिया। जटायु मरते-मरते भी राम और लक्ष्मण को सीता की खोज में सफल होने का आशीर्वाद दे गया।
राम तथा गन्धर्व संवाद
Shree ram श्रीराम एक पुत्र की तरह जटायु का अंतिम संस्कार करते है तथा सीता की खोज में दक्षिण की तरफ चल देते है। बहुत समय तक वन में भटकते हुए उनपर एक लंबी भुजाओं वाला राक्षस आक्रमण करता है। लक्ष्मण अपनी तलवार से उस राक्षस की दोनो भुजाए काट देते है । तब वह राक्षस श्रीराम को बताता है कि वह एक गंधर्व है और ऋषि के शाप के कारण ऐसा बन गया है यदि कृपया करके आप मेरे पूरे शरीर का अंतिम संस्कार करेंगे तो मैं श्राप से मुक्त हो जाऊंगा। तब मैं आपकी पत्नी सीता तक पहुंचने में आपकी सहायता करूंगा। तब श्रीराम लक्षमण से लकड़ियां एकत्रित करने के लिए कहते है और उस विशाल राक्षस का पुरे शरीर के साथ अंतिम संस्कार करते है।
अंतिम संस्कार करने के बाद वह राक्षस एक रूपवान गंधर्व बन जाता है और श्रीराम को बताता है कि आपकी पत्नी को लंका का राजा रावण हरण करके ले गया है। मैं अपने दिव्य ज्ञान से यह देख सकता हु की आपकी मित्रता वानर राज सुग्रीव से होगी जिसकी सहायता से आप अपने कार्य में सफल होंगे तथा रावण पर विजय प्राप्त करेंगे । सुग्रीव से मिलने के लिए आप पहले माता शबरी से मिलेंगे जोकि परम तपस्विनी है और महर्षि मतंग मुनि की शिष्या है। वह आपकी भक्ति कर रही है। इसलिए आप अभी पंपासरोवर के पास स्थित मतंग मुनि के आश्रम में जाइए जहां पर आपको माता शबरी मिलेंगी।
राम-लक्षमण की माता शबरी से भेंट
उसके बाद श्री राम और लक्ष्मण पंपा सरोवर की तरफ चल देते हैं जहां पर उन्हें एक वृद्ध भीलनी मिलती है जोकि रास्ते पर फूल बिछा रही होती है। वह वृद्ध भीलनी परम तपस्विनी माता शबरी थी
जोकी अपने भगवान श्री राम के आने के लिए कुटिया के रास्ते पर हर दिन फूल बिछाती थी ताकि जब श्री राम आए तो उनके पैर में कोई कांटा ना लगे। जब श्री राम और लक्ष्मण की कुटिया में पहुंचते हैं तो उनका परिचय पाकर माता शबरी खुशी से रोने लगती हैं तथा श्री राम और लक्ष्मण का स्वागत करती है वह उन्हें बताती हैं कि उनके गुरु श्री मतंग मुनि जी अब नहीं रहे लेकिन उन्होंने ही मुझे बताया था कि भविष्य में श्रीराम अपनी पत्नी सीता को खोजते हुए हमारे आश्रम में आएंगे और तुम उन्हें सुग्रीव तक जाने का मार्ग बता देना जिनकी सहायता से वह रावण पर विजय प्राप्त करके अपनी पत्नी सीता को पा सकेंगे।
(Shabri )शबरी के बेर
Mata माता शबरी Shabri श्री राम और लक्ष्मण को भोजन के रूप में अपने द्वारा लाए गए बेर देती है। शबरी श्रीराम के लिए आश्रम के वृक्षों से प्रतिदिन बेर चख चख कर अपनी टोकरी में रखती ताकि श्रीराम के लिए केवल मीठे बेर ला सके। शबरी द्वारा चख कर इकट्ठे किए हुए बेर भी श्री राम बड़े आदर भाव से खाते हैं क्योंकि वह जानते थे कि वह बेर झूठे होते हुए भी स्नेह और भक्ति भाव से परिपूर्ण है। शबरी मतंग मुनि के बाद केवल इसीलए रही की वह श्री राम के दर्शन करना चाहती थी। अतः श्री राम से मिलन के मिलने के पश्चात शबरी उनको बताती है कि पंपा सरोवर के दक्षिण तट की तरफ ऋषि मुख पर्वत है जिसके शिखर पर वानर राज सुग्रीव अपने चार मंत्रियों के साथ वास करते हैं और वहीं पर आपको अपने परम भक्त हनुमान से भी भेंट होगी। उसके पश्चात शबरी शह शरीर अपने परमधाम को चली जाती है।