होलाष्‍टक का अर्थ
होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है. इसका अर्थ होता है होली से पहले के आठ दिन. इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां शुरू हो जाती है. 

होलाष्‍टक की अशुभता क्‍या है?
ज्‍योतिष के अनुसार, होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में होते हैं. इसलिए इस दौरान जो शुभ कार्य किए जाते हैं उनका उत्‍तम फल प्राप्‍त नहीं होता. कहा जाता है कि होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव में होते हैं.

क्‍या ना करें
इन दिनों में शुभ कार्य करने की मनाही होती है. इस समय में विवाह, गृह प्रवेश, निर्माण, नामकरण आदि शुभ कार्य वर्जित होते हैं. नए काम भी शुरू नहीं किए जाते. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन दिनों में जो कार्य किए जाते हैं उनस कष्ट, पीड़ा आती है. विवाह आदि किए जाएं तो भविष्‍य में संबंध विच्छेद, कलह का शिकार होते हैं.

होलाष्‍टक में दान
शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक में व्रत, पूजन व दान का विशेष महत्‍व है. इन दिनों में किए गए व्रत और दान से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. ईश्वर आशीर्वाद देते हैं. इसलिए इन दिनों में वस्त्र, अनाज आदि दान करने चाहिए.

किन कारण से होलाष्टक लगते हैं…

दरअसल, जब राजा हिरणकश्यप अपने पुत्र प्रह्लाद और उसकी भगवान विष्णु के प्रति भक्ति भाव देखकर क्रोधित हो उठे तो होली के आठ दिन पहले से उसकी भक्ति छुड़वाने के लिए यातनाएं देने लगे। विष्णु भगवान की कृपा से प्रह्लाद ने हर तरह के कष्ट और परेशानियों को झेल लीं और अपनी भक्ति को जारी रखा। इसके बाद हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। इसके बाद भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका का अग्नि में जलने से अंत हो गया। इन आठ दिनों में प्रह्लाद के साथ जो कुछ हुआ, उसकी वजह से ही होलाष्टक लगते हैं।

होलाष्टक पर न करें शुभ कार्य

हिंदुओं में सोलह संस्कार जन्म से लेकर मृत्यु तक किए जाते हैं। इनमें गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ भूत संस्कार, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारंभ, केशांत, समावर्तन, विवाह, अन्त्येष्टि हैं। होलाष्टक में सोलह संस्कार समेत कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है। इन दिनों में भगवान की भक्ति और पूजा-अर्चना करनी चाहिए जो उत्तम माना गया है। होलाष्टक के दौरान दान-पुण्य करने का अक्षय फल प्राप्त होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *