आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन पितृपक्ष की शुरुआता होती है, जो कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को समाप्त होती है. इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनका तर्पण और पिंडदान किया जाता है. धार्मिक मान्यता अनुसार पितृपक्ष में सभी प्रकार के मांगलिक व शुभ कार्य वर्जित होते हैं. शास्त्रों में देवी-देवताओं की पूजा के साथ पूर्वजों की पूजा वर्जित है. ऐसे में अब सवाल उठता है कि पितृपक्ष में देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए या नहीं, आइए जानते हैं इसके बारे में…

देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए कि नहीं
पितरों को पूज्यनीय माना गया है. पितृ लोग पितृपक्ष के दौरान धरती पर वास करते हैं. ऐसे में इस दौरान पितरों की पूजा करना बेहद कल्याणकारी माना गया है. लेकिन अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि पितर पक्ष के दौरान देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए कि नहीं तो हम आपको बता दें कि पितर पक्ष में प्रतिदिन की तरह ही पूजा करनी चाहिए, क्योंकि पितर देव हमारे लिए जरूर पूज्यनीय हैं. लेकिन हमारे ईश्वर से उच्च नहीं हैं.

इन बातों का रखें ख्याल

  • घर की मंदिर में देवी-देवताओं की प्रतिमा के साथ पूर्वजों की तस्वीर न लगाएं. ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और घर में वास्तु दोष लगता है.
  • वास्तु शास्त्र के अनुसार पितरों की तस्वीर हमेशा घर में इस तरह लगाएं कि जहां उनका मुख दक्षिण दिशा की तरफ रहे. 
  • वास्तु के अनुसार घर में पितरों की एक से अधिक तस्वीर नहीं होनी चाहिए.
  • पितृपक्ष के दौरान प्रातः काल स्नान करने के बाद नित्य की तरह ही देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए.
  • देवी देवताओं के पूजा के बिना पितृपक्ष में श्राद्ध, पिंडदान इत्यादि का फल नहीं मिलता है.

पितृपक्ष में कैसे करें पितरों का श्राद्ध
पितृपक्ष के दौरान नियमित देवी-देवता की पूजा करने के उपरातं दक्षिण दिशा में मुंह करके बाएं पैर को मोड़कर बाएं घुटने को जमीन पर टीका कर बैठ जाएं. इसके बाद पितरों का ध्यान करते हुए उनकी पूजा करें. पितरों के श्राद्ध के समय जल में काला तिल मिलाएंऔर हाथ में कुश रखकर उनका तर्पण करें. पितृपक्ष की अवधि में दोनों वेला में स्नान करने के पश्चात पितरों का ध्यान करें. इस दौराना ज्यादा से ज्यादा गरीबों को भोजन कराएं.

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