गजाननं भूत गणादि सेवितं – गणेश मंत्र का अर्थ और महत्व
“गजाननं भूत गणादि सेवितं” यह गणेश स्तोत्र का एक बहुत ही प्रसिद्ध और शक्तिशाली श्लोक है। इस श्लोक में भगवान गणेश के विभिन्न रूपों और गुणों का वर्णन किया गया है। आइए इस श्लोक का अर्थ और महत्व समझते हैं:
श्लोक का अर्थ
- गजाननं: जिसका मुख हाथी के समान है।
- भूत गणादि सेवितं: भूत, गण आदि सभी देवता और राक्षस उनके सेवक हैं।
- कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणं: जो कपित्थ और जामुन के फल खाना पसंद करते हैं।
- उमासुतं शोक विनाशकं: उमा (पार्वती) के पुत्र और सभी दुःखों को दूर करने वाले।
अर्थात: इस श्लोक में भगवान गणेश को हाथी के समान मुख वाले, भूत-गणों के सेवित, कपित्थ और जामुन के फल खाने वाले, उमा के पुत्र और सभी दुःखों को दूर करने वाले के रूप में वर्णित किया गया है।
श्लोक का महत्व
यह श्लोक गणेश जी के भव्य और दिव्य स्वरूप का वर्णन करता है। यह श्लोक हमें भगवान गणेश की शक्ति और कृपा के प्रति विश्वास दिलाता है। इस श्लोक का जाप करने से मन शांत होता है और सभी प्रकार के विघ्न दूर होते हैं।
- विघ्नहर्ता: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। इस श्लोक का जाप करने से सभी प्रकार के कार्यों में सफलता मिलती है।
- शुभ आरंभ: किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले इस श्लोक का जाप करना शुभ माना जाता है।
- मन शांति: इस श्लोक का जाप करने से मन शांत होता है और तनाव दूर होता है।
- आशीर्वाद: भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस श्लोक का जाप किया जाता है।
श्लोक का उपयोग
- दैनिक पूजा: आप अपनी दैनिक पूजा में इस श्लोक का जाप कर सकते हैं।
- मंत्र जाप: इस श्लोक को एक मंत्र के रूप में भी जापा जा सकता है।
- ध्यान: इस श्लोक को ध्यान में रखकर भी ध्यान किया जा सकता है।
गजाननं भूत गणादि सेवितं – गणेश मंत्र (Gajananam Bhoota Ganadhi Sevitam)
गजाननं भूत गणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥
मंत्र का मूल रूप:
गजाननं भूतगणाधिसेवितं,
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकम्न,
मामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥