हमारा देश भारत, जो रहस्यों से भरा देश है। हमारे देश की सभ्यता, जितनी पुरानी है। उतने ही पुराने, हमारे देश के मंदिर भी हैं। हजारों सालों से खड़े मंदिर, कई राज अपने अंदर समेटे हुए हैं। भारत में मौजूद कोई भी मंदिर ऐसा नहीं है। जिससे जुड़ा कोई भी रहस्य वैज्ञानिकों को या आम आदमी की चर्चा का विषय न हो।
बद्रीनाथ धाम को, जहां जगत के पालनहार भगवान विष्णु का आठवां बैकुंठ लोक माना जाता है। वही जगन्नाथ धाम को धरती का बैकुंठ लोक माना जाता है। उड़ीसा के तटीय शहर, पूरी में स्थित यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर, भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है।
पूरी का यह पौराणिक मंदिर, अपने आपमें काफी अलौकिक है। 800 साल से ज्यादा पुराने इस मंदिर में, ऐसे-ऐसे रहस्य छुपे हुए हैं। जो आपको हैरान कर देगें।
भगवान जगन्नाथ मंदिर से जुड़े, ऐसे कई रहस्य हैं। जिस पर पूरी दुनिया के आधुनिक वैज्ञानिकों ने, कई बार शोध किए। लेकिन वह इसके रहस्य को नहीं सुलझा पाए।
आपको भी जाना चाहिए कि भगवान श्री कृष्ण का ह्रदय आज भी जीवित है। भगवान श्री कृष्ण 16 कलाओं से युक्त, ईश्वर के पूर्ण अवतार माने जाते हैं। वैसे तो श्रीकृष्ण सर्वत्र व्याप्त हैं। लेकिन उन्हीं श्री कृष्ण के अवतारी शरीर का हृदय, आज भी जीवित अवस्था मे धड़क रहा है।
कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण ने अपनी देह का त्याग किया। तब उनका अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार में श्री कृष्ण की देह, पूरी तरह पंचतत्व में विलीन हो गई। लेकिन उनका ह्रदय वैसा का वैसा ही रहा। अग्निदाह में उनका ह्रदय नष्ट नहीं हुआ। वह एक जीवित व्यक्ति के ह्रदय तरह धड़क रहा था।
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की मृत्यु बाद, जारा सवर नामक एक आदिवासी शिकारी ने, उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया। लेकिन श्री कृष्ण का हृदय नहीं जला। परंपरा के अनुसार, पिण्ड को जल में प्रवाहित कर दिया गया। जल शुद्धि के अनुसार, उस पिंड ने एक लठ्ठे का रूप ले लिया।
भगवान जगन्नाथ के भक्त राजा इंद्रदयुम्न को यह लट्ठा मिला। उन्होंने भगवान विश्वकर्मा के द्वारा, इस लट्ठे को भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्थापित करवा दिया। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण का ह्रदय आज भी जस का तस है। जो भगवान जगन्नाथ के काठ की मूर्ति के अंदर स्थापित है।
भगवान जगन्नाथ का रहस्य, आज तक कोई भी नहीं जान पाया है। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को हर 12 साल में बदला जाता है। इस दौरान पूरे शहर की रोशनी बंद कर दी जाती है। बिजली बंद करने के बाद, मंदिर के पूरे परिसर को घेर लिया जाता है। सीआरपीएफ व सेना के संरक्षण में आने के बाद, मंदिर में कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता।
पुजारी की आंखों पर पट्टी बांधी जाती है। उनके हाथों में मोटे दस्तानें पहनाए जाते हैं। मंदिर के अंदर घोर-घने अंधकार के बीच, पुजारी उस पदार्थ को बाहर निकलता है। फिर उसे नई मूर्ति में स्थापित कर देता है। इसी भगवान श्रीकृष्ण के हृदय को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है। इस ब्रह्म पदार्थ के रहस्य को, आज तक कोई नहीं जान पाया।
सैकड़ों वर्षो से एक मूर्ति से दूसरी मूर्ति में, यह ब्रह्म पदार्थ स्थानांतरित किया जाता रहा है। खास बात यह है कि ब्रह्म पदार्थ को बदलने वाला पुजारी भी, यह नहीं जानता। कि वह किस चीज को हस्तांतरित कर रहा है। क्योंकि उसके हाथों में दस्ताने होते हैं। और आंख में पट्टी बंधी होती है।
हालांकि ब्रह्म पदार्थ को बदलने वाले पुजारी, यह जरूर कहते हैं। कि वह जिस पदार्थ को बदलते हैं। वह किसी खरगोश के जैसे उछलता है। आज जो पुरी के मंदिर के विषय में आश्चर्यजनक बातें सुनते हैं। यह उसी ब्रह्म पदार्थ का ही चमत्कार है। उसके चमत्कारों की व्याख्या अनंत है।
ब्रह्म पदार्थ का वैज्ञानिक विश्लेषण
ब्रह्म पदार्थ को आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण से, समझने की कोशिश करते हैं। कि वह क्या हो सकता है। हम सभी को पता है कि मां के गर्भ में, पिता के शुक्राणुओं के अंड निषेचन से, शरीर का निर्माण शुरू हो जाता है। जहां शरीर निर्माण तो जारी रहता है। लेकिन उस शरीर में धड़कन 2 से 3 महीने के बाद ही शुरू होती है।
यहां आधुनिक विज्ञान बिल्कुल खामोश हो जाता है। ऐसा कैसे होता है। आखिर वह कौन-सा तत्व है। जिसके शरीर में प्रवेश होते ही धड़कन शुरू हो जाती है। तो वह कौन सा तत्व है। जिसके शरीर में प्रवेश करते ही, बेजान शरीर धड़कने लगता है। इसके बारे में, विज्ञान आज तक नहीं जान सका।
जबकि हमारे ऋषियों ने, इसे बहुत पहले ही खोज लिया था। जिसे सनातन में, प्राण ऊर्जा के नाम से संबोधित किया गया था। प्राण ऊर्जा ही, वह ऊर्जा है। जो इस नश्वर शरीर को, जीवंतता प्रदान करती है। जो जड़ शरीर में, चेतना का विस्तार करती है। तो प्राण ऊर्जा मूल है और असीमित भी।
इस ऊर्जा के प्रयोग की क्षमता, उस शरीर पर है। कि वह किस सीमा तक व कितनी कर पाता है। यह प्राण ऊर्जा सृष्टि की सर्जनात्मक ऊर्जा का ही एक अंश है। इसको ऐसे समझते हैं। अगर हम शरीर को एक ट्रांसफार्मर मान लें और प्राण ऊर्जा को विद्युत। तो यह शरीर के ऊपर है कि वह 220 वोल्ट तक की ऊर्जा ग्रहण कर सकता है। या 21000 वोल्ट तक की।
इस ऊर्जा से शरीर को केवल जीवंतता ही नहीं मिलती। बल्कि आश्चर्यजनक और अचंभित करने वाले परिणाम भी देखने को मिलते हैं। हमारे यहां तो योगियों ने इस ऊर्जा को संकलित करके, जीवित रहते ही शरीर से बाहर निकल जाने की व्यवस्था को खोजा है। फिर अपनी मर्जी से शरीर में पुनः प्रवेश के मार्ग तक को भी। जिसे हम सभी परकाया प्रवेश के नाम से जानते हैं।
ऐसे ही हिमालय की गुफाओं में तपस्यारत योगियों के बारे सुना होगा। जिनकी तपस्या के मार्ग में, यह शरीर कभी बाधा नहीं रहा। वह इसी प्राण ऊर्जा प पम चमत्कार से संभव है। या फिर उनके द्वारा किसी को आशीर्वाद या श्राप देने पर तुरंत फलित हो जाने के बारे में।
तो जरा सोचिए कि जिस कृष्ण को पूर्णावतार माना गया। उनकी ऊर्जा की सीमा क्या रही होगी। उसकी पराकाष्ठा क्या रही होगी। वहीं आज रहस्यमई तरीके से, पूरी की मूर्तियों और मंदिरों में, हमें किंचित मात्र दृष्टिगोचर होती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का रहस्य
उड़ीसा के पुरी में निकलने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा, 500 सालों से चली आ रही, परंपरा का एक हिस्सा है। इसके बारे में स्कंद पुराण, नारद पुराण, पदम पुराण और ब्रह्म पुराण में भी वर्णन किया गया है। इस यात्रा का मुख्य आकर्षण हजारों लोगों द्वारा, पारंपरिक वाद्य यंत्रों के बीच बड़े-बड़े रथों को, मोटे-मोटे रस्सों से खींचना।
इसमें भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ, भाई बलभद्र जी व बहन सुभद्रा जी का रथ होता है। मान्यता है कि इन रथों को खींचने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह यात्रा 9 दिनों तक चलती है। यह एक ऐसा उत्सव है। जिसमें भगवान स्वयं रथ पर घूमने निकलते हैं। इस उत्सव में भगवान रथ पर सवार होकर, पूरे नगर का भ्रमण करते हैं।
अंत में अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर में पहुंचते हैं। रथ यात्रा के दौरान हर साल, एक घटना घटती है। वह इस दिन बारिश का होना है। इस बात का इतिहास गवाह है। कि रथयात्रा का कोई भी साल ऐसा नहीं गुजरा। जब रथ यात्रा के दौरान बारिश नहीं हुई।
इस पर कई बार बुद्धिजीवियों में चर्चा हुई। यह कहा गया कि यह मात्र एक संयोग है। संयोग कुछ बार तो हो सकता है। लेकिन सालों से रथयात्रा के दौरान बारिश का होना। कोई संयोग नहीं है। उन पर आस्था रखने वाले लोग मानते हैं। कि यह भगवान जगन्नाथ का चमत्कार ही है।
भगवान जगन्नाथ के रथ का मजार पर रुकना
हैरानी की बात यह है कि हिंदू धर्म के देवता का एक मुस्लिम मजार से क्या रिश्ता। कहानी यह है कि भारत में जब मुगलों का शासन हुआ करता था। तब उनकी सेना में सालबेग नामक, एक वीर था। सालबेग के पिता मुस्लिम और मां हिंदू थी।
एक युद्ध के दौरान सालबेग के माथे पर गहरी चोट लगी। इस चोट के ठीक न होने की वजह से, उसे सेना से निकाल दिया गया। उसकी मां ने सालबेग को दुखी देखकर, उसे भगवान जगन्नाथ के दरबार में जाने के लिए कहा। सालबेग अपनी मां की बात मानकर, भगवान की भक्ति करने लगा।
अपने मुस्लिम भक्त की भक्ति से, भगवान जगन्नाथ इतना प्रसन्न हुए। कि वह उनके सपने में आए। उसके घाव को ठीक कर दिया। सालबेग ने सुबह उठकर, जब अपनी चोट को सही पाया। तो भगवान का गुणगान करते हुए, जगन्नाथ मंदिर पहुंच गए। लेकिन मुस्लिम होने के कारण, उसे अंदर नहीं जाने दिया गया। तब सालबेग ने कहा। अगर वह जगन्नाथ जी का सच्चा भक्त है। तो वह उसे दर्शन देने खुद, उसके पास आएंगे।
सालबेग जब तक जीवित था। तब तक वह भगवान की भक्ति करता रहा। लेकिन उसे ईश्वर के दर्शन नहीं हो पाए। लेकिन जब उसकी मृत्यु हुई। तो उसी वर्ष जगन्नाथ जी की यात्रा के दौरान, भगवान का रथ अपने आप ही सालबेग की मजार पर जाकर रुक गया।
लोगों ने बहुत कोशिश की। लेकिन रथ 1 इंच भी नहीं हिला। तब किसी ने भगवान के परम भक्त सालबेग के बारे में बताया। इसके बाद वहाँ मौजूद सभी लोगों ने सालबेग के नाम का जयकारा लगाया। तब जाकर भगवान का रथ आगे बढ़ा। तब से हर वर्ष ऐसा ही होता है।
हवा के विपरीत लहराता मंदिर का ध्वज
भगवान जगन्नाथ मंदिर के ऊपर लहराता ध्वज बहुत रहस्यमई है। यह ध्वज हमेशा, हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। यानी अगर यह हवा पूरब से पश्चिम की ओर बह रही है। तो यह ध्वज पश्चिम से पूरब की ओर लहराएगा। ऐसा किस वजह से होता है। यह तो वैज्ञानिकों के लिए भी चुनौती है।
इसके साथ ही हर रोज ध्वज को बदलने का नियम है। ऐसी मान्यता है कि अगर किसी भी दिन इस ध्वजा को नहीं बदला गया। तो मंदिर अगले 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा।
लेकिन यह बहुत आश्चर्यजनक है। इस ध्वज के पीछे, एक आश्चर्यजनक बात यह भी है। कि मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को उल्टा चढ़ाकर बदला जाता है। ताकि ऐसा लगे कि यह सीधी दिशा में लहरा रहा है। यह ध्वज भी इतना भव्य है। कि जब यह लहराता है। तो इसे सब देखते ही रह जाते हैं। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।
दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर
जगन्नाथ पुरी मंदिर में 500 रसोइए, अपने 300 सहयोगियों के साथ मिलकर, भगवान जगन्नाथ जी का प्रसाद बनाते हैं। लगभग 20 लाख भक्त यहां भोजन कर सकते हैं। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद चाहे, कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो। लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है।
हर दिन इस रसोई में बना प्रसाद श्रद्धालुओं में बांटा जाता है। सुबह श्रद्धालुओं के संख्या लाखों में पहुंच जाती है। लेकिन इस रसोई से जुड़ी सबसे रोचक बात यह है। न तो यहां पर बना भोजन कभी कम पड़ता है। न ही कभी व्यर्थ जाता है।
लोगों की माने तो, सारा दिन इस रसोई से श्रद्धालुओं को प्रसाद बांटा जाता है। प्रसाद कभी कम नहीं होता। लेकिन जैसे ही मंदिर में प्रवेश बन्द करने का समय आता है। वैसे ही प्रसाद खत्म हो जाता है। जहां एक भी अन्न का दाना व्यर्थ नहीं जाता। इसे श्रद्धालुओं द्वारा भगवान जगन्नाथ की माया माना जाता है।
मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे साल भर के लिए रहती है। इसके साथ ही, किसी भी चीज की एक भी मात्रा व्यर्थ नहीं जाती। मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए, सात बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं।
सब कुछ लकड़ी के ऊपर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा रहस्य यह है। कि सबसे ऊपर वाले बर्तन का प्रसाद सबसे पहले बनता है। जबकि नीचे वाले बर्तन का प्रसाद आखरी में तैयार होता है।
हवा की दिशा व समुद्र की आवाज़
आम दिनों में हवा, समुद्र से जमीन की ओर आती है। शाम के दौरान इसके विपरीत आती है। लेकिन पूरी में, इसका उल्टा होता है। अधिकतर समुद्री तटों पर, आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर आती है। लेकिन यहां हवा समुद्र से जमीन की ओर जाती है।
मंदिर के सिंह द्वार में, पहला कदम रखते ही। आप समुंदर से उठने वाली किसी भी आवाज को नहीं सुन सकते। लेकिन जैसे ही आप बाहर कदम रखेंगे। आपको समंदर की आवाज साफ सुनाई देगी। शाम के वक्त, इसे अच्छे तरीके से अनुभव किया जा सकता है।
इसी तरह मंदिर के बाहर स्वर्गद्वार है। जहां पर मोक्ष प्राप्ति के लिए, शव का अन्तिम संस्कार किया जाता है। लेकिन जब आप मंदिर से बाहर निकलेंगे। तभी आपको लाशों के जलने की गंध महसूस होगी।
मंदिर के गुंबद की छाया नहीं बनती
यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 400000 वर्ग फुट में फैला हुआ है। इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर, इसका गुंबद देख पाना असंभव है। इसकी छाया में, एक गहरा राज छुपा है।
इस गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है। यानी इसकी छाया कभी दिखाई नहीं देती। हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे। जो इस मंदिर के उदाहरण से ही, समझा जा सकता है। पूरी के मंदिर का यह भव्य रूप, सातवीं सदी में बनाया गया था
चमत्कारिक सुदर्शन चक्र
जगन्नाथ पुरी के मंदिर की गुंबद के ऊपर सुदर्शन चक्र लगा है। ऐसा कहा जाता है कि पूरी में, आप कहीं पर भी खड़े हो। हर जगह से, मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को, आप देख सकते हैं।
इस चक्र की बनावट इतनी अद्भुत है। कि आपको किसी भी दिशा से देखने पर लगता है। कि सुदर्शन चक्र आपके सामने ही है। यानी यह हमेशा सामने ही दिखाई देता है। इसे निलचक्र भी कहा जाता है। यह अष्ट धातु से बना है। इसे बेहद पवित्र माना जाता है।
गुंबद के ऊपर पक्षी या हवाई जहाज नहीं उड़ते
मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास, अब तक किसी भी पक्षी को उड़ते हुए नहीं देखा गया है। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। अगर मंदिर के शिखर के पास कोई विमान आता भी है। तो उसका रास्ता अपने आप ही बदल जाता है।
मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते हुए नजर नहीं आते हैं। जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों की गुंबद पर पक्षी बैठ जाते हैं। या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं।